लंबे अंतराल के बाद आज #साइकिल_से_सैर का संयोग बना। मेडिकल कॉलेज परिसर से निकला तो सहारनपुर से अंबाला जाने वाले हाईवे पर निकल गया। राधास्वामी सत्संग भवन के विशाल प्रांगण के पास से हाईवे को काटती नहर की पटरी पर बाएं दक्षिण की ओर मुड़ गया। पिछली बार इस पटरी की कंकड़ीली ऊबड़ खाबड़ सड़क ने बहुत तकलीफ दी थी। लेकिन इस बार चमचमाती हुई नई नवेली पेंटिंग से सजी हुई इस ग्राम्य सड़क ने बरबस ही आकर्षित कर लिया। कदाचित् आसन्न चुनाव का प्रभाव रहा हो जो इस ओर के निवासियों के आवागमन की सुधि ले ली गई हो।
नहर की साफ-सुथरी पटरी के दोनो ओर हरियाली की छटा देखते ही बनती है। ताजा और शुद्ध ऑक्सीजन जब फेफड़ों तक पहुंचती है तो फर्क साफ महसूस होता है। औद्यानिक पौधों के अलावा पॉपलर की खेती खूब होती है यहां। सबेरे सात बजे ही सूरज की किरणें तीखी हो चली थीं। लेकिन हरे-भरे पंक्तिबद्ध लंबे पेड़ों की ऊंची दीवार की छाया में चलते हुए धूप की गर्मी से सामना प्रायः नहीं करना पड़ा। राधास्वामी केंद्र की जालीदार चारदीवारी के ऊपर रंगीन वोगनबेलिया व दूसरी लताओं की खूब मोटी परत करीने से काट-छांट कर इतनी आकर्षक बनाई गई है कि मन वहीं ठहर सा जाता है। लेकिन मुझे तो आज लंबी दूरी तक साइकिल चला कर अपना कार्डियो वर्कआउट का लक्ष्य पूरा करना था। इसलिए मैं बिना रुके चलता रहा। आगे से बाएं पूरब की ओर मुड़कर एक अन्य पिचरोड पर आगे बढ़ गया। अनुमान था कि हरे - भरे खेतों व कुछ गावों को पार करती हुई यह सड़क वापस सहारनपुर शहर की ओर ले जाएगी।
रास्ते में मुझे अलीपुरा गांव मिला। गांव के भीतर मुड़ी-तुड़ी पक्की सड़क के दोनो ओर पक्के मकान थे। कुछ दुकानें भी थीं। खेती से संबंधित उपकरण वा मशीनरी बता रही थी कि यहां के लोग खुशहाल ही होंगे। इसी क्रम में ग्राम तौली से होते हुए मैं कुम्हार हेरा पहुंच गया। रास्ते में ब्लूम एरा एकेडमी नामक विद्यालय दिखा जहां कोई हलचल नहीं दिखी। मेरी घड़ी बता रही थी कि अबतक 40 मिनट में करीब 12 किलोमीटर की यात्रा हो चुकी थी। अभी भी मुझे अपनी वापसी के रास्ते का ठीक-ठीक पता नहीं था।
कुम्हार हेरा गांव के किनारे-किनारे बनी आरसीसी सड़क पर चलता हुआ जब गांव को पार करके पूरब की ओर बढ़ा तो अचानक इस सड़क से टी-प्वाइंट बनाती हुई एक चौड़ी सी सड़क नजर आई। इस पर भारी भरकम ट्रक और बसें दौड़ रही थीं। पता चला कि यह सहारनपुर से गंगोह जाने वाली व्यस्त सड़क है। यहां से मेरा आवास लगभग 10 किमी दूर था। बाएं मुड़कर मैं शहर की ओर चल पड़ा। सड़क के किनारे दो - दो इंट भठ्ठों की चिमनियां दिखीं। उनाली गांव का नुक्कड़ दिखा जहां चाय की दुकानें थीं। मन में यहां रुकने का विचार उठा लेकिन मैंने बिना देर किए उसे दबा दिया। आगे एमआरएस मेमोरियल स्कूल व प्रज्ञान स्थली सहित अनेक शिक्षण संस्थान दिखे। फिर मानक मऊ पहुंचकर मुझे अपनी पहचानी हुई सड़क दिखी। फिर वह चौराहा भी दिखा जहां से कई बार सर्किट हाउस की ओर गया हूं। यहां सरकारी बस अड्डा है। यहां से अंबाला रोड की ओर मुड़कर मैं अपने हाईवे पर वापस आ गया।
बड़ी नहर के पुल की चढ़ाई पार कर जब ढलान पर पैडल रोकने का मौका मिला तो बाईं ओर मेरा जिम 'मसल-मास्टर्स' नजर आया जो आज बंद था। इस जिम ने मेरी देहयष्टि में क्रांतिकारी परिवर्तन लाना प्रारंभ कर दिया है। यहां से घर पहुंचने से पहले मैं बेल का शरबत पीने के लिए रुका। बिना चीनी वा बिना बर्फ वाला ताजा बना शरबत सारी थकान को मिटाने वाला था।
करीब डेढ़ घंटे में 21 किलोमीटर की प्रायः अनवरत साइकिल यात्रा ने आज भरपूर ऑक्सीजन के साथ अप्रतिम ऊर्जा व आनंद की आपूर्ति की। घर के दरवाजे पर खींचा गया चित्र इसकी गवाही दे रहा है।
(सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
आपकी टिप्पणी हमारे लिए लेखकीय ऊर्जा का स्रोत है। कृपया सार्थक संवाद कायम रखें... सादर!(सिद्धार्थ)