हमारी कोशिश है एक ऐसी दुनिया में रचने बसने की जहाँ सत्य सबका साझा हो; और सभी इसकी अभिव्यक्ति में मित्रवत होकर सकारात्मक संसार की रचना करें।

शनिवार, 19 सितंबर 2009

ब्लॉगिंग का राष्ट्रीय सेमिनार जो आज हो न सका...

 

यदि तिथि बदली न होती और कार्यक्रम अपरिहार्य परिस्थितियों में टला न होता तो मैं आज १९ सितम्बर को इलाहाबाद में देश के अनेक मूर्धन्य चिठ्ठाकारों का दर्शन लाभ पाकर अभिभूत हो रहा होता। हिन्दी दिवस, हिन्दी सप्ताह, हिन्दी पखवारा, और हिन्दी मास की चर्चा-गोष्ठियों में आजकल जो कुछ हम पढ़-सुन रहे हैं उनमें इस महागोष्ठी की खूब चर्चा हो रही होती।

हिन्दी ब्लॉगों में जो बहसें आजकल नमूँदार हुई हैं उन्हें देखकर मन में अभी से लड्डू फूट रहे हैं। जब पुनः निर्धारित तिथि पर वाकई सेमिनार होगा तब इन महानुभावों के मुखारविन्दु से साक्षात्‌ ऐसी बातें सुनकर कैसा लगेगा? क्या एक दूसरे के बारे में हम वैसा ही कह-सुन पाएंगे जैसा इस आभासी संसार में अपने घर के भीतर बैठे-बैठे दूसरों के बारे में टिप्पणी या पोस्ट के माध्यम से ठेल देते हैं? बेनामी महात्माओं द्वारा जो घटियागीरी यहाँ दिखायी जाती है या फर्जी नाम वाले जैसी खरी-खरी यहाँ कह जाते हैं, क्या वहाँ भी साक्षात्‌ उपस्थित होकर मुँह खोलेंगे?

यहाँ अपने-अपने ज्ञान की शेखी बघारने वाले भी हैं, दूसरों को मूर्ख और पाजी समझने वाले भी हैं, भाषा को अपनी स्वतंत्र इच्छा का दास बनाने की चाह रखने वाले भी हैं, अपने लिखे को पत्थर की लकीर मानकर अड़े रहने वाले भी हैं, दूसरों की मौज लेने के फेर में अपनी मौज लुटाने वाले भी हैं, गलाफाड़ हल्ला मचाने के बाद धीरे-धीरे अनसुना कर दिए जाने के कारण अपना बोरिया-बिस्तर समेटकर दूसरे व्यापार में लग जाने वाले भी हैं, दूसरे की लकुटी-कमरिया लेकर इस घमासान में नये सिरे से बहादुरी दिखलाने वाले भी है, तुरत-फुरत कविता रचकर वाह-वाह कहलाने वाले भी हैं और रोज़बरोज़ पोस्ट का मसाला जुगाड़ने के लिए डिजिटल कैमरा लेकर मुँह अन्धेरे नदी-तट की सैर को निकल जाने वाले भी हैं। बहुत से धीर-गम्भीर साहित्यानुरागी, हिन्दी सेवी, कविहृदय, सामाजिक चिन्तक, व्यंग्यकार, विज्ञान अन्वेषी, तकनीक के जानकार सुधीजन भी हैं जो इस माध्यम को समृद्ध कर रहे हैं।

ऐसी रंगीन दुनिया के सितारे जब आज के दिन अपने स्थूल शरीर और सूक्ष्म मस्तिष्क के साथ एक छत के नीचे एक साथ बैठकर आपस में बातचीत करते तो नजारा क्या होता? लन्च और डिनर के बर्तन साथ खड़काते तो क्या आनन्द आता?

यूँ तो इस सेमिनार के विषय पहले ही तय किये जा चुके थे, और कई ख्यातिनाम चिठ्ठाकारों को उन विषयों को प्रस्तुत करने की तैयारी करके आने के लिए भी बोल दिया गया था, लेकिन ऐन मौके पर कौन क्या बोलना शुरू कर दे इसका कोई ठिकाना न होने से मन में अनिश्चय का भाव भी बना ही हुआ था। इससे मिलने वा्ले सुख का रोमान्च भी कम न था। अब तो प्रतीक्षा आगे बढ़ गयी है।

कुछ विचारणीय शीर्षक जो सत्र विशेष और वार्ताकार विशेष के लिए आदरणीय अनूप जी, अरविन्द जी और दूसरे आदरणीयों से विचार-विमर्श के बाद निर्धारित किए गये थे-

  1. हिन्दी चिठ्ठाकारी का  इतिहास, स्वरूप और तकनीक
  2. हिन्दी चिठ्ठाकारी की दिशाएं: विज्ञान, राजनीति, समाज, धर्म/दर्शन, मनोरंजन
  3. अन्तर्जाल पर हिन्दी साहित्य और इसकी पठनीयता : कविता, कहानी, व्यंग्य, रेखाचित्र, रिपोर्ताज, संस्मरण और आपबीती
  4. अन्तर्जाल पर हिन्दी भाषा के कुशल प्रयोग के औंजार, ब्लॉग बनाने और तकनीकी प्रबन्धन के तरीके
  5. हिन्दी ब्लॉग जगत की प्रमुख प्रवृत्तियाँ-
  • बहस के सामान्य मुद्दे
  • ब्लॉगिंग की  भाषा में शुद्धता बनाम सम्प्रेषणीयता
  • ब्लॉगजगत में गुटबन्दी और गिरोहबन्दी
  • अभिव्यक्ति की उन्मुक्तता और इसमें निहित खतरे
  • समूह ब्लॉगों की उपादेयता
  • चिठ्ठाकारी में समय प्रबन्धन
  • सामाजिक मुद्दों पर ब्लॉगजगत की प्रतिक्रियाएं
  • ब्लॉगजगत के कुंठासुर/बेनामी या छद्‍मनामी टिप्पणीकार
  • ब्लॉगजगत का आभासी परिवार और आन्तरिक गतिविधियाँ, ब्लॉगर कैम्प आदि।

ये सारी बातें मैं भूतकाल में कर रहा हूँ तो इसका अर्थ यह कदापि नहीं है कि सब कुछ खत्म हो गया।  आज यह सब मैं इस लिए बता रहा हूँ कि जो कार्यक्रम आज नहीं हो सका वह आगामी २४-२५ अक्टूबर को आयोजित किए जाने का निर्णय लिया जा चुका है।

महात्मा गान्धी अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय, वर्धा के कुलपति श्री विभूतिनारायण राय जी ने स्वयं इस सेमिनार की परिकल्पना करते हुए इसके आयोजन का प्रस्ताव रखा था। इलाहाबाद स्थित हिन्दुस्तानी एकेडेमी के साथ मिलकर इस राष्ट्रीय स्तर के आयोजन की रूपरेखा बनायी जा चुकी थी। अतिथि वार्ताकारों और प्रतिभागियों के नाम तय किए जा चुके थे, बस निमन्त्रण पत्र भेंजने की तैयारी हो रही थी तभी कुलपति जी को कतिपय अपरिहार्य परिस्थितियों ने कार्यक्रम की तिथि आगे बढ़ाने पर मजबूर कर दिया। उनका खेद प्रकाश प्राप्त करने के बाद हम कुछ समय के लिए हतप्रभ हो गये थे। लेकिन उन्होंने तत्समय ही अगली तिथि भी निर्धारित कर दी।

MGAHV-logo प्रतीक चिह्न

हमारा उत्साह फिर कम नहीं हुआ है। हम तो अगली निर्धारित तिथि की प्रतीक्षा कर रहे हैं, जब ऊपर गिनाए गये विषयों पर जोरदार सजीव बहस सुनने और देखने को मिलेगी। ब्लॉगजगत के अनेक भूतपुर्व और अभूतपूर्व लिक्खाड़ों से गलबहिंया डाले फोटू खिंचाने का मौका हाथ लगेगा। एक तरफ पारम्परिक साहित्य के पुरोधा होंगे तो दूसरी तरफ़ अन्तर्जाल पर बाइट बहाने और बटोरने वाले बटोही होंगे। आदरणीय कुलपति जी के औदार्य से कार्यक्रम का वित्तीय परिव्यय विश्वविद्यालय द्वारा वहन किया जाएगा तो हिन्दुस्तानी एकेडेमी का प्रांगण जो अबतक हिन्दी भाषा और साहित्य से जुड़ी प्रायः सभी भूतकालीन और वर्तमान विभूतियों का प्रत्यक्षदर्शी रहा है, अपनी गौरवशाली परम्परा और अहर्निश आतिथेय की भूमिका में पूरी निष्ठा से लगा होगा।

आप सभी अपनी रुचि के अनुसार मन ही मन तैयारी कर लीजिए। कार्यक्रम की सूक्ष्म रूपरेखा तैयार हो जाने और धनराशि का परिव्यय स्वीकृत हो जाने के बाद इसकी विधिवत घोषणा हिन्दुस्तानी एकेडेमी द्वारा अन्तर्जाल पर की जाएगी। मेरी तो इच्छा है कि जिस प्रकार इलाहाबाद के कुम्भमेला में सारा हिन्दुस्तान उमड़ पड़ता है उसी प्रकार यह कार्यक्रम भी एक विशाल ब्लॉगर महाकुम्भ साबित हो जाय। अन्तर्जाल की धारा में अपने-अपने घाट पर डुबकी लगाने वाले विविध चिठेरे प्रयाग की धरती पर आकर अपना अनुभव एक दूसरे से बाँटें और बाकी दुनिया को यह भी बतायें कि इक्कीसवीं सदी में संचार के क्षेत्र में जो तकनीकी क्रान्ति आयी है उसे हिन्दी सेवियों ने भी आत्मसात किया है और अब इस देवनागरी की पहुँच दुनिया के कोने-कोने में होने लगी है।

जब से यह कार्यक्रम टला मुझे निराशा ने ऐसा घेरा कि कुछ लिखते न बना। अब आज जब यह दिन भी बीत गया है तो इसकी चर्चा से ही बात शुरु कर सका हूँ। अभी इतना ही...।

आप सबको शारदीय नवरात्र की हार्दिक शुभकामनाएं और ईद मुबारक।

(सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी)

22 टिप्‍पणियां:

  1. क्या कहूँ मुझे भी मन मसोस कर रह जाना पड़ा ! आज मैं वहां होता तो क्या मौज मजे होते ! बल्ले बल्ले !
    विषय का चुनाव जबर्दस्त है -इसे भी जोड़ लें -ब्लाग्जगत में मौज मस्ती ,टंकी पर चढ़ना उतरना ,बेनामी और क्षद्म्नामियों की कारस्तानियाँ (मजाक ) .

    जवाब देंहटाएं
  2. चलिए एक पोस्ट का मसाला बन गया :)

    अच्छा अब बहुत हो गया इस बार तारीख मत बदलिएगा।

    जवाब देंहटाएं
  3. मुझे ऐसा लगता है
    वहां टंकी की व्‍यवस्‍था नहीं हो पाई होगी
    इसलिए तिथि आगे बढ़ाई गई है
    आखिर जो सुनते हैं, सुनाते हैं
    हमारे ब्‍लॉगर भाई मौका मिलने पर
    सब कुछ कर के दिखाते हैं।

    फरीदाबाद स्‍नेह महासम्‍मेलन में
    खूब स्‍नेह मूसलाधार बरसा
    पर हम आपके यहां के रसपान
    से कुछ समय के लिए और
    अधिक तरसते रहेंगे।

    जवाब देंहटाएं
  4. ...तो इन्तेज़ार कीजिए अगले २४-२५ अक्तूबर तक:)

    जवाब देंहटाएं
  5. मुझे लगता है कि आप के सुझाए विषय सभी गंभीर हो गए हैं। डॉ. अरविंद जी वाला विषय जोड़ लेने से कुछ समरसता आएगी।

    जवाब देंहटाएं
  6. चलिये कुछ दिनो बाद डिनर पर बरतन खड्खडायेंगे।

    जवाब देंहटाएं
  7. अब इंतजार है नई तारीखों का। पता नहीं, हमें तब फुर्सत मिल पाती है या नहीं। अभी तो आरक्षण निरस्त कराने के पैसे भी वापस नहीं मिले हैं:)

    जवाब देंहटाएं
  8. mohak pravaah hai apaki lekhanee mein..agle blogging seminar ke liye abhi se shubhakaamnayen

    जवाब देंहटाएं
  9. ऐसे अनोखे आयोजन की बधाई। न्‍यौता देना मत भूलिएगा।

    जवाब देंहटाएं
  10. सिद्धार्थ जी,
    बस एक महीने और लेकिन फिर न हो कि थोड़ा और।
    हम लोग उत्सुक हैं।
    शुभकामनाओं सहित

    जवाब देंहटाएं
  11. अगली तारीख रखने से पहले जगह देख लेना कोई टंकी पास ना हो, ओर दो सो मीटर तक अनामी मार दवा दो दिन पहले छिडक दे, ओर आप्ने ईष्ट का नाम ले कर शुरु करे अगला समेम्लन सब शुभ होगा.
    राम राम जी की

    जवाब देंहटाएं
  12. इस में कैसे भाग लिया जा सकता है ?

    जवाब देंहटाएं
  13. ब्लॉगर कथा के पाठ के पहले का 'हरमुनिया' वादन प्रारम्भ कर अच्छा किया। पाठ करने वाले और देखनिहार सब तैयारी शुरू कर दिए होंगे।...
    हमारे लिए अगली पाँत में जगह छेका कर रखना।

    जवाब देंहटाएं
  14. इस आयोजन की सफलता के लिए हमारी ओर से हार्दिक शुभकामनाएं स्वीकारें।
    ( Treasurer-S. T. )

    जवाब देंहटाएं
  15. आपका आयोजन आशातीत सफलता पाए...यही शुभकामना है....

    हाँ यह बात और है कि अदृश्य रह लेखकगण जितने मुखर रहते हैं,आमने सामने होने पर संभवतः उतने न हो पाएंगे...पर सकारात्मक प्रयास को अवश्य ही बल मिलेगा..

    आपलोगों का प्रयास सराहनीय है...

    जवाब देंहटाएं
  16. Itna Afsosianey ki bhi zaroorat nahi hai.
    Abhi aap ke blogging karyashala ke aayojan ki yaadein taaza hain so kareeb ek mahiney ka intezaar aur kiya ja sakta hai ..
    Han bas nimantran ki oupcharikta bhi kar dijiyega (kewal Yaad dilaney ke liye)
    Fir is blogger's Mahakumbh mein gotey lagane ka anad khud hi pa loonga.

    जवाब देंहटाएं
  17. त्रिपाठी जी,

    सम्मेलन का ख्याल बहुत ही नेक है, तिथि के आगे बढ़ने से हो सकता है सम्मेलन को और रौनक मिले। हाँ सम्मेलन का होना जरूरी है।

    खबर दीजियेगा, आने की कोशिश पूरी रहेगी, इसी बहाने गंगा मईया का दर्शन भी हो जायेगा और आदरणीय श्री ज्ञानदत्त पाण्डेय जी के साथ एक सुबह की सैर भी।

    सादर,


    मुकेश कुमार तिवारी

    जवाब देंहटाएं
  18. भाई सिद्धार्थ जी,
    इलाहबाद हाईकोर्ट का असर इस सेमिनार पर तो नहीं आ गया जो अगली डेट बहस(सेमिनार) के लिए ले ली.......

    खैर तिथि में परिवर्तन भले ही हुआ हो, पर दिल से बहुत सी बातें आप इसी बहाने ही सही, कह तो गए. चलो एक और तिथि मिली हाई , रही-सही कसर उसमें भी निकाल लेना.....
    ईश्वर जो करता है सब अच्छे के लिए ही करता है, वर्ना दिल की बात, प्रोग्राम की बात, इसकी बात - उसकी बात, सबकी बात, बात- बेबात, लंच-डिनर के ठेलम-ठेल, सब कुछ एक ही पोस्ट में कैसे आ पाता......

    बढ़िया लेख के लिए बधाई.

    चन्द्र मोहन गुप्त
    जयपुर
    www.cmgupta.blogspot.com

    जवाब देंहटाएं
  19. हम तो कार्यकर्ता हैं । अफसोस की मात्रा इधर भी कम नहीं है, चलिये एक माह का इंतजार और सही ।

    जवाब देंहटाएं

आपकी टिप्पणी हमारे लिए लेखकीय ऊर्जा का स्रोत है। कृपया सार्थक संवाद कायम रखें... सादर!(सिद्धार्थ)