आओ हमसब चुन लें अपने देशप्रेम की राह। प्रण हो मानवता की सेवा राष्ट्र-धर्म निर्वाह।। (1) भौतिकता की चकाचौंध में नौजवान भरमाये, मूल्यहीन पश्चिम की शिक्षा मनोरोग भी लाये। वाम और दक्षिण के पथ जब इक-दूजे को काटें, युगों-युगों का ज्ञान सनातन सच्ची राह दिखाये॥ मुखर हुई जनजन में अब अपने गौरव की चाह। प्रण हो मानवता की सेवा राष्ट्र-धर्म निर्वाह॥ (2) विद्या विनयशील कर दे जो दक्ष बनाये हमको, अर्जित धन से धर्म करें जो सुख पहुँचाये सबको। परहित सबसे बड़ा धर्म पर-पीड़ा है अधमाई, भारत का संदेश यही पहुँचाना है इस जगको॥ युद्धों का उन्माद कर रहा कितने देश तबाह। प्रण हो मानवता की सेवा राष्ट्रधर्म निर्वाह।। (3) राजनीति में जाति-पंथ की पैठ न बढ़ने पाये, अच्छा सच्चा जनसेवक ही इसमें चुनकर आये। लोकतंत्र में भाईचारा पर संकट मत डालो, अज्ञानी, अपराधी, पापी से यह देश बचा लो॥ सांस्कृतिक उत्थान दे रहा सबको नेक सलाह। कर लें मानवता की सेवा राष्ट्रधर्म निर्वाह।। सत्यार्थमित्र |
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