भाग-1 (15 मई, 2023)
सहारनपुर के पीजीआई के रूप में चर्चित राजकीय मेडिकल कॉलेज के वित्त नियंत्रक का जब अतिरिक्त कार्यभार मिला तो मुझे इस बात की खुशी तो हुई कि अब मुझे किराए के घर से निकलकर एक बार फिरसे सरकारी आवास की सुविधाओं का लाभ मिलेगा। लेकिन ज्यादा खुशी इस बात की हुई कि मुझे हरी-भरी प्रकृति की गोद में साइकिल से सैर करने का अवसर भी सुलभ हो जाएगा। कॉलेज का विशाल परिसर सहारनपुर से अम्बाला रोड पर पिलखनी गाँव के पास फैला हुआ है। आसपास के गाँव व्यावसायिक खेती-बाड़ी करके प्रायः सम्पन्न और सुखी हैं।
मैंने गत सप्ताह परिसर में अपना बोरिया-बिस्तर जमा लिया और अब सबेरे उठकर साइकिल से देहात की ओर सैर के लिए निकल जाने का सिलसिला शुरू हो गया है।
आज मैंने अम्बाला रोड से ग्रामपंचायत बीदपुर जाने वाली सड़क पकड़ी जिसके दोनों ओर घनी हरियाली का साम्राज्य है। खेतों की मेड़ पर पॉप्लर, सागौन व अन्य इमारती लकड़ियों के ऊंचे पेड़ और उनके बीच साग-सब्जी व सजावटी पौधों की खेती से बड़ा ही मनोरम दृश्य बनता है। गाँव के नुक्कड़ पर पहुँच कर मैंने एक चकरोड की ओर साइकिल मोड़ ली जो मेरे अनुमान से खेतों के बीच से गुजरता हुआ आगे मुख्य सड़क पर जाकर मिल जाता होगा।
मेरा अनुमान लगभग सही निकला। बस एक दो जगह साइकिल को दोनों हाथों से टांगकर के निकलना पड़ा। असल में आगे जो गाँव 'इस्माइलपुर' आने वाला था वहाँ के प्रधान ने सड़क पर खड़ंजा लगाने के लिए ईंटें गिरवा रखी थी। कार्य प्रगति पर था लेकिन असुविधा के लिए खेद प्रगट करने वाला कोई बोर्ड नहीं था। यह सब चोंचले बड़े कार्यस्थलों पर निभाने का रिवाज है जहाँ की असुविधा प्रायः स्थायी सी होती है।
रास्ते में मुझे अनेक अमराइयाँ मिली जिसमें कच्चे टिकोरे दूर से ही चमक रहे थे। कुछ खेतों पर कटींले तारों की बाड़ लगी थी। पता नहीं मनुष्य या जानवर से रक्षा के लिए। एक मोड़ पर मैं रुक कर तस्वीरें लेने लगा तबतक पीछे से उस बाग के मालिक अजय शर्मा जी आ गए। उनकी उत्सुकता को शांत करते हुए मैंने अपना परिचय दिया और आश्वस्त किया कि मैं कोई रेकी नहीं कर रहा।
मेरा ध्यान गया कि हमलोग एक बेल के पेड़ के नीचे खड़े थे और एक बेल जमीन पर औंधे मुँह गिरा हुआ था। मैंने अजय जी से उसकी ओर इशारा किया तो बोले यह खराब होकर गिर गया है। लेकिन जब उन्होंने उसे उठाकर देखा तो मुझे थमाते हुए बोले- आपके भाग्य से यह बिल्कुल ठीक है और पककर टपका हुआ है। इस बीच बाग में लगे टेंट से निकलकर रखवाली करने वाले सज्जन भी आ गये थे। अजय जी ने उनसे कुछ कच्चे टिकोरे मंगाकर दिए। मैंने सधन्यवाद बेल को कैरियर में दबाया, टिकोरों को आगे साइकिल में लगे मोबाइल पॉकेट में डाले और उन दोनों के साथ कुछ तस्वीरें लेकर चल पड़ा। इस वादे के साथ कि समय आने पर पेड़ से टपके हुए पके आम भी लेकर जाऊंगा।
एक खेत के कोने पर बिजली से चल रहे ट्यूब वेल से निकलते पानी की मोटी धार देखकर मन हुआ कि इस ठंडे और साफ पानी से छपकार के मुँह धो लूँ लेकिन फौरन ही इस विचार को मटिया दिया क्योंकि देर हो रही थी।
(सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी)
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