आज मुझे बहुत बड़े कन्फ़्यूजन ने घेर रखा है। दोपहर बाद खबर आयी कि सर्वोच्च न्यायालय ने रमेश चन्द्र त्रिपाठी की याचिका खारिज कर दी है। अर्थात् उन्होंने अयोध्या विवाद के फ़ैसले को स्थगित करने के जो-जो कारण गिनाए थे उनपर सभी पक्षों की राय जानने के बाद अदालत इस नतीजे पर पहुँची कि अब फैसला हो ही जाना चाहिए।
मैं ऑफिस से यह चिंता करता हुआ लौटा कि अब कांग्रेस पार्टी क्या बयान देगी। दरअसल जिस दिन (२३ सितम्बर को) सर्वोच्च न्यायालय ने श्री त्रिपाठी की याचिका सुनवायी के लिए स्वीकार करते हुए सभी पक्षों को नोटिस जारी करने का आदेश दिया था और उच्च न्यायालय को तबतक फैसला स्थगित रखने का आदेश दिया था उस दिन कांग्रेस प्रवक्ता ने इसका जोरदार स्वागत किया था। यानि कांग्रेस खुश थी कि फैसला टल रहा है। अब आज याचिका खारिज होने के बाद क्या विकट स्थिति उत्पन्न हो गयी होगी। क्या आज बीजेपी वाले स्वागत करेंगे फैसले का?
घर पहुँचते ही मैने टीवी खोल दिया। सभी चैनेल अपने-अपने पैनेल के साथ चर्चा में लगे हुए थे। मुझे थोड़ा भी इंतज़ार नहीं करना पड़ा। कांग्रेस के प्रतिनिधि प्रायः सभी चैनेल्स पर मौजूद थे और आज के फैसले का भी ‘स्वागत’ कर रहे थे। बीजेपी तो स्वागत की मुद्रा में थी ही। पहली बार में तो मुझे अपने कानों पर विश्वास ही नहीं हुआ। लेकिन बार-बार सुनने पर मानना ही पड़ा कि वे इस निर्णय का स्वागत ही कर रहे हैं। अब मैं सकते में हूँ।
मेरे भोलेपन पर आप हँस सकते हैं। मैं इन नेताओं के बारे में इतना भी नहीं जानता। लानत है। कौन वाला स्वागत असली था और कौन वाला नकली? समझ नहीं पा रहा हूँ। आप मेरी उलझन सुलझाएंगे क्या?
शायद न्यायालय के फैसले का सम्मान करने की बात आज भी स्वागत योग्य है।
(सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी)
आपकी उलझन को कोई नहीं नहीं सुलझा सकता ......हमारी तो औकात ही क्या ?
जवाब देंहटाएंभारत के नागरिक होते हुए एक उलझन में इतने परेशान हैं .. यहां तो चारो ओर उलझन ही उलझन है !!
जवाब देंहटाएंलेख अच्छा लिखा है ........
जवाब देंहटाएंपढ़िए और मुस्कुराइए :-
जब रोहन पंहुचा संता के घर ...
आपकी पोस्ट भी स्वागत योग्य है :)
जवाब देंहटाएंइस सवाल का जबाब तो यह नेता ही दे सकते है? या वो मुर्ख लोग जो इन की बातो मै आ कर आपस मै लडते है ओर देश को, हम सब को नुकसान पहुचाते है
जवाब देंहटाएंनेतोओं ने एक बात मन में अच्छी तरह बिठा लिया है कि माननीय न्यायालय का जो भी फैसला आए उसका स्वागत करना है।
जवाब देंहटाएंयहाँ ब्लॉग जगत में क्या कोई ऐसा नही है जो जो एक ही मत के पक्ष-विपक्ष वाले पोस्ट में जाकर NICE टीप कर आता हो! कभी देखा जैसा लगता है!
क्या देश की सारी चिन्ताओं का ठेका त्रिपाठियों ने ही ले रखा है ?
जवाब देंहटाएंऔर लोगों को भी मौका मिलना चाहिए ।
भ्रम निवारण के लिए क्वाचिद्न्यतोपि पर पहुंचें ,..,.
जवाब देंहटाएंHar baat स्वागत योग्य है...
जवाब देंहटाएंअरे भाई साहब दो पार्टियाँ स्वागत के मुद्दे पर एक हैं. इस बात का स्वागत हों चाहिए.
जवाब देंहटाएंआपकी पोस्ट का स्वागत है:-)
लो, एक स्वागत हम भी ठेल दें। पता नहीं कल मारपीट की बात चलने लगे! :)
जवाब देंहटाएंशुभकामनाओं के सिवा और क्या कहूं?
जवाब देंहटाएंभारतीय जनता तो कब से स्वागत को तैयार बैठी थी...
जवाब देंहटाएंहार कर अब नेताजी भी तैयार हो गए हैं...
राजनैतिक पार्टियों के बयान में कितनी सत्यता रहती है और कितनी राजनीति, नहीं मालूम।
जवाब देंहटाएंये खुद उलझे हुए है की कहे क्या हम तो यही कहेंगे की आपकी पोस्ट का स्वागत है |
जवाब देंहटाएंTHERE ARE MANY A SLIP BETWEEN THE CUP AND THE LIP.... तो इंतेज़ार कीजिए प्याले को होंटॊं तक आने का :)
जवाब देंहटाएंहमें तो विवेक सिंह जी की बात मजेदार लगी। नाई-नाई बाल कितने जजमान सामने ही हैं। कल देखिए क्या होता है।
जवाब देंहटाएंलो आप भी उलझन में पड़ गये? मेरे कुछ ऐसे ही प्रश्नों को सुलझाते हुए आपने मेरे ब्लॉग पे अबतक का सबसे बड़ा कमेन्ट कर डाला था. पढ़ कर मै काफी हद तक संतुष्ट भी हुआ था. मै तो यह उलझन दूर करने से रहा, उल्टे एक बार फिर से उलझन में पड़ गया हूँ. उलझन सुलझ जाय तो मुझे भी बताइयेगा. वैसे ये कल के बाद कुछ और बढती हुई नजर आ रही है???????
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आपकी 'उलझन' का भी...स्वागत है.... :)
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