कहते हैं शादियाँ ईश्वर द्वारा स्वर्ग में ही तय कर दी जाती हैं। धरती पर तो केवल उसके फेरे करा दिए जाते हैं। इसप्रकार जैसा भी जोड़ीदार मिले उसे ईश्वर की इच्छा और अपना भाग्य मानकर स्वीकार कर लेने की सलाह दी जाती है। हमारे समाज के एक बड़े हिस्से में अभी भी शादी को अटूट गठबन्धन (irreversible knot) माना जाता है। ऐसे में कभी विडम्बनापूर्ण रिश्ते भी नजर आते हैं। एक बानगी इस भोजपुरी गीत के माध्यम से… …………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………
ठोंकि लऽ कपार ए बाबू, बीबी हो गैलि बेकाबू।
मेहरी हो गैलि बेकाबू, ठोंकि लऽ कपार ए बाबू॥
चाहे लऽ घर के ई लछिमी हऽ जइसे
घर के भी मन्दिर बना देई वइसे
सांझो सबेरे के दीया आ बाती
संस्कार सुन्दर बढ़ाई दिन राती
बाकिर ई बोलेले- बाय - बाय डार्लिंग…
“दीज़ सिली कस्टम्स आइ कान्ट डू”
(These silly customs I can’t do)
ठोंकि लऽ कपार…
होली, दशहरा, दिवाली जो आवे
चाहेलऽ भोजन विशेष ई बनावे
पारंपरिक ढंग से ही मनावे
खीर,दालपूड़ी आ गुझिया खियावे
बाकिर ई बोलेले- हाय माई डार्लिंग…
“लेट अस एन्जॉय इन हैवेन्स ड्यू ”’
(Let us enjoy in Heaven’s Dew)
ठोंकि ल कपार…
चाहऽ जो घर में ई चूल्हा जलावे
होते बिहान असनान करि आवे
प्रेम-भाव-रस भीनल भोजन बनावे
पती-परमेश्वर के पहिले खियावे
बाकिर ई बोलेले-नॉट माई डार्लिंग…
“आई लाइक बेड-टी व्हाई डोन्ट यू”
(I like bed-tea, why don’t you?)
ठोंकि लऽ कपार…
चाहे लऽ घर के पुरनियन के आदर
माता-पिता जी के सेवा हो सादर
अतिथी इष्ट-मित्र सबै खुश होवें आके
सत्कार गृह-लच्छिमी जी से पाके
बाकिर ई बोलेले- शटप माई डार्लिंग…
नो कैन आई बीअर, अदर दैन यू
(No can I bear other than You)
ठोंकि लऽ कपार…
नइहर से एकरे जो केहू आ जाला
रंग-ढंग एकर तुरंत बदलि जाला
चाहेले दफ़्तर से छुट्टी तू लेलऽ
‘सारे के बेटा’ के साथ तू खेलऽ
आखिर तू बोलेलऽ– उफ़् माई डार्लिंग
काश जाके मायके में बस जाती तू…
(I wish you go to your parents)
ठोंकि ल कपार…
किताब मिली - शुक्रिया - 17
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ऐसे तन मन पावन रखना
दिल में ही वृंदावन रखना
ठगिनी माया दाग लगाती
उजाला अपना दामन रखना
*
किसी को भी कभी कमतर न आंकें आज ये कह दो
समुंदर सूख जाता गर उसे ...
1 हफ़्ते पहले
ये कहाँ से ढ़ूंढ़ लाये भाई!! :)
जवाब देंहटाएंअरे कौन से लक्ष्मीयों की बात कर रहे हैं । अरे वे जो अपने ही ससुराल मे जलील की जाती है और अंत मे जला दी जाती हैं । उनके संस्कारी पति फ़िर फेरे लगा लेते हैं । अरे कब तक संस्कारों की बलीबनती रहेंगी ये लल्नाये । उसका सर झुका के सब सह लेना ही कौन सा सस्कार है भाई .....अरे उन्हें भी जीने दो ...थोड़ा सा खुली हवा मे साँस लेने दो...........
जवाब देंहटाएंसुन्दर! अच्छा। बहुत अच्छा। आपके तमाम लेख पढ़ने को बकाया हैं। गुटबाजी के चक्कर में न पढ़ पाये अब तक। अब पढ़ेंगे। :)
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढ़िया भाई। कमाल के रचना।
जवाब देंहटाएंमैं सिद्धार्थ की रचना, मुझे नहीं मालूम था कि ये इतने दुःखी हैं। च्च,च्च,च्च, बेचारे!
जवाब देंहटाएंयह तो जबरदस्त माडर्न भोजपुरी गीत है। ब्लॉगजगत के लिये अनूठी चीज।
जवाब देंहटाएंक्या बात है आजकल भोजपुरी का बोलबाला है....माडर्न गीत है
जवाब देंहटाएंइसको अपनी आवाज में गाकर पोस्ट करिये।
जवाब देंहटाएंhttps://www.youtube.com/watch?v=qj_s3r3ELUM
हटाएंनारी कहीं पीड़ित है तो कहीं प्रताडिका भी...
जवाब देंहटाएंफैशन आ तथाकथित नारी स्वतंत्रता आन्दोलन ,जो न कराये...
बढ़िया कटाक्ष...
मनभावन गीत...