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सोमवार, 15 मार्च 2010

क्षमा प्रार्थना…

 

DSC02527 हे मूषक राज,

बहुत भारी मन से आपको विदा कर रहा हूँ। आपको कष्ट देने का मेरा कोई इरादा नहीं था। लेकिन क्या करूँ, आपने हमारे परिवार को ऐसा मानसिक कष्ट दिया कि आपको अपने घर से दूर कर देने के अलावा कोई चारा नहीं बचा था। आपसे विनती करने का कोई माध्यम होता तो मैं आपसे हाथ जोड़कर कहता कि आप इस घर के निरीह प्राणियों पर दया करिए। लेकिन आपको सलाखों के पीछे कैद करने के सिवा हमारे पास कोई दूसरा हल नहीं था। आपको जो कष्ट हुआ उसके लिए हम क्षमा प्रार्थी हैं।

अपने विचित्र शौक को पूरा करते हुए आपने हमारे घर के किचेन से लेकर ड्राइंग रूम तक और आंगन से लेकर बेड रूम तक क्या-क्या नहीं काट खाया। कितने कपड़े, जूते-चप्पल, और घरेलू सामान आपकी निरन्तर वृद्धिमान दन्तपंक्ति की भेंट चढ़ गये। लेकिन हम यह सब कुछ सहते रहे। एक तो आपकी चंचल गति और दूसरे हमारी धर्म भीरु मति- दोनो आपकी सुरक्षा में सहायक रहे। आप हमारे आराध्य देव प्रथम वंदनीय, प्रातः स्मरणीय, गणपति, गणनायक, विघ्नविनाशक, लम्बोदर, उमासुत श्री गणेश जी के वाहन हैं। आपको किसी प्रकार की क्षति पहुँचाना हमारे लिए पाप की बात है। ऐसे कई अवसर आये जब आप हमारी आँखों के सामने ही हमें चिढ़ाते हुए चलते बने। घर के मन्दिर में चढ़ाया हुआ प्रसाद उठाने से जो हम चूक गये तो उसका भोग आप ही लगाते रहे। कदाचित्‌ मेरी गृहिणी मन ही मन खुश होती रही कि शायद आपकी पीठ पर बैठकर भगवान स्वयं भोग लगाने आते हों।

खुराफ़ात का अन्त आप छत से रोशनदान की ओर आने वाले डिश-टीवी के केबल पर चढ़कर घर के भीतर आते-जाते रहे। भारी देह होने के कारण एकाध बार अचानक ताली की आवाज से विचलित होकर आप फर्श पर आ गिरे तो भी आपका बाल बांका नहीं हुआ। बल्कि हम ही पाप के भागी होने के डर से सहम गये थे।

बचपन में अपने गाँव पर गेंहूँ की कटाई के बाद खाली हुए खेतों में आपका शिकार करने वालों को मैं देखता था। आपके बिल की खुदाई करने पर जमीन के भीतर आपकी बनायी हुई जो सुरंग मिलती थी उसे देखकर हम चौक जाते थे। आपने कितनी सफाई से भीतर ही भीतर गेंहूं की बालियों को इकठ्ठा रखने के लिए बड़े-बडे गोदाम बना रखे होते थे। अपने नवजात बच्चों के लिए सुरंग की सबसे भीतरी छोर पर नर्म मुलायम घास के बिस्तर सजा रखे होते थे। जब ये मुसहर जाति के शिकारी कुदाल से आपका आशियाना खोद रहे होते और आपके पूरे खानदान का सफाया कर रहे होते तो मेरा कलेजा कांप उठता था। आप द्वारा जमा किया हुआ अनाज उनका भोजन बन जाता। लेकिन जिस किसान के खेत पर आपकी कृपा हो जाती वह सिर पकड़ कर बैठ जाता।

मैने देखा था कि आपको पानी से बहुत भय हुआ करता था। आपको बिल से बाहर निकालने के लिए उसमें पानी भर दिया जाता था। आप जब घर में आयी बाढ़ से बचने के लिए बदहवास होकर भाग रहे होते तो आपके पीछे डण्डा लेकर दौड़ते गाँव के लड़के और उनके साथ आपका पीछा करने वाले कुत्ते अपनी पूरी शारीरिक शक्ति झोंक दिया करते थे।  बहुधा आप उन्हें चकमा देने में सफल हो जाते। लेकिन वे जब आपका शिकार कर लेते थे तो आपको आग में भूनकर नमक मिर्च के साथ चटखारे लेकर खाते हुए  वे लोग मेरे मन को घृणा से भर देते थे।

कुत्ते और बिल्लियों के लिए आपका उत्सर्ग तो अब किंवदन्ती बन चुका है। टीवी पर टॉम और जेरी का कार्टून देखते हुए मेरे बच्चे हमेशा आपके चरित्र से सहानुभूति रखते हैं। बिल्ले को हमेशा छकाते हुए आप सदैव तालियाँ बटोरते रहते हैं, लेकिन असली दुनिया आपके लिए इतनी उत्साहजनक नहीं है। शहरी जीवन शैली में आपको बर्दाश्त करने का धैर्य कम ही लोगों में है। आपको मारने के लिए तमाम जहरीले उत्पाद बाजार में लाये गये हैं। अब तो एक ऐसा पदार्थ बिक रहा है जिसे खाकर आप घर से बाहर निकल जाते हैं और खुले स्थान पर काल-कवलित हो लेते हैं।

एक बार गाँव में जब आपकी प्रजाति ने घर में कुहराम मचा रखा था तो एक दवा आँटे में मिलाकर जगह जगह रख दी गयी थी। उसके बाद जो हुआ उसे याद करके हम काँप जाते हैं। पूरे घर में बिखरी हुई लाशें कई दिनों तक इकठ्ठा की जाती रहीं। दो-चार दिन बाद जब दुर्गन्ध के कारण घर में रहना मुश्किल हो गया तो नाक पर पट्टी बाँधकर चींटियों की पंक्ति का सहारा लेते हुए अनेक दुर्गम स्थानों पर अवशेष मृत शरीरों को खोजा गया।   पूरे घर को शुद्ध करने के लिए हवन-अनुष्ठान कराना पड़ा। इसके बाद घर में यदि कोई बीमार हो जाता तो इसे उस हत्या के पाप का प्रतिफल माना जाता रहा। तबसे हम आपका समादर करने के अतिरिक्त कुछ सोच ही नहीं सकते।

हमने आपको कैद करने के बारे में कदापि नहीं सोचा होता यदि आपने शौचालय की सीट में लगे साइफ़न में इकठ्ठा पानी को अपना स्विमिंग पूल न बनाया होता। जाने आपको इस गन्दे पानी में स्नान करने का शौक कहाँ से चढ़ गया? इधर हमने देखा कि आपके पैरों के निशान कमोड से प्रारम्भ होकर वाश बेसिन पर और साबुनदानी को उलटने –पुलटने के बाद बरामदे में रखे सभी सामानों पर अपनी छाप छोड़ते हुए डाइनिंग टेबुल तक पहुँचने लगे थे। आपने हमारे सरकारी मकान के बाथरूम में लगे जीर्ण हो चुके दरवाजे के निचले कोनों पर छेद बना रखा था।

DSC02541 हमने पहली कोशिश तो यही की थी कि आपको ट्वायलेट में जाने से रोका जाय। रात में सोने से पहले हमने उन छेदों को एक बोरे से बन्द करके उसपर ईंट रख दिया था। सुबह हमने देखा कि आपने गुस्से में बोरे को कुतर दिया है और उसकी लुग्दी पूरे बाथरूम में बिखरा दी है। कदाचित इस गुस्से के कारण ही आपने उस रात रोज से ज्यादा लेड़ियाँ भी  भेंट कर दी थीं। हमने अगले दिन उन छिद्रों को टिन की प्लेट से ढँक दिया। लेकिन आप हार मानने वाले हैं ही नहीं। आपने अगली रात को उस टिन के ठीक बगल में दूसरा छेद बना लिया और अपना नरक-स्नान बदस्तूर जारी रखा।  छेद के पास ही दरवाजे के बाहर हमने जो एक चूहेदानी लगा रखी थी उसे भी आपने नहीं छुआ। आपको तो भीतर घुसने की जल्दी रही होगी।एक रास्ता बन्द हुआ तो दूसरा खोल लिया

हमें विश्वास हो गया कि आपको ट्वायलेट के भीतर जाने से नहीं रोका जा सकता है। आप स्नान करने से पहले कुछ और नहीं करते। चूहेदानी में रखे आलू के टुकड़े को आप तभी छुएंगे जब स्नान ध्यान पूरा हो जाएगा। मैने इस बार चूहेदानी को अन्दर ही लगा दिया ताकि जब आप अपने बाथटब से बाहर निकलें तभी भोजन की तलाश में उधर आकर्षित हों। इस बार युक्ति काम कर गयी। रात के करीब एक बजे जब खटाक की आवाज हुई तो मुझे चैन मिला। उठकर मैने तत्क्षण देखा। आप मेरे कैदी हो चुके थे। सद्दाम हुसेन को पकड़ने के बाद राष्ट्रपति बुश के चेहरे पर जो विजयी मुस्कान थी उसे भी मात देती हुई खुशी के साथ मैंने रात बितायी। आपको आपके पसन्दीदा स्थान पर ही कैदबन्द छोड़ दिया था मैने।

DSC02553 जब सुबह उठकर देखा तो आप अपने पिंजड़े के साथ कमोड की सीट में लुढ़के हुए थे। गजब का प्रेम था आपका उस नरक के रस्ते से। मैने एक प्लास से आपको पिजड़े सहित उठाया, आंगन में ले जाकर नल के पानी से विधिवत स्नान कराया और सुबह की ताजी धूप में सुखाने के बाद आपकी यादों को कैमरे में कैद करने के लिए उसी डाइनिंग टेबुल पर रख दिया जिसपर आप प्रायः विचरण करते रहते थे। आपको सलाखों के पीछे बहुत देर तक रखने की मेरी कोई मंशा नहीं थी। लेकिन मेरी श्रीमती जी सोमवती अमावस्या के अवसर पर पीपल देवता की पूजा करने, उनकी १०८ बार परिक्रमा करने गयी हुई थीं और मेरे बच्चे सो रहे थे। उन सबको आपका दर्शन कराये बगैर मैं आपको भला कैसे जाने देता?

अब जबकि मैने आपको अपने घर से एक किलोमीटर दूर इस मन्दिर के प्रांगण में लाकर छोड़ने का निश्चय किया है तो मन में मिश्रित भाव पैदा हो रहे हैं। दुःख और सन्तोष दोनो कुलांचे भर रहे हैं। उम्मीद है कि मन्दिर से सटा हुआ यह हरा-भरा पार्क आपको निश्चित ही अच्छा लगेगा। इस मन्दिर में दक्षिणमुखी हनुमान जी है, भगवान शंकर जी हैं, दुर्गा माँ की छत्रछाया भी है और आपके स्वामी गणेश जी भी पदासीन हैं। देखिए न, यहाँ कितनी धर्मपरायण सुहागिन औरतें पीपल के चबूतरे पर पूजा-परिक्रमा कर रही हैं। बड़ी मात्रा में प्रसाद चढ़ाया जा रहा है। आप इनका आनन्द उठाइए। हाँ, अपना नरक-स्नान का शौक त्याग दीजिएगा तो भला होगा।

आशा है कि मैने आपको जो नया बसेरा दिया है उसको मद्देनज़र रखते हुए आप मुझे माफ़ कर देंगे। मैने आपको पिजड़े में बन्द करके और नल के साफ पानी से स्नान कराके जो कष्ट दिया है और आपकी कैदी हालत में बेचैनी से किए गये क्रिया-कलाप दुनिया को दिखाने के लिए रिकॉर्ड किया है उसके लिए मैं क्षमा प्रार्थी हूँ।

सादर!

आपका एक अनिच्छुक भक्त

(सिद्धार्थ)

विदा से पूर्व मूषक राज के करतब

कैद में खुराफ़ाती

सलाखों के पीछे

22 टिप्‍पणियां:

  1. खोदा पहाड़ ब्लॉग का और निकला चूहा....

    लड्डू बोलता है...इंजीनियर के दिल से....
    laddoospeaks.blogspot.com

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  2. हमने भी इस महमान को छोड़ा था बहुत दूर।
    मगर कुछ दिन बाद फिर आ धमका बदस्तूर।
    सिद्धार्थ जी यंहीं पे आप मात खा गए।
    पीछे मुड़ कर देखो मूषक मियां फिर से आ गए।

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  3. ये सज्जन हमारे मोहल्ले में भी बहुत रहते हैं। जल निकासी की नालियाँ इन का आश्रय स्थल है। जब भी ये घर में घुस आते हैं फिर इन्हें कैद कर देश निकाला देना ही एक मात्र सजा है इन की।

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  4. ओह ! बुरे फंसे बेचारे. अब व्याकुल वीडियो देखकर हमारी सहानुभूति तो मूषक राज के साथ ही है.

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  5. मूषक राज के साथ हम हैं जी..हमारे यहाँ तो एक भी नहीं दिखते बेचारे.

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  6. इनको पिजड़े में बंद करना भी अब सब के बस में नहीं रहा,काफी मशक्कत हुई होगी.

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  7. इतना बड़ा ताला! ये तो जेल का ताला लग रहा है.

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  8. हे मानेका गांधी जी; आयें और पाप कर्म का भण्डाफोड करें! :)

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  9. बहुत अच्छा लिखा है सिद्धार्थ जी, रवीन्द्र नाथ त्यागी और शरद जोशी जी एक साथा याद आ गये। सूक्ष्म निरीक्षण और रोचक प्रस्तुतीकरण के लिये साधुवाद!
    ताला चूहे के अनुपात मे बड़ा है। कोषागार का है क्या?

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  10. आपके इस सजीव चित्रण ने तो हमारे हरे हरे घाव को और भी भरा भरा कर दिया....
    बस इतना बता दीजिये कि यह अनुपन संयंत्र कहाँ मिलता है...यहाँ के बाज़ार की तो ख़ाक छान ली हमने...लोग केवल दवाइयां रखते हैं,जिन्हें कि मूषक राज सूंघते तक नहीं...

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  11. क्या कहने हैं आपकी सृजन संज्ञा ने तो मूषक पुराण ही रच दिया है -अब समझ में आया बच्चू को !

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  12. एक कवि जी थे चूहे पकड़ते और मुँह अँधेरे प्रकाशक के दरवाजे छोड़ आते.आपने अपने चूहे को मंदिर का रास्ता दिखाया. इससे यह माना जा सकता है कि आपको किसी से बैर नहीं है.
    ...दिलचस्प पोस्ट के लिए बधाई.

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  13. ये तो खौफनाक मंजर था.. पर आपने इसे करूँ कथा में परिवर्तित कर दिया.. आपका लेखन तो झन्नाटेदार ही.. मूषकराज के करतब भी कम निराले नहीं थे.. मज्जे ही आगए..

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  14. ताला चूहे के अनुपात मे बड़ा है। कोषागार का है क्या? Question repeat.

    एक पोस्ट के लिये बेचारे चूहे पर इतने अत्याचार किये हैं आपने .यह आपकी पोस्ट लोलुपता का जीताजागता उदाहरण है ।

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  15. Aapki lekhan shaili ka to pahle se hi kayal hu lekin es post ne to?????????????????????
    Wakiae mushak raj ke tandav nritya se lekar unke vidai tak ka bada hi sundar varnan kiya hai aapne.Der se hi sahi lekin es durust post ko padhkar maja aa gaya........

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  16. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  17. हरे कृष्ण हरे कृष्ण ! क्या प्रवाह है!! आपबीती ऐसी उतरी है कि कागज भी ऐंठ गया होगा।
    अमित जी ने ठीक ही रवीन्द्र नाथ त्यागी और शरद जोशी का नाम लिया है।
    ..बनारस स्टेशन पर नवजात मानुष बच्चे जितने बड़े मूषक दिखते हैं। वैसे इनके बच्चे बड़े क्यूट होते हैं। नुकसान तो कर ही दिया है। अब समय निकाल घर की मरम्मत करा ही दो। कोई न मिले तो बताना, जो मिस्त्री मेरे पड़ोसी गढ्ढे को ढँकेगा उसे भेज दूँगा :)

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  18. Oho! Mushak raaj pe koyi itna badhiya likh sakta hai, socha na tha..ek baar maine bhi pinjda rakha...tab mai sholapur me thi..ek hee raat me 22 chuhe ghuse! Doosare din 18 uske baad kabhi nahi..unki dhamachaukdi to barabar chalti rahi..antme hamne ghar chhoda..

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  19. न श्रीश पाठक जी ने लैकोनिक टिप्पणी की बात की होती ज्ञानदत्त जी से, न उन्होंने इसका ज़िक्र किया होता अपने ब्लॉग की पोस्ट में, न उनकी पोस्ट से लिंक लेकर मैं श्रीश जी की ओस्ट पर आता और वहाँ की गई टिप्पणियों में आपकी टिप्पणी देख कर यहाँ आ पाता।
    और तब वंचित रह जाता इतने उम्दा लेखन के रसास्वादन से।
    वाकई बहुत सधा हुआ लिखा है आपने। चूहे को स्टार बना दिया! आप इस चूहे को दर्शील सफ़ारी बनाने वाले आमिर ख़ान हैं जी। वैसे मैं आया यहाँ आपकी साफ़गोई से प्रेरित होकर था, श्रीश जी की कविता पर टिप्पणी से।
    मज़ा आ गया।

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  20. Ab Kya who Chooha pakadne kafi door chale gaye hain kya.

    Blog soona soona lag raha hai. Kya ho gya apko, Tabiyat to theek thaak hai. Siddharth G.

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  21. मसिजीवी जी का चूहा पोस्‍ट मुझे आज भी याद है, इलाहाबाद मे मसिजीवी जी से मिलने पर सबसे पहली बात इसी मुद्दे पर हुई थी, आता हूँ कि दिन मूषकराज कथा आपकी श्रीमुख से सुनने को

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  22. आपकी लेखनी, सहनशक्ति व अहिंसा को सलाम.
    घुघूतीबासूती

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