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रविवार, 30 जुलाई 2017

नदी के ऊपर से बहती इंदिरा नहर

#साइकिल_से_सैर #रायबरेली
रायबरेली से स्थानांतरण का आदेश मिला तो थोड़ी उलझन हुई। साढ़े चार साल तक की जीवन चर्या में बड़ा बदलाव आने वाला था। पदोन्नति के पद पर तैनाती हुई तो बधाइयाँ भी मिली लेकिन नये ठिकाने पर जाना कष्टप्रद भी महसूस हो रहा था। ऐसी मनःस्थिति में वहाँ की आखिरी साइकिल यात्रा का हाल बताने की सुध ही नहीं रही; जबकि वह सबसे यादगार यात्रा साबित हुई।
01 जुलाई 2017 को अपनी साइकिल लेकर मैं एक ऐसे पुल के ऊपर पहुँच गया जहाँ नदी के ऊपर से सड़क के साथ-साथ विशाल जलराशि वाली इंदिरा नहर भी गुजरती है। यह अद्भुत 'जलसेतु' बेहटा खुर्द गाँव के पास ही है जो रायबरेली से परसदेपुर जाने वाली सड़क से दो किलोमीटर दक्षिण की ओर सई नदी को पार करने के लिए बनाया गया है। रायबरेली शहर को बाहर से पार करने के लिए जो फोर-लेन बाई-पास बनाया जा रहा है वह इंदिरानहर की बायीं पटरी के किनारे से होकर जाएगा। इसके लिए सई नदी पर एक और बड़ा पुल इस जलसेतु के समानांतर बनाया जा रहा है जिसके पाये (pillars) अभी खड़े किये जा रहे हैं।
इस पानी-पुल पर खड़ा हुआ तो मैंने देखा कि इंदिरानहर का अकूत पानी इसके पेट में एक तरफ से गड़गड़ाता हुआ प्रवेश कर रहा था और दूसरी ओर से थोड़ी गर्जना के साथ कलकल झरने की तरह बाहर निकल रहा था। पुल के एकदम नीचे सुस्त और अलसायी सी सई नदी अनेक वनस्पतियों से घिरी और ढंकी हुई अपने अस्तित्व मात्र का भान करा रही थी। लग रहा था कि मानसून की शुरुआती बारिश ने सोयी हुई सई को अभी-अभी जगा दिया है। नहर के किनारों को कुछ आगे तक सीमेंट-कांक्रीट से पक्का किया गया था और उसमें नीचे उतरने के लिए एक स्थान पर सीढ़ियाँ भी बनी थीं। मैं नहर के दक्षिणी छोर पर जाकर पूर्वी पटरी पर खड़ा हुआ तो उसके पश्चिमी किनारे की ढलान पर एक वृद्ध आदमी कपड़ा धुलता हुआ दिखायी दिया। खतरे की एक आशंका मेरे सीने में डर की लहर बनकर गुजर गयी। मैंने नहर की दूसरी पटरी की ओर साइकिल मोड़ दी। पास जाकर मैंने उस वृद्ध से पूछा कि ढलान पर बैठने के बजाय सीढ़ियों पर क्यों नहीं बैठते? यहाँ फिसलने का डर नहीं है क्या? इसपर उन्होने बताया कि सीढ़ियों पर कुछ लोग गंदा (शौच) कर गये हैं इसलिए यहाँ बैठा हूँ। यहाँ की चिकनाई को मैंने रगड़कर साफ कर दिया है इसलिए फिसलन नहीं है। मैंने उन्हें सावधान रहने की सलाह देकर साइकिल वापस मोड़ दी।
यहाँ लगाये गये पत्थरों पर जो रोचक सूचना उत्कीर्ण है वह मिटती जा रही है। फिर भी ध्यान से पढ़ने पर मुझे जो समझ में आ सका वह सहेज लाया हूँ। इसके अनुसार शारदा सहायक परियोजना के अंतर्गत "सई नदी जलसेतु" का शिलान्यास भारत की प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने 12 अप्रैल 1975 को किया था। यद्यपि इसके निर्माण कार्य का प्रारंभ जनवरी 1974 में हो गया था जो दिसंबर 1978 में पूरा हुआ। पुल के उदघाटन से संबंधित कोई शिलालेख मुझे दिखायी नहीं दिया। इंजीनियरिंग के दृष्टिकोण से निम्नलिखित रोचक आंकड़े यहाँ दिये गये हैं उनसे इस जलसेतु की विशालता का कुछ अनुमान हो सकता है :-

जल सेतु
सई नदी
सेतु की जल प्रवाह क्षमता 167 क्युमेक्स
सेतु में जल प्रवाह का वेग 3.8 मीटर/सेकेंड
पानी की अधिकतम गहराई 8.0 मीटर
जलसेतु की लंबाई 248.5 मीटर
प्रत्येक दर की लंबाई 35.5 मीटर
दरों की संख्या 7
नींव के कुओं की माप 14×20 मीटर
नींव के कुओं की गहराई 33.0 मीटर
पूर्व प्रतिवलित कांक्रीट गर्डर की ऊंचाई 85.85 मीटर
दोणी के अंदर की माप 7.3×6.75 मीटर
उच्चतम बाढ़ स्तर 105.0 मीटर
अधिकतम जल प्रवाह 2830 क्युमेक्स
जलसेतु और नहर के बीच संक्रमण-
ऊपरी संक्रमण की लंबाई 26.7 मीटर
निचली संक्रमण की लंबाई 40.0 मीटर
ऊपरी संक्रमण के नींव के कुओं की संख्या 03 नंबर
निचली संक्रमण के नींव के कुओं की संख्या 04 नंबर
नींव के कुओं की माप 10×20 मीटर
नींव के कुओं की गहराई 18.0 मीटर


पहले इस जलसेतु स्थल को एक सुंदर पिकनिक स्पॉट की तरह विकसित किया गया होगा। इसे देखने आसपास के लोग आते रहते हैं। पुल के किनारे बोगनबेलिया की पुरानी झाड़ी की दशा देखने से ऐसा लगा कि किसी समय इस स्थान का सौन्दर्यीकरण किया गया होगा लेकिन वर्तमान में इसके अनुरक्षण की कोई खास व्यवस्था नहीं है। लेकिन इस जलसेतु के भीतर इंदिरानहर के चौड़े पाट को एक-तिहाई तक पतला करके उसकी तेज धारा के दोनों किनारों पर सड़क की पटरी तैयार कर बनाया गया यह तीन लेन वाला पुल अपने आप में एक विलक्षण दृश्य उत्पन्न करता है।
मेरे मोबाइल कैमरे में इस विशाल निर्माण को ठीक-ठीक दिखा पाने का सामर्थ्य शायद नहीं था। फिर भी मैंने कुछ प्रतिनिधि चित्र सहेज लिये; इस सोच के साथ कि रायबरेली से स्थानांतरण के बाद यहाँ तक दुबारा आना शायद संभव न हो सके। आप इन चित्रों को देखकर वहाँ के दृश्य की कल्पना कीजिए। एक-दो चित्र वापसी के समय रास्ते से लिए गये जो ग्रामीण जीवन की एक खास झलक दिखाते हैं।































 



(अब साइकिल से सैर का अगला किस्सा किसी नये शहर से सुनाऊंगा। थोड़ी प्रतीक्षा कीजिए।)

(सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी)

www.satyarthmitra.com

3 टिप्‍पणियां:

  1. ऐसा मैंने रुडकी में भी देखा है, तीन जगह गंग नहर को बरसाती नदियों के ऊपर से निकाला गया है।

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  2. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन तुलसीदास जयंती और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

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  3. वाह !साइकिल सामर्थ्य भी कुछ कम नहीं - सूक्ष्मऔर सजीव चित्रण -ज़मीनी वास्तविकताओं के साथ .

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आपकी टिप्पणी हमारे लिए लेखकीय ऊर्जा का स्रोत है। कृपया सार्थक संवाद कायम रखें... सादर!(सिद्धार्थ)