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मंगलवार, 22 जुलाई 2014

पीछे की अक्ल में आगे बुद्धिजीवी

नौ साल पहले सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह द्वारा किये गये भ्रष्टाचार के पोषण के बारे में जस्टिस मारकंडेय काटजू ने जो खुलासा किया वह बहुत आश्चर्यजनक नहीं है; लेकिन इसपर जो बहस चल रही है वह बहुत ही रोचक होती जा रही है। एक राज्य के मुख्यमंत्री द्वारा एक जिला जज को उसके द्वारा पूर्व में किये गये उपकार (जमानत) के बदले हाईकोर्ट में एडिशनल जज बनवा दिया गया; फिर उसका कार्यकाल बढ़वाने का सफल प्रयास किया गया; हाई-कोर्ट में उस जज ने कुछ और उपकार कर दिये होंगे जिससे खुश होकर उसका कार्यकाल और बढ़वाने फिर स्थायी जज बनवाने का इन्तजाम भी नेता जी द्वारा कर दिया गया। इस इन्तजाम के तहत ही केन्द्र सरकार को दिये जा रहे समर्थन के बदले प्रधानमंत्री की सिफारिश से भारत के चीफ जस्टिस की कृपा भी प्राप्त कर ली गयी। चीफ जस्टिस ने प्रधानमंत्री जी की खुशी के लिए उस जज के खिलाफ़ खुफिया रिपोर्ट को थोड़ा अनदेखा कर दिया। बस इत्ती सी तो बात है।

सामान्य दुनियादारी की समझ रखने वाले एक साधारण बुद्धि के मनुष्य के लिए इसमें कुछ भी अजूबा नहीं है। लेकिन देश के भारी भरकम बुद्धिजीवी और पत्रकार इस बात को लेकर हलकान हुए जा रहे हैं। लगता है कि इन लोगों को न्यायपालिका में इसके पहले भ्रष्टाचार के कोई चिह्न ही नहीं दिखे थे। जबकि आम आदमी निचले स्तर पर यह सब रोज ही झेल रहा है। चैनेल वाले तो ऐसे बदहवास हैं मानो मनमोहन सिंह के बारे में कोई बहुत गूढ़ और अनसुनी बात खुलकर सामने आ गयी हो। जबकि देश की जनता ने मौनी बाबा की हकीकत समझकर उन्हें कबका किनारे लगा दिया है।

लूट, डकैती , हत्या, बलात्कार, इत्यादि की घटना घटित हो जाने और अपराधी के बच निकलने और भाग जाने के बाद जब लोग इकठ्ठा होते हैं तो एक से एक बढ़िया तरीके बताते हैं कि उस समय क्या किया जाना चाहिए था। चुटकी में पॉलिसी और स्ट्रेटजी बनाने वाले एक से एक विशेषज्ञ प्रकट हो जाते है। दरअसल असली मौके की नज़ाकत  और तात्कालिक परिस्थिति की मजबूरियों को न समझने का सुभीता इन रायचंदों के पास खूब होता है।

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टाइम्सनाऊ पर जस्टिस काटजू के सामने बहस के लिए राम जेठमलानी और सोली जे.सोराबजी आये थे। तीनो अपने क्षेत्र के धुरन्धर और ख्यातिनाम। पहली बार अर्नब गोस्वामी को कम बोलते और सीमित टोका-टाकी करते देखकर अच्छा लगा। मजेदार बात यह थी कि कानून के तीनो दिग्गज एक दूसरे से असहमत होते हुए भी सच्चाई से बोलते दिखे।

सोराब जी ने कहा कि काटजू की बात पर कोई संदेह नहीं किया जा सकता लेकिन इन्होंने यह बात खोलने में बहुत देर कर दी जो एक प्रकार से अपने कर्तव्यों की उपेक्षा है। इन्हें पता था कि एक भ्रष्ट आदमी को जज बनाया जा रहा है लेकिन उन्होंने इसे रोकने के लिए जितना करना चाहिए था उतना नहीं किया। राम जेठमलानी ने भी कहा कि मैं होता तो चीफ जस्टिस द्वारा अनसुना कर दिये जाने पर चुप नहीं बैठता और आगे बढ़कर इसका खुला विरोध कर देता। जेठमलानी का मत था कि काटजू को शायद उस भ्रष्ट जज द्वारा किया जाने वाला नुकसान उतना बड़ा नहीं लगा होगा जितना उनके द्वारा अनुशासन तोड़ देने पर न्यायपालिका की छवि को होता। काटजू से यह रहस्योद्घाटन करने में इतनी देर करने की वजह जेठमलानी को बिल्कुल समझ में नहीं आ रही थी।

जब दोनो की घेरेबन्दी को अर्नब गोस्वामी ने काटजू के ऊपर और कसना शुरू किया तो काटजू ने झल्लाकर कहा- ये दोनो लोग कानून के बहुत बड़े जानकार भले ही होंगे, वकील भी बहुत बड़े होंगे लेकिन ये कभी जज नहीं रहे हैं। इसीलिए मेरी बात ये लोग नहीं समझ पा रहे हैं। न्यायमूर्ति की कुर्सी पर बैठे रहते हुए मैं पब्लिक के बीच कोई मुद्दा कैसे उठा सकता था? मैंने जीफ जस्टिस को इस बारे में पूरी बात बता दी थी। इससे ज्यादा मैं और क्या कर सकता था?

इसपर जेठमलानी बोले कि आपकी मजबूरी तभी तक थी न जबतक आप न्यायमूर्ति थे। छोड़ देते कुर्सी और आ जाते मैदान में। मैं तो इस्तीफा दे देता और इस भ्रष्टाचार की पोल खोल देता। इसपर काटजू ने पहले तो हँसकर मौज लेने की कोशिश की लेकिन बाद में गंभीर होकर बोले कि बेहतर होगा कि आप वकालत से ही इस्तीफा दे दीजिए। उनका आशय शायद यह था कि देश के सभी बड़े-बड़े अपराधी और घोटालेबाज जेठमलानी जी के मुवक्किल होते हैं। काटजू ने यह भी याद दिलाया कि उन्होंने अपनी मर्यादा में रहते हुए भी जो किया वह पहले किसी ने नहीं किया। इलाहाबाद हाईकोर्ट में ‘जज-अंकल’ की सड़ांध के बारे में उन्होंने ही खुलेआम चीफ जस्टिस को बताया था और उसपर कार्यवाही हुई थी।

उधर मनमोहन सिंह अभी साल भर पहले ही प्रधानमंत्री बने थे। उनकी कुर्सी सोनिया गांधी के आशीर्वाद के साथ साथ करुणानिधि की कृपा पर भी टिकी थी। हाईकोर्ट के एक भ्रष्ट जज को रोकने के लिए क्या वे अपनी सरकार चली जाने देते? लेकिन आज सबलोग यही कह रहे हैं कि उन्हें वह सिफारिश नहीं करनी चाहिए थी। भले ही करुणा बाबू अपना समर्थन खींच लेते। इन लोगों से कैसी महानता की आशा कर लेते हैं हम?  बहुत भोले हैं न हम सब?

7 टिप्‍पणियां:

  1. भोला कोई नहीं है सिवाए जनता के जो बार बार ऐसे मीडिया, नेताओं और नौकरशाही के चोंचलों में आती रहती है ... सिवाए फ्री के तमाशे के सिवा कुछ नहीं है ये .... कुछ नहीं होने वाला ... हाँ अगर किसी नेता के मन में सच में कुछ करने की होगी तो वो कर जाएगा ...

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  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
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    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बृहस्पतिवार (24-07-2014) को "अपना ख्याल रखना.." {चर्चामंच - 1684} पर भी होगी।
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    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  3. अपनी पोल क्यों खोलें
    मान लें अपने को भोले ।

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  4. बहुत अच्छा ब्लॉग है आपका। हाल ही में मैंने एक ब्लॉग लिखना शुरू किया है। कृपया पढ़ कर अपने कमेंट्स या सुझाव दे। मेरे ब्लॉग का नाम दैनिक ब्लॉगर है। (http://dainikblogger.blogspot.in/)

    धन्यवाद
    अयान

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