अन्ना हजारे जी एक बार फिर अनशन पर बैठ रहे हैं। टीम अन्ना के प्रयास अबतक बेअसर साबित हुए हैं। बाबा रामदेव जी अपने योग साधना के शिष्यों को भ्रष्टाचार विरोधी भीड़ का हिस्सा बनाने की कोशिश करते रहे हैं जो क्रमशः कम होती जा रही है। पिछले साल यह आन्दोलन जिस ऊँचे स्तर को छू गया था वह इस बार दुहराये जाने की संभावना बहुत कम लग रही है। सरकार के मंत्री और प्रधान मंत्री अन्ना टीम के आरोप पत्रों से बिल्कुल भी विचलित नहीं हैं। लोकपाल का वह स्वरूप जो अन्ना टीम चाहती है वह आने से रहा। भ्रष्टतंत्र अपनी जड़ें बहुत गहरे जमा चुका है। यथास्थिति बनाये रखने में जिनके हित निहित हैं उनकी ताकत सुधारवादियों से अधिक साबित हो रही है।
लोग अब यह बात कर रहे हैं कि अन्ना टीम के सदस्य भी दूध के धुले नहीं हैं तो क्यों मंच लगाकर भाषण करने चल दिये। अर्थात् अब भ्रष्टाचार के विरुद्ध बोलने से पहले अपना दामन साफ होने का प्रमाणपत्र लाइए। वह प्रमाणपत्र कहाँ मिलता है भाई? उसी सत्ता प्रतिष्ठान में न जिसके विरुद्ध आन्दोलन खड़ा किया जाना है…! फिर यह प्रमाणपत्र तो मिलने से रहा।
एक आशा प्रिन्ट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से की जाती रही है लेकिन अब इस भ्रष्ट व्यवस्था में उसकी हिस्सेदारी और भागीदारी लगभग स्थापित हो चुकी है। नेट आधारित वैकल्पिक मीडिया का हश्र भड़ास4मीडिया के यशवन्त के उदाहरण से स्पष्ट हो चुका है। फेसबुक और ट्वीटर पर जितनी चिल्ल-पों मचा लीजिए, कोई खास परिणाम नहीं निकलने वाला।
देश की आदालतों के बारे में कुछ न कहा जाय वही बेहतर है। अवमानना का हथियार धरे ये माननीय जिस तरह के फैसले सुना रहे हैं उनसे दाँत खट्टे हो रहे हैं। लेकिन किनके दाँत खट्टे हो रहे हैं इसका अनुमान आप खुद ही लगा सकते हैं।
ऐसे में इस भ्रष्टाचार का आप क्या कर लोगे?
मैं देख रहा हूँ कि इस समाज के प्रभु वर्ग को भ्रष्टाचार से कुछ खास दिक्कत नहीं है। वे शायद इसी व्यवस्था में अधिक सुविधाजनक स्थिति में हैं। जिन्हें दिक्कत है उनकी आवाज सुनने वाला कोई नहीं है। अन्ना हजारे के आन्दोलन तक को लगभग कुचल दिया गया है अथवा वह अपनी स्वाभाविक इतिश्री की ओर बढ़ रहा है। इसलिए मुझे लगता है कि फिलहाल इसके कम होने या समाप्त होने की फिलहाल कोई संभावना दूर-दूर तक नहीं है।
तो क्या अब कोशिश की जाय कि इस लूटतंत्र में अपने लिए एक छोटा हिस्सा कैसे जुगाड़ लिया जाय, या इसे पापकर्म मानकर केवल अपने को इससे दूर रखने का संतोष पाला जाय?
आपका क्या खयाल है?
(सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी)
सारी बात नीयत को लेकर है.इस सरकार की ही नहीं सारे दलों की नीयत ठीक नहीं है,हमारे तंत्र को चलाने वाले बाबू,अफ़सर सब के सब भ्रष्टाचार में पल-पुस रहे हैं.
जवाब देंहटाएं...कांग्रेस को इस मसले को गंभीरता से लेना चाहिए जो उसने नहीं किया और उसी का खामियाजा वह भुगत रही है और आगे और भुगतेगी !
बहुत भयानक आसार दिख रहे हैं ....मीडिया को खबर चाहिए और अब अन्ना उनके लिए खबर नहीं रहे ..
जवाब देंहटाएंअदालतों का कुछ न कहिये ..बिनही कहे भाल दीं दयाला
कितने ही आलतू फालतू मामलों का स्वतः संज्ञान लेने वाला न्यायालय भी एक भ्रष्टतम नेत्री की कारगुजारियों को देख नहीं पाया
युद्ध में लोग दुश्मनों को भी अपने साथ मिलाने का प्रयास करते हैं लेकिन यहां तो अन्ना टीम ने अपने समर्थकों को ही साम्प्रदायिक कहकर अलग कर दिया, ऐसे में कौन साथ देगा। जिस समाज के लिए वे लोगों को साम्प्रदायिक कहते हैं वो समाज तो कभी देशहित के आंदोलनों में साथ देता नहीं फिर कैसे आंदोलन सफल होंगे?
जवाब देंहटाएंपता नहीं क्या भविष्य नियत है, देश का।
जवाब देंहटाएंसत्य यही है.
जवाब देंहटाएंएक पूर्व प्रधानमंत्री ने भ्रष्टाचार पर टिपण्णी करते हुए कहा था -करप्शन इज ग्लोबल फेनामिना
.जिसका ओर- छोर न हो उसे कैसे पकडे और ख़त्म करें
आटे में नमक होना चाहिये, आखिर नमक में आटा मिला रहे हैं, जनता कब तक सहेगी ।
जवाब देंहटाएंअन्ना टीम खुद ही प्रमाणपत्र बांटने में लगी हुयी है कभी किसी को साम्प्रदायिक ठहरा देती है कभी किसी का अपमान कर देती है तो लोग तो दूर होते ही चले जायेंगे !!
जवाब देंहटाएंटीम अण्णा सत् चरित्र / ईमानदारी के दम्भ का शिकार हो गयी?! :-(
जवाब देंहटाएंआपकी आशंका सच साबित हुई। आंदोलन समेट लिया गया।
जवाब देंहटाएंसाबित हो गया. भ्रष्टाचार का भविष्य सचमुच बहुत अच्छा है.
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