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रविवार, 5 मई 2024

हरी-भरी छाया में साइकिल से सैर

लंबे अंतराल के बाद आज #साइकिल_से_सैर का संयोग बना। मेडिकल कॉलेज परिसर से निकला तो सहारनपुर से अंबाला जाने वाले हाईवे पर निकल गया। राधास्वामी सत्संग भवन के विशाल प्रांगण के पास से हाईवे को काटती नहर की पटरी पर बाएं दक्षिण की ओर मुड़ गया। पिछली बार इस पटरी की कंकड़ीली ऊबड़ खाबड़ सड़क ने बहुत तकलीफ दी थी। लेकिन इस बार चमचमाती हुई नई नवेली पेंटिंग से सजी हुई इस ग्राम्य सड़क ने बरबस ही आकर्षित कर लिया। कदाचित् आसन्न चुनाव का प्रभाव रहा हो जो इस ओर के निवासियों के आवागमन की सुधि ले ली गई हो।

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नहर की साफ-सुथरी पटरी के दोनो ओर हरियाली की छटा देखते ही बनती है। ताजा और शुद्ध ऑक्सीजन जब फेफड़ों तक पहुंचती है तो फर्क साफ महसूस होता है। औद्यानिक पौधों के अलावा पॉपलर की खेती खूब होती है यहां। सबेरे सात बजे ही सूरज की किरणें तीखी हो चली थीं। लेकिन हरे-भरे पंक्तिबद्ध लंबे पेड़ों की ऊंची दीवार की छाया में चलते हुए धूप की गर्मी से सामना प्रायः नहीं करना पड़ा। राधास्वामी केंद्र की जालीदार चारदीवारी के ऊपर रंगीन वोगनबेलिया व दूसरी लताओं की खूब मोटी परत करीने से काट-छांट कर इतनी आकर्षक बनाई गई है कि मन वहीं ठहर सा जाता है। लेकिन मुझे तो आज लंबी दूरी तक साइकिल चला कर अपना कार्डियो वर्कआउट का लक्ष्य पूरा करना था। इसलिए मैं बिना रुके चलता रहा। आगे से बाएं पूरब की ओर मुड़कर एक अन्य पिचरोड पर आगे बढ़ गया। अनुमान था कि हरे - भरे खेतों व कुछ गावों को पार करती हुई यह सड़क वापस सहारनपुर शहर की ओर ले जाएगी।

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रास्ते में मुझे अलीपुरा गांव मिला। गांव के भीतर मुड़ी-तुड़ी पक्की सड़क के दोनो ओर पक्के मकान थे। कुछ दुकानें भी थीं। खेती से संबंधित उपकरण वा मशीनरी बता रही थी कि यहां के लोग खुशहाल ही होंगे। इसी क्रम में ग्राम तौली से होते हुए मैं कुम्हार हेरा पहुंच गया। रास्ते में ब्लूम एरा एकेडमी नामक विद्यालय दिखा जहां कोई हलचल नहीं दिखी। मेरी घड़ी बता रही थी कि अबतक 40 मिनट में करीब 12 किलोमीटर की यात्रा हो चुकी थी। अभी भी मुझे अपनी वापसी के रास्ते का ठीक-ठीक पता नहीं था।

कुम्हार हेरा गांव के किनारे-किनारे बनी आरसीसी सड़क पर चलता हुआ जब गांव को पार करके पूरब की ओर बढ़ा तो अचानक इस सड़क से टी-प्वाइंट बनाती हुई एक चौड़ी सी सड़क नजर आई। इस पर भारी भरकम ट्रक और बसें दौड़ रही थीं। पता चला कि यह सहारनपुर से गंगोह जाने वाली व्यस्त सड़क है। यहां से मेरा आवास लगभग 10 किमी दूर था। बाएं मुड़कर मैं शहर की ओर चल पड़ा। सड़क के किनारे दो - दो इंट भठ्ठों की चिमनियां दिखीं। उनाली गांव का नुक्कड़ दिखा जहां चाय की दुकानें थीं। मन में यहां रुकने का विचार उठा लेकिन मैंने बिना देर किए उसे दबा दिया। आगे एमआरएस मेमोरियल स्कूल व प्रज्ञान स्थली सहित अनेक शिक्षण संस्थान दिखे। फिर मानक मऊ पहुंचकर मुझे अपनी पहचानी हुई सड़क दिखी। फिर वह चौराहा भी दिखा जहां से कई बार सर्किट हाउस की ओर गया हूं। यहां सरकारी बस अड्डा है। यहां से अंबाला रोड की ओर मुड़कर मैं अपने हाईवे पर वापस आ गया।

बड़ी नहर के पुल की चढ़ाई पार कर जब ढलान पर पैडल रोकने का मौका मिला तो बाईं ओर मेरा जिम 'मसल-मास्टर्स' नजर आया जो आज बंद था। इस जिम ने मेरी देहयष्टि में क्रांतिकारी परिवर्तन लाना प्रारंभ कर दिया है। यहां से घर पहुंचने से पहले मैं बेल का शरबत पीने के लिए रुका। बिना चीनी वा बिना बर्फ वाला ताजा बना शरबत सारी थकान को मिटाने वाला था।

करीब डेढ़ घंटे में 21 किलोमीटर की प्रायः अनवरत साइकिल यात्रा ने आज भरपूर ऑक्सीजन के साथ अप्रतिम ऊर्जा व आनंद की आपूर्ति की। घर के दरवाजे पर खींचा गया चित्र इसकी गवाही दे रहा है।

(सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी)

बुधवार, 28 फ़रवरी 2024

मतदाता जागरूकता गीत

आजकल भारत का चुनाव आयोग लोकसभा चुनाव 2024 की तैयारी में पूरी ताकत से लगा हुआ है। प्रशासनिक मशीनरी वोटर लिस्ट की तैयारी से लेकर विविध प्रकार के संसाधनों को जुटाने में लगी है। इसी क्रम में देश के मतदाताओं को उनके मताधिकार के बारे में जागरूक करने के लिए विशेष अभियान (SVEEP) भी चलाया जा रहा है। तमाम स्कूल, कॉलेज, विश्वविद्यालय, सामाजिक-सांस्कृतिक संस्थाएं, एन.जी.ओ., रंगकर्मी आदि इस कार्य में व्यस्त हैं।

जो नौजवान पहली बार वोटर बने हैं उन्हें हरहाल में पोलिंग बूथ तक आने को तैयार करना है। इसी सिलसिले में कुछ संस्थाओं कि मांग पर मैंने दस साल पहले रायबरेली में लिखे इस इस गीत के दूसरे और तीसरे अंतरे को दुबारा लिखा है। अब यह बिल्कुल नया सा हो गया है। आनंद लीजिए, गुनगुनाइए और पसंद आए तो प्रसारित कीजिए।  

 

मतदाता जागरूकता गीत

(धुन- आओ बच्चों तुम्हें दिखाएं झांकी हिंदुस्तान की ...)

वोट डालना अच्छा है जी, लगता इसमें दाम नहीं।

वोट डालकर आने से है, अच्छा कोई काम नहीं।।

जागो मतदाता, जागो मतदाता… जागो मतदाता, जागो मतदाता

लोकतंत्र की नींव बनेगी, मतदाता के वोटों से

लोकनीति भी नेक रहेगी, मतदाता के वोटों से

ऊंच-नीच का भेद मिटेगा, जाति-धर्म भी होगा दूर

हरगरीब का क्लेश कटेगा, मतदाता के वोटों से

वोटर के अधिकारों में है, भेद-भाव का नाम नहीं

वोट डालकर आने से है, अच्छा कोई काम नहीं

जागो मतदाता, जागो मतदाता… जागो मतदाता, जागो मतदाता

देशप्रेम की शान दिखाए लंबी लाइन वोटर की

बहुमत की सरकार बनाए लंबी लाइन वोटर की

सत्ता की कुंजी है इसमें कानूनों का उद् गम भी

सबसे बड़ी अदालत है ये लंबी लाइन वोटर की

जिम्मेदारी बहुत बड़ी, अब बिना वोट आराम नहीं

वोट डालकर आने से है, अच्छा कोई काम नहीं

जागो मतदाता, जागो मतदाता… जागो मतदाता, जागो मतदाता

अपनी संसद नयी बनी है भारतवासी हाथों से

फिर सरकार नयी चुननी है भारतवासी हाथों से

लोकतंत्र का धर्म हमें इस दुनिया को समझाना है

अब तकदीर नयी लिखनी है भारतवासी हाथों से

देना है संदेश शांति का इस पर लगे विराम नहीं

वोट डालकर आने से है, अच्छा कोई काम नहीं।।

जागो मतदाता, जागो मतदाता … जागो मतदाता, जागो मतदाता

वोट डालना अच्छा है जी, लगता इसमें दाम नहीं।

वोट डालकर आने से है, अच्छा कोई काम नहीं।।

जागो मतदाता, जागो मतदाता… जागो मतदाता, जागो मतदाता

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी ‘सत्यार्थमित्र’

बुधवार, 17 जनवरी 2024

कब बदलेगा मौसम

मन की उथल-पुथल भारी

क्या जल्दी होगी कम

कब बदलेगा मौसम

क्या सर्द हवा से 

राजनीति की गर्मी होगी कम

कब बदलेगा मौसम

कहीं बढ़े उल्लास राम से

कहीं बढ़ रहा ग़म

कब बदलेगा मौसम

गारंटी है एक बांटता

दूजा फोड़े उसपर बम

कब बदलेगा मौसम

अब विपक्ष की प्रत्याशा

इंडिया सके ना जम

कब बदलेगा मौसम

जैसे जैसे यात्रा बढ़ती

जन-रुचि जाती थम

कब बदलेगा मौसम

अब युवराज अधेड़ हुए

क्यों राह अगोरें हम

कब बदलेगा मौसम

भानमती के कुनबे में

नीतीश न पाते रम

कब बदलेगा मौसम

आँखों के आगे अंधेरा

फिर छाए ना मातम

कब बदलेगा मौसम

एक उड़ाये जेट विमान

दूजा हाँके टमटम

कब बदलेगा मौसम

गंगाजल को यह पूजे

और वो आबे-जमजम

कब बदलेगा मौसम

सीएम रहे साल पंद्रह

फिर उतना ही पीएम ?

कब बदलेगा मौसम

मकर राशि में सूरज आकर

सर्दी करे खतम

अब बदलेगा मौसम

नेताजी का अब चुनाव

वोटर दिखलाये दम

अब बदलेगा मौसम

टीवी चैनल लहालोट

ऐंकर करते बमबम

अब बदलेगा मौसम 

मकर संक्रांति, 15 जनवरी 2024 :

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी

‘सत्यार्थमित्र’