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सोमवार, 30 नवंबर 2009

एक वी.आई.पी. शादी जयपुर में...।

 

विकास परिणय प्रीति आजकल शादियों का मौसम चल रहा है। ज्योतिषियों ने बता दिया कि शादी के लायक शुभ मुहूर्त की तिथियाँ गिनती की ही हैं। इसका नतीजा यह हुआ कि एक ही तिथि में अनेक शादियों के निमन्त्रण मिल जा रहे हैं। अकेले सबको निभा पाना कठिन हो गया है। लेकिन कुछ खास शादियाँ ऐसी होती हैं जिनमें आप जाने को बाध्य होते हैं और कदाचित्‌ स्वयम उत्सुक भी। ऐसी ही एक असाधारण शादी का न्यौता मुझे मिला और मैने दिल्ली से जयपुर जाने वाली बारात में शामिल होने का कार्यक्रम बना लिया। इलाहाबाद से दिल्ली के लिए प्रयागराज एक्सप्रेस और जयपुर से वापस इलाहाबाद के लिए ज़ियारत एक्सप्रेस में आरक्षण महीना भर पहले ही कराया जा चुका था।

शादी तमिलनाडु कैडर के एक आई.पी.एस. अधिकारी की थी जो राजस्थान कैडर की अपनी बैचमेट से ही शादी कर रहा था। यह दूल्हा मेरा साला था इसलिए बारात में मेरी पोजीशन का अन्दाजा आप सहज ही लगा सकते हैं। लगातार जीजाजी... जीजाजी... सुनने का आनन्द ही (और खतरे भी) कुछ और है।:)

बस में बाराती बारात दिल्ली से जयपुर एक बस से जाने वाली थी। मुझे आगे की सीट मिली। बस में दूल्हे के माता-पिता, बड़े भाई, बहन, बहनोई, चार जोड़ी मौसी-मौसा, तीन जोड़ी मामा-मामी और इतने ही चाचा-चाची मौजूद थे। उन सबके बच्चे, बहुएं और दोस्त-मित्र मिलकर बस का माहौल पूरा बाराती बना रहे थे। अधिकांश बाराती मेरी ही तरह पूर्वी उत्तर प्रदेश के बस्ती, गोरखपुर, कुशीनगर, प्रतापगढ़, जौनपुर, सुल्तानपुर, बस्ती, और लखनऊ जैसे शहरों से रात भर ट्रेन की यात्रा करके पधारे थे। सभी अपने-अपने होटल से तैयार होकर प्रातः दस बजे के नियत समय पर बस में इकठ्ठे हो गये। लेकिन जो कुछेक बाराती स्थानीय दिल्ली के निवासी थे उन्होंने उम्मीद के मुताबिक तैयार होकर आने में पूरा समय लिया और बस दोपहर बाद डेढ़ बजे कूच कर सकी।

बस के चलते ही प्यास की पुकार सुनकर बिसलेरी की दो दर्जन बोतलें और बिस्किट वगैरह खरीदने के लिए बस रोकी गयी। फिर आगे बढ़े तो प्रायः सभी परिवारों के कैमरे निकल आये। महौल बारात के बजाय पिकनिक मनाने जैसा बन गया। मेरा सोनी का डिजिटल कैमरा ऐन वक्त पर बैटरी डिस्चार्ज्ड होने का सन्देश देकर बन्द हो गया। चलते समय चेक तो किया था लेकिन शायद कोई कसर रह गयी थी। खैर... मायूस होने का समय नहीं था, क्योंकि ‘जीजाजी’ अन्ताक्षरी खेलने के लिए बीच की सीटों पर बुला लिए गये। नयी उम्र के बच्चों और कुछ कम नयी उम्र की महिलाओं ने ऐसा शमां बाँधा कि हम केवल मूक श्रोता बने रह गये। कभी-कभार इस या उस टीम की गाड़ी फँस जाने पर अपने विद्यार्थी जीवन में याद रहे कुछ गाने सुझाते रहे और महिला बनाम पुरुष टीम की अन्ताक्षरी को  अनीर्णित समाप्त कराने में सफ़ल रहे।

करीब तीन बजे सबको ध्यान आया कि सुबह का हल्का नाश्ता तो बस के प्रस्थान करते समय ही नीचे उतर चुका था और अब बिस्किट-पानी भी लड़ाई हार चुके थे। योजना तो थी जयपुर पहुँचकर भोजन करने की; लेकिन पेट को क्या मालूम की जयपुर अभी काफ़ी दूर है। उसने तो ईंधन खत्म होने की नोटिस सर्व कर दी। फौरन मोबाइल बजने लगे। बस से करीब पन्द्रह मिनट आगे चल रहे दूल्हे मियाँ की टवेरा गाड़ी से सम्पर्क किया गया तो उन्होंने अपने दोस्तों के साथ एक काम लायक ढाबा खोज ही लिया। ‘परम पवित्र भोजनालय’ पर दूल्हे ने पन्द्रह मिनट के भीतर पीछे से आ रही बारात के लिए खाना तैयार करने का फरमान जारी कर दिया था।

दूल्हे के साथ ब्लॉगर

बारात को खिलाना कोई हँसी-खेल तो है नहीं...। लेकिन नये नवेले पुलिस अफ़सर दूल्हे की बात में शायद कोई विशेष प्रभाव रहा हो कि ढाबे पर जब हमारी बस पहुँची तो टेबल सज चुकी थी। सबने प्लेटें भरीं और पनीर, राज़मा, आलू-गोभी, चना-छोला की रसदार सब्जियों और अरहर की तड़का दाल के साथ गर्मागरम रोटियों की धीमी खेप पर हल्ला बोल दिया। अच्छी भूख पर जब गरम और स्वादिष्ट भोजन का जुगाड़ हो गया तो उससे मिलने वाली तृप्ति के क्या कहने...। एक घण्टे में सभी मीठी सौंफ़ फाँकते डकारते हुए बस में सवार हो गये।

इसके बाद जयपुर पहुँचने में आठ बज गये। जहाँ बारात को ठहरना था उस स्थान का लोकेशन किसी को पता नहीं था। कन्या पक्ष को मोबाइल पर बताया गया। एक गाड़ी रास्ता बताने आ पहुँची। लेकिन शायद अन्जान जगह पर समूह की बुद्धि लड़खड़ा जाती है। यहाँ भी उहापोह में करीब एक घण्टा खराब हो गया। ‘होटेल मोज़ैक’ में पहुँचकर हमने अपने आप को धन्य मान लिया। वहाँ की व्यवस्था देखकर ही हमारी आधी थकान जाती रही। एक शानदार कमरे की चाभी काउन्टर से लेकर हम लिफ़्ट से कमरे तक आये। बिस्तर पर बैठते ही उसमें धँसने का एहसास हुआ। फिर सम्हालकर लेट गये। सामने टीवी पर रिमोट चलाया तो भारत-श्रीलंका के बीच हो रहे कानपुर टेस्ट के तीसरे दिन के खेल की झलकियाँ आ रही थीं। इसे देखकर तो खुशी से बल्लियों उछल पड़े। फ़ॉलोऑन के बाद टाइगर्स के दूसरी पारी में भी ५७ रन पर चार विकेट गिर चुके थे। अविश्वसनीय सा लगा।

इसी बीच कमरे में रखे फोन की घण्टी बजी। रिसीवर उठाया तो होटेल स्टाफ़ ने बताया कि नीचे चाय-नाश्ते की टेबल पर प्रतीक्षा की जा रही है। वाह... इन्हें कैसे पता चला कि हमें अभी-अभी चाय की तलब लगी है...? बेसमेन्ट में जाकर नाश्ता करने के बाद ही तैयार होने का निर्णय लिया गया और हमने फौरन लिफ़्ट में घुसकर ‘-1’ दबा दिया। हाल में लगे अनेक किस्म के आइटमों का जोरदार नाश्ता देखकर हम सहम गये और डिनर का अनुमान लगाते ही परेशान से हो लिये। कितनी तो वेरायटी थी। सबका नाम तो अबतक नहीं जान पाया।बारात की प्रतीक्षा में बैण्ड पार्टी

नाश्ते के बाद कमरे में आकर बाथरूम की ओर गये। वहाँ की फिटिंग्स को देखकर उन्हें छूने में सहम से गये। पता नहीं क्या छूने से कहाँ पानी निकल पड़े। आखिर जब सही बटन दबाने पर हल्का गुनगुना पानी बरामद हो गया तो फौरन नहा लेने का मन बन गया। दूधिया सफेदी में चमकता संगमरमर का बाथटब नहाने के लिए आमन्त्रित कर रहा था। करीब आधा दर्जन छोटे-बड़े तौलियों और इतने ही प्रकार के साबुन, क्रीम शैम्पू वगैरह से सुसज्जित स्नानघर में अधिकाधिक समय बिताने का लोभ हो रहा था लेकिन आये तो थे हम बारात करने। इसलिए जल्दी से नहाकर बाहर हो लिए और नये कपड़े में सजधजकर नीचे इन्तजार कर रहे रिश्तेदारों के बीच पहुँच गये।

बाराती नृत्य दूल्हा भी नाच उठा

इस समय तक मेरे भीतर का ब्लॉगर जाग चुका था और डिजिटल कैमरे की बैटरी डिस्चार्ज होने पर मायूस होने लगा था। गनीमत यह थी कि मोबाइल का कैमरा काम कर रहा था जिससे इस बारात में आगे चलकर कुछ शानदार तस्वीरें खींची जा सकीं।

उस समय बारात में  दूल्हे (एम.बी.बी.एस./ आई.पी.एस.) के साथी जिनमें अधिकांश डॉक्टर थे और कुछ नव चयनित अधिकारी थे, बैंड वालों से कुछ चुनिन्दा गीतों की सूची डिस्कस कर रहे थे। महिलाएं अपने साज-श्रृंगार को पूरा करने के बाद बाहर आ गयी थीं लेकिन अभी भी एक दूसरे से पूछकर अन्तिम रूप से आश्वस्त होने की प्रक्रिया में जुटी हुई थीं। दूल्हे की गाड़ी किसी कन्फ़्यूजन में सज नहीं पायी थी लेकिन उस ओर किसी का खास ध्यान नहीं था। सभी अपनी सजावट के सर्वोत्तम रूप को पा लेने का यत्न कर रहे थे। दुल्हा तो राजकुमार जैसा दिख ही रहा था। रात के साढे दस बजे तक बारात पूरी तरह सज नहीं पायी थी। फिर पता चला कि बैण्ड वालों के जाने का समय नजदीक आ रहा है। बस क्या था... लाइट, कैमरा, साउण्ड...

प्रकाश पुंज श्रृंखला

दूल्हे के दोस्त और नजदीकी रिश्तेदार बैण्ड पर झूमने लगे। आतिशबाज अपना काम करने लगे। आज मेरे यार की शादी है... ये देश है बीर जवानों का... नानानानानारे... नारे... नारे.... धमक धमक की आवाज और भांगड़े की धुन की थाप पर धीरे-धीरे सबके पैरों में हरकत आ गयी। थोड़ी देर में ही महिलाओं ने भी मोर्चा सम्हाल लिया। सर्वत्र खुशी और उत्साह से फूटती हँसी और खिलखिलाहट बैण्ड और ताशे की ऊँची ध्वनि में विलीन होती रही, और कैमरों की फ्लैश लाइटें आतिशबाजी के ऊँचे स्फुलिंग की रोशनी में नहाती रहीं। मानो इतना प्रकाश भी कम पड़ जाता इसलिए दर्जनों बल्बों से सज्जित ज्योति कलश भी प्रदीप्त होकर कतारबद्ध चल रहे थे। तभी इस ब्लॉगर की खोजी निगाह इन प्रकाशपुंजों के नीचे चली गयी। धक्‌ से मुहावरा कौंधा- “दीपक तले अंधेरा”

 ज्योति-बाला २
ज्योति-बाला ३
ज्योति-बाला ४
ज्योति-बाला ५
ज्योति-पुंज धारी १
ज्योति पुंज धारी
ज्योति-बाला-१

इन रोशनी के स्तम्भों को अपने सिर, कन्धे और कमर पर थामे हाथ जिन लड़कियों और औरतों के थे उनके चेहरे पर शादी जैसा कोई माहौल ही नहीं था। उनकी आँखें जैसे शून्य में निहार रही थीं। किसी से निगाह मिलाना तो जैसे उन्होंने सीखा ही नहीं था। जिस बारात में शामिल सभी लोग अपना सर्वोत्तम प्रदर्शित करने को आतुर थे उसकी शोभा के लिए रोशनी ढोने वाली ये गरीब मजदूरनें तो बस बीस-पच्चीस रूपये की कमाई के लिए ही इस बारात में शामिल थीं। नंगे या टूटी हवाई चप्पलों वाले  धूल बटोरते पैर, मैली-कुचैली वेश-भूषा, और उलझे हुए धूलधूसरित बालों में खोये हुए ये मलिन चेहरे देखकर मेरा मन कुछ समय के लिए विचलित हो गया। आगे-आगे चलने वाले बैण्ड के सदस्यों को तो फिर भी एक यूनीफॉर्म मिला हुआ है। नाचते-गाते बारातियों द्वारा लुटाये जा रहे नोटों को बटोरने का सुभीता भी इन्हीं को है, लेकिन ये राह रौशन करती बालाएं तो पहलू बदल-बदलकर बारात के विवाह मण्डप तक जल्दी पहुँच जाने की कामना में ही रुक-रुक कर चल रही हैं।

अब आगे का वर्णन ये तस्वीरें ही करेंगी। मैं तो चला अब राजस्थानी अगवानी की रीति देखने जो मेरे लिए बिल्कुल नयी थी।

पारम्परिक स्वागत

जिस परिसर में विवाह मण्डप बना था उसके मुख्य प्रवेश पर बने तोरण द्वार पर लाल फीता बँधा था। उसके उस ओर दुल्हन की सहेलियाँ स्वागत के लिए खड़ी थीं। एक सहेली या दुल्हन की छोटी बहन ने सिर पर कलश ले रखा था। दोस्तों के कन्धे पर चढ़कर आये दूल्हे को दुल्हन की भाभी ने तिलक लगाया, दूल्हे ने फीता काटा और सभी नाचते गाते भीतर प्रवेश कर गये। इस प्रक्रिया में कुछ रूपयों का आदान-प्रदान भी हुआ।

भव्य मन्च

भीतर विशाल प्रांगण में एक भव्य मंच सजा था। वैदिक मन्त्रोच्चार के साथ वेदिका पर तिलक चढ़वाने के बाद दूल्हे ने दूल्हन के साथ मंच पर आसन ग्रहण किया। दूल्हे के दोस्तों और दुल्हन की सहेलियों के बीच कुछ मीठी तकरार के बाद दुल्हन ने ऊँचा उठा दिये गये दूल्हे के गले में उछालकर जयमाला डाल दी। दूल्हा नीचे उतरा और दुल्हन को जयमाल डालकर उसे जीवनसंगिनी बना लिया।

जयमाल सम्पन्न

इस अनुपम सौन्दर्य से विभूषित वैवाहिक कार्यक्रम में इस विन्दु तक शामिल होने के बाद मुझे अपनी अगली यात्रा का ध्यान आया। जयपुर से सीधे इलाहाबाद लौटने के लिए जियारत एक्सप्रेस का समय (२:१५ रात्रि) नजदीक था। मैने सबसे विदा ली और चलते-चलते उस परिसर में स्थापित इस प्रतिमा की तस्वीर लेकर स्टेशन की ओर चल पड़ा।

नयनाभिराम

29 टिप्‍पणियां:

  1. बढ़िया विवरण रहा वी आई पी शादी अटेंड करने का.

    बहुत बहुत बधाई साले साहब की शादी की...मगर जीजा जी कुछ ज्यादा जल्दी नहीं लौट आये???

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  2. बढिया रहा। शादियों का मौसम है। अपन भी मुरादाबाद में भांजेमियां की शादी अटैंड करने गए हुए थे।

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  3. बहुत अच्छा संस्मरण। बधाई स्वीकारें।

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  4. बढियां विवाह संस्मरण -भाभी जी को यहाँ भी नहीं ले गए !
    जहाँ फोकस है वह दीपक तले उजाला है -फिर देखें !
    अच्छा हुआ एक मीनू तो कायदे का देखा आपने -ओह मैं क्यों न हुआ वहां ?

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  5. वी.आई.पी. शादी का सीधा प्रसारण ...

    बहुत अच्छा लगा।

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  6. बहुत अच्छा संस्मरण है तस्वीरें शादी की भव्यता ब्याँ कर रही हैं बधाई

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  7. हम भी आयेंगे इलाहबाद.. और आपसे बिना मिले जायेंगे.. देख लेना..

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  8. बढ़िया विवरण. बरात में जीजा की हैसियत से शरीक होना. वाह!
    कुश की टिप्पणी महत्वपूर्ण है....:-)

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  9. कुश भाई, आपने विवरण पर ध्यान दिया हो तो पाएंगे कि मैं जयपुर में रात आठ बजे पहुँचा और जयमाला पड़ने के बाद सीधे रेलवे स्टेशन भाग कर जाना पड़ा। जियारत एक्सप्रेस रात में दो बजे आनी थी। ऐसे में मेरा मन तो मचलता रहा लेकिन मिलना न हो सका। लेकिन मैं जानता हूँ कि आप इलाहाबाद इतनी अल्पावधि की यात्रा करने नहीं आएंगे। इसलिए बदला लेने की तो सोचिए ही मत।

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  10. शादी का वरना चित्रों के साथ ...बहुत अच्छा लगा .... बधाई हो .....

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  11. चलिए इस बार तो ठीक है.. पर अगली बार कोई बहाना नहीं चलेगा..

    और हम तो इलाहबाद आयेंगे तो रात के डिनर से लेकर सुबह की बेड टी तक वही रहेंगे..

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  12. Wah bhai wah bina bulaye ham bhi mano shaadi me ho aaye. Poorva janm me sanjay rahey hogey siddharth sateek varnan kiya hai...
    par zaldi laut aaye kyon?
    Aur haan aaoyajan me kharcha kitna aaya Treasurer mahodai?
    Nice Post

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  13. bhavya shadi ka sajiv varnan. waise kuchh der aur ruke hote to sayad aapko kuchh aur achha dekhne ko aur hame kuchh aur achha padhne ko mil gaya hota.

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  14. बधाई हो बधाई॥

    ‘ नये नवेले पुलिस अफ़सर दूल्हे की बात में शायद कोई विशेष प्रभाव रहा हो कि ढाबे पर जब हमारी बस पहुँची तो टेबल सज चुकी थी’

    साला भयो कोतवाल तो अब डर काहे का :)

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  15. shadiyan to roj hoti hain aur lakhon log attend karte hain par aap jaise log bahut kam hote hain jo is avsar ko yaadgar bana dete hain

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  16. यह कुश के साथ संवाद ज्यादा पसन्द आया!

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  17. बढ़िया विवरण..
    हम भी आज ही एक शादी से बैंगलोर से लौटे हैं.. :)

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  18. मसालेदार विवरण है। राह रोशन करती बालाओं की नियति यही है शायद। वे यह भी नहीं कह सकतीं कि मीनू बढ़िया है हम वहां क्यों न हुये। वैसे अगर इस बात पर हम आपत्ति उठायें कि बारातियों का चयन किस आधार पर हुआ तो क्या समीचीन होगा ऐसा कहना? आपके जियारत ए़क्स्प्रेस से भागने का कारण मुझे यह समझ में आता है कि वहां तमाम शानदार व्यवस्थाओं के बावजूद मच्छर से निपटने की व्यवस्था सही नहीं होगी और बेड टी का मामला गोल होगा। आप अपने दोस्त की भद्द नहीं पिटवाना चाहते होंगे इसलिये लौट आये। कितने दोस्त ऐसे होते हैं दुनिया में जो दोस्त के लिये रातोरात बारात से लौट आयें। आप धन्य हैं जी।

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  19. दुल्हा तो राजकुमार जैसा दिख ही रहा था
    यकीन मानिए, दूल्हे के जीजाजी भी किसी शहंशाह से कम नहीं दिख रहे हैं. वी आई पी शादी का आँखों देखा हाल हम तक पहुंचाने का शुक्रिया!

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  20. ऐसा सबका सौभाग्य कहाँ ..........
    देख के ही काम चला ...........
    सुन्दर चर्चा ...........

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  21. यदि दूल्‍ले का जीजा होना अपने आप स्‍वयं में वीआईपी होना है। आपने जिस प्रकार एक एक कर बातें लिखी इससे तो यही लग रहा है कि आप नोट बुक लेकर बैठे थे, या यह सोच रहे थे चलो शादी के बहाने एक पोस्‍ट ही मिल गई :)

    कुश भाई और आप का यह व्‍यक्तिगत मामला है, पर आप जल्‍दी मे थे और अब कुश भाई डिनर से टी तक रहेगे कोई बात नज़र नही आ रही है मुझे तो एक और अच्‍छी पोस्‍ट नज़र आ रही है।

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  22. मुझे आज तक समझ में नहीं आया कि दुल्हे के साथियों के नाच का प्रारम्भ 'ये देश है वीर जवानों का से ...' क्यों होता है?
    राजस्थानी मीनू तो लाजवाब होता ही है सो पूरब के पंडीजी लोग छ्क गए होंगे।
    मजदूर/मजदूरिनों द्वारा ये प्रकाश वहन मुझे ठीक नहीं लगता । आगे पापी पेट की बात है और क्या कहें !...
    दुल्हन का सौन्दर्य आदर्श को छू रहा है। बधाई कि ऐसी सलहज को प्राप्त भए। बस रिवाल्वर गोली वगैरह से बच कर रहना :)

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  23. आपके इस सजीव चित्रण ने तो सारा दृश्य नयनाभिराम कर दिया....लगा ही नहीं की इस उत्सव में हम शामिल नहीं थे...
    बहुत बहुत बहुत ही सुन्दर (और संवेदनशील भी) विवरण...

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  24. Khoob Aish Kati Saheb apne Sale ki Shaadi mein. Badhayee Dono ki.

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