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शुक्रवार, 2 जून 2017

बालमखीरा के दर्शन

आज सुबह साइकिल की सैर से लौट रहा था तो रायबरेली के कानपुर बाईपास रोड पर जिसे जेलरोड भी कहते हैं, सड़क किनारे एक ऐसी चीज़ सुखाई जा रही थी जो मैंने पहले कभी नहीं देखा था। उत्सुकतावश मैंने साइकिल रोक दी। गोल-गोल टिकिया नुमा इस सूखी हुई मटमैली सामग्री को दो लोग उलट-पुलट रहे थे। 
पूछने पर उन्होंने ने बताया - इसे 'बालम खीरा' कहते हैं। यह जड़ी-बूटी है। इससे दवाई बनती है। 
मैंने पूछा - क्या यह खीरा-ककड़ी की तरह लताओं में पैदा होती है? 

उन्होंने बताया - नहीं, यह पेड़ पर फलता है। इसे जंगल से तोड़कर हम लोग ले आते हैं। इनका मालिक पेड़ से तोड़ने के बदले पैसे लेता है। इसे सुखाकर तौला जाता है और पांच-छः रुपए किलो के हिसाब से इसे बेचा जाता है। 
मैंने पूछा - कौन सी दवा बनती है? जमुना प्रसाद ने बताया कि इससे पथरी गलाने की दवा बनती है। 
मैं जब इस जड़ी-बूटी वाली टिकिया की तस्वीरें लेने लगा तो जमुना प्रसाद ने कहा - रुकिए मैं आपको साबुत बालम-खीरा दिखाता हूँ। वे घर के भीतर से एक बालम खीरा लेकर निकले और बोले कि इससे 4 गुना बड़ा भी होता है, 20-25 किलो का भी होता है। अभी तो यह एक छोटा सा नमूना है।







सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी
www.satyarthmitra.com

1 टिप्पणी:

  1. बालम ककड़ी यहाँ भी मिलती है पर वो ककड़ी का ही बड़ा रूप ही होता है पर स्वाद बहुत अच्छा होता है। ये रतलाम के पास सैलाना में बहुतायत से पैदा होती है।

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