पिछले दिनों त्रिवेणी महोत्सव की धूम में एक बहुत अच्छे कार्यक्रम की चर्चा करने से चूक गया था। मैने पहले भी आपलोगों का परिचय इमरान प्रतापगढ़ी और उनकी संस्था ताजा हवाएं से कराया था। इस नौजवान शायर में कुछ अलग हटकर अनूठे सांस्कृतिक आयोजन करने का उत्साह देखते ही बनता है। मई २००८ में ब्लॉगरी की कक्षा लगाने का प्रयोग इन्हीं के माध्यम से सफ़ल हो पाया था।
गत २१ फरवरी को रविवार के दिन इन्होंने उत्तर प्रदेश और आसपास के अनेक सरकारी अधिकारियों को इकठ्ठा कर लिया। किसी मीटिंग आदि के लिए नहीं बल्कि उनके भीतर बसे कवि और शायर को सम्मानित करने के लिए तथा उनसे काव्य पाठ सुनवाने के लिए। इसमें नीतिश्वर कुमार जैसे आई.ए.एस. अधिकारी भी थे तो रिज़वान अहमद व एस.पी. श्रीवास्तव जैसे वरिष्ठ आई.पी.एस. अधिकारी भी थे। इन्द्रमणि जैसे रेलवे के विजिलेन्स अफ़सर भी थे राजकुमार सचान जैसे वरिष्ठ पी.सी.एस. अधिकारी भी। प्रशासनिक व्यस्तता के कारण कई अधिकारी अन्तिम क्षणों में न आ सके। इन अधिकारियों की खासियत यह थी कि इन लोगों ने एक मन्च पर पाल्थी मारकर बैठे हुए जूनियर-सीनियर का प्रोटोकॉल दरकिनार करके विशुद्ध काव्यरस का आदान-प्रदान किया। प्रायः सभी अधिकारी कवियों ने अपनी काव्य प्रतिभा से चमत्कृत कर दिया। कुछ चुनिन्दा रचनाओं की रिकॉर्डिंग मैं अगली पोस्टों में सुनवाने का प्रयास करूंगा।
अभी तो मैं यह बताना चाहता हूँ कि इस कार्यक्रम में बजने वाली तालियों ने मुझे कविताई की ओर बड़ी मजबूती से ढकेलना शुरू कर दिया। यमुना तट पर सितारों के जमघट, ट्रेजरी की नौकरी और होली की भागदौड़ के बीच कुछ शब्दों की जोड़-गाँठ रुक-रुककर चलती रही। आज जब होली की छुट्टी पूरी होने के बाद भी इलाहाबाद में एक दिन अतिरिक्त रंग खेला जा रहा है तो मैं घर में दुबका हुआ यह कारनामा पूरा करने में सफ़ल हो गया हूँ। अब गुणी जन इसे पढ़कर बताएं कि मुझे इस क्षेत्र में आगे बढ़ना चाहिए कि नहीं :)
दिल की हर बात सरे-राह निकाली नहीं जाती प्यार की धड़कन पर दिल में दबा ली नहीं जाती
हमने देखे हैं बहुत लोग जिन्हें प्यार हुआ पर ये दौलत सभी लोगों से संभाली नहीं जाती
था हुनरमन्द और गैरत-ओ- ईमान का पक्का फिर भला कैसे उसकी उसकी पगड़ी उछाली नहीं जाती
बहुत गरीब था यह जुर्म किया था उसने वर्ना मासूम उसकी बेटी उठा ली नहीं जाती
सितम तमाम दफ़न हैं चमकती खादी में वर्ना हसरत वज़ीर बनने की पाली नहीं जाती
तंग नाले के किनारे जला लिया चूल्हा कामगारों से भूख अब जरा टाली नहीं जाती
लूट, हत्या, गबन, फिरका परस्ती, महंगाई इनसे अखबार की सुर्खी कभी खाली नहीं जाती
देख ‘सत्यार्थमित्र’ अपने रहनुमाओं को जिनके घर सजते हैं हरहाल दिवाली नहीं जाती -सिद्धार्थ
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चलते-चलते आपको अपने मित्र और उम्दा शायर मनीष शुक्ला की वो ग़जल सुनवाता हूँ जिसने उस प्रशासनिक अधिकारियों के कवि सम्मेलन में खूब तालियाँ बटोरी। मुझे विश्वास है ये आपको जरूर पसन्द आएगी।
जुगनुओं के तल्ख सवाल! वाह!
जवाब देंहटाएंगज़ल ही है जिनमें जुगनू सवाल कर पाते हैं!
बढियां रिपोर्टिंग और आपकी गजल भी ....
जवाब देंहटाएंलाजवाब रिपोर्ट के साथ गजल , बहुत ही बेहतरीन लगा ।
जवाब देंहटाएंbahut shaandar post,bdhai.
जवाब देंहटाएंसोचेगा कौन रोशनी की भाग दौड़ में
जवाब देंहटाएंमिट्टी के दिए बेचने वालों क्या हुआ
...बेहतरीन गज़ल सुनवाई आपने.
..आभार.
बहुत गरीब था यह जुर्म किया था उसने
जवाब देंहटाएंवर्ना मासूम उसकी बेटी उठा ली नहीं जाती
पुरी गजल ही बेहतरीन है, दर्द ओर मजबूरी
धन्यवाद
@ तंग नाले के किनारे जला लिया चूल्हा
जवाब देंहटाएंकामगारों से भूख अब जरा टाली नहीं जाती
अजब संजोग है कि आज शाम यही दृश्य मुंबई के कमानी मिलिट्री कैंप से कुछ दूर देख आ रहा हूँ। काले पत्थरों वाले फुटपाथ के नीचे से सटे सूखे नाले में चूल्हा जलाये कई मजदूरों को देखा आज। बहुत अजीब लगा था यह दृश्य देख कि फुटपाथ से सटे नाले में चूल्हा जलाया गया है ताकि चूल्हे की दीवाल तीन ओर से बनाने के बजाय दो ओर से बना कर झटपट खाना बनाया जाय।
शायद इन लाईनों पर मेरा ध्यान न जाता यदि आज के दृश्य को न देखता।
बहुत सजीव लेखन है।
गज़ल कहने का आपका यह प्रयास सराहनीय है| जिन सामजिक सरोकारों को आपने संबोधित किया है वे बरबस ध्यान आकर्षित करते हैं| मनीष शुक्ल जी का कलाम बहुत पसंद आया| उन तक मेरी दाद जरूर पहुंचा दें| बहुत उम्दा अश'आर पेश किये हैं उन्होंने|आपको एवं मनीष जी दोनों को बधाई!
जवाब देंहटाएंअगर ये आपकी पहली रचना है तो फिर तो मेरे लिए घोर आश्चर्य का विषय है
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर भाव निकल कर आये है और हर शेर में आपकी कही बात सीधे दिल पर असर कर रही है
बहुत सुन्दर प्रयास
आगे भी सुनना और पढ़ना चाहूँगा
आप तो बढ़ चलो इस राह पर...जुगनू हमारे जैसे राह में रोशनी देते रहेंगे मिट्टी के दिये से बेहतर...विश्वास रखिये.
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा रचना!
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया लगा
जवाब देंहटाएंrealy mind blowing
जवाब देंहटाएंबहुत गरीब था यह जुर्म किया था उसने
जवाब देंहटाएंवर्ना मासूम उसकी बेटी उठा ली नहीं जाती...
बहुत सुंदर ग़ज़ल.... उपरोक्त पंक्तियों ने तो दिल को छू लिया....
बहुत सुंदर ग़ज़ल....
आभार....
अरे क्या गजब-गजब शेर कह डाले ! बधाई!
जवाब देंहटाएंजन्म दिन भी साथ में मुबारक हो!
Bahut khub. Pitare se ab gajal bhi nikalne lage........
जवाब देंहटाएंMujhe to hai vishvas ki abhi bahut kuchh daba pada hai yaha,vakt sang intjar hai kaha tak dekh pata hai jahan.
wishing you very very happy birth day.....
हेप्पी बड्डे :)
जवाब देंहटाएंरफ़्ता रफ़्ता आप तो पूरे गज़लगो हो गये !
जवाब देंहटाएंजन्मदिवस मुबारक !
ग़जल के व्याकरण का ज्ञान मुझे नहीं है लेकिन भाव सरिता का प्रवाह और सरोकारों पर पैनी नज़र को तो दाद दे ही सकता हूँ। एक से बढ़ कर एक। 'संगति कीजै साधु की' ऐसे ही नहीं कहा गया है।
जवाब देंहटाएंजन्मदिन की एक बार पुन: बधाइयाँ।
मैं बहुत पहले ही कह चुका हूँ कि कविताओं के लिए अलग ब्लॉग बनाओ लेकिन घर की मुर्गी साग बराबर। दुनिया जहान मे गुणी जन खोजते और उनसे सलाह माँगते फिर रहे हो।
होली के मौके पर इतनी गंभीर कविता सुना डाली आपने । सारी भंग उतार डाली आपने । खैर होली की देर से ढेर सारी शुभकानाएं । हैप्पी होली आप सब को ।
जवाब देंहटाएंहमने देखे हैं बहुत लोग जिन्हें प्यार हुआ
जवाब देंहटाएंपर ये दौलत सभी लोगों से संभाली नहीं जाती
था हुनरमन्द और गैरत-ओ- ईमान का पक्का
वर्ना तय था कि उसकी पगड़ी उछाली नहीं जाती
पूरी गज़ल ही लाजवाब है। और रिपोर्टिंग पढ कर खुशी हुयी कि लोग बहुत अच्छे प्रयास कर रहे हैं साहित्य के प्रति लोगों मे जागरुकता लाने के लिये । धन्यवाद
chuhe ki katha bahut achhi hai,ghazal mein achhi tab azmaeesh ki hai,jari rakhiye...manish
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