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रविवार, 16 दिसंबर 2012

कहाँ फँस गये तलाश में…?

तलाश की रिलीज से पहले प्राइमटाइम शो ‘न्यूज ऑवर’ में जब अर्नब गोस्वामी ने आमिर खान को उनकी नायिकाओं के साथ इंटरव्यू किया तो आमिर, करीना और रानी ने फिल्म की कहानी के बारे में कुछ भी नहीं बताया। फिल्म की प्रोमोशन स्ट्रेट्जी के खिलाफ़ था यह। निराश होकर ऐंकर ने आमिर से दूसरी बातें शुरू कर दी जो टीवी शो सत्यमेव जयते के बारे में थीं। फिल्मी हीरो आमिर खान के बजाय समाजसेवी आमिर से बातें होने लगीं और दोनो हिरोइनें नेपथ्य में चली गयीं।

सस्पेन्स थ्रिलर के नाम पर आमिर ने गोपनीयता का ऐसा माहौल बनाया कि हमने भी इस फिल्म को देखने का मन बना लिया। फिल्म रिलीज हुई तो तत्काल नहीं देख सके। फर्स्ट डे- फर्स्ट शो का रिस्की काम कभी नहीं करता। न्यूज चैनेल्स ने इसका रिव्यू भी आमिर की छवि को देखते हुए बुरा नहीं किया। इस सप्ताहान्त हमने ऑनलाइन टिकट बुक कराया। जब सीट चुनने के लिए कंप्यूटर स्क्रीन पर हाल की कुर्सियों का ले-आउट देखा तो केवल बीच की एक पंक्ति खाली दिखायी जा रही थी। बाकी booked/ unavailable थीं। मैं दंग रह गय। अब खिड़की से टिकट खरीदने वाले कैसे फिल्म देख पाएंगे?

चार बजे के शो पर INOX सिटी माल पहुँचे तो खिड़की पर सन्नाटा देखकर लगा कि फिल्म शुरू हो गयी है और हम लेट हो चुके हैं। जल्दी-जल्दी मोबाइल का एस.एम.एस. दिखाकर इन्ट्री पास लिया और भागते हुए लिफ़्ट में घुस लिए। भरी हुई लिफ़्ट पहले नीचे बेसमेन्ट में गयी। बड़ी-बड़ी ट्रॉलियों में भरे सामानों के साथ मोटे-मोटे खरीदारों को उनकी कार पार्किंग के फ्लोर पर छोड़ा फिर हल्का होकर ऊपर की ओर चली। ग्राउंड फ्लोर से पाँच छः लोग और घुसे जो दूसरे-तीसरे फ़्लोर पर शॉपिंग या खाने-पीने के लिए निकल गये। केवल हम दो जने बच गये। ऑडी-2 चौथे माले पर था। लिफ़्ट से बाहर निकले तो सिक्योरिटी वाले हमारा इन्ट्री-पास चेक करने और सुरक्षा जाँच करने के लिए आगे आये। हमने लगभग दौड़ते हुए जाँच पूरी करायी और ऑडी-2 में घुस लिए।

लेकिन यह क्या? यहाँ तो बिल्कुल सन्नाटा पसरा था। मुझे शक हुआ कि मैं गलत हाल में तो नहीं आ गया। अंधेरे हाल में नारंगी रंग की चमकती वर्दी में खड़े लाइटमैन से मैंने पूछा - हमें ‘तलाश’ देखनी थी, किस हाल में है? बोला- हाल यही है। अभी पाँच मिनट बाकी है। उसने टिकट देखा और सीट की लोकेशन बताने लगा जो मुझे पहले से पता थी। मैंने सीटों पर नजर दौड़ाई तो दर्शक नदारद थे। फर्श पर क्रमवार चमकते अक्षर सीटो और पंक्तियों का संकेत दे रहे थे। यह सोचता हुआ कि बाकी दर्शक शायद अँधेरे में नहीं दिख रहे हैं मैं कंप्यूटर में प्रदर्शित ले-ऑउट का स्मरण करते हुए अपनी सीट तक पहुँच गया। अपनी सीट के पीछे से आती बातचीत की आवाज से मुझे अनुमान हुआ कि उधर दस-बारह लोग और बैठे हुए फिल्म शुरू होने की प्रतीक्षा कर रहे हैं और छुट्टी का दिन बरबाद हो जाने के लिए अपने इस निर्णय को कोस रहे हैं।

पाँच मिनट बाद स्क्रीन पर हरकत हुई। सिगरेट, तम्बाकू इत्यादि की वैधानिक चेतावनी आयी। एक-दो कॉमर्शियल्स आये। कुछ ट्रेलर दिखाये गये। आखिरी ट्रेलर ‘बिजली की मटरू का मन डोला’ नामक फिल्म का था जिसे श्रीमती जी ने ‘तलाश’ का प्रारंभ समझ लिया और उसका तड़का-मसाला देखकर खुश हो गयीं। तभी स्क्रीन पर फिल्म प्रमाणन बोर्ड का प्रमाणपत्र नमूदार हुआ और ‘तलाश’ शुरू हो गयी। इस बीच तीन और दर्शक (लड़कियाँ) हमारे आगे वाली लाइन में आ गये।

Talaash Poster

फिल्म की कहानी तो आप जानते ही होंगे। एक एक्सीडेन्ट टाइप सीन हुआ। तेज गति से आती एक कार अचानक दाहिनी ओर मुड़ी और सभी ऊँची-नीची बाधाएँ पार करती हुई पहले आसमान में पच्चीस-तीस मीटर ऊपर उठी और फिर समुद्र में जा समायी। इस कार को एक फिल्म स्टार चला रहे थे। उनकी मौत की गुत्थी सुलझाने और इसके रहस्य को तलाशने में पुलिस इन्स्पेक्टर सुरजन ने पूरी ढाई घंटे की फिल्म का कबाड़ा कर दिया। यह फिल्म एक्शन और थ्रिल दिखाते-दिखाते ऐसी दिशा में मुड़ गयी जो बच्चों के कॉमिक्स में होता है। भटकती आत्मा के करतब, उसे सच में देखने वाला पुलिस इन्स्पेक्टर, माँ से बात करता उसका मर चुका बेटा, पानी के भीतर डूबते हुए हीरो को बाहर निकालती भटकती आत्मा और रेड-लाईट की दुनिया में विचरण करती और हीरो से इश्क की बातें भी करती हुई आत्मा पूरी फिल्म को ऐसा बना देती है कि अंत में दर्शक अपने को ठगा हुआ महसूस करता है। पूरी फिल्म में हम तलाश करते रहे कि यह एक्सीडेन्ट था या हत्या थी। लेकिन आमिर ने जो उत्तर दिया वह निराश करने वाला था।

हाल से बाहर निकलते हुए श्रीमती जी ने मुझे जी भरकर कोसा। बच्चों से छिपाकर फिल्म देखो और वह भी बकवास। उन्हें इस सदमें से उबरने के लिए मुझे कोई अच्छी फिल्म जल्दी ही दिखानी पड़ेगी। यह वादा लेकर ही वे घर वापस लौटी हैं। अब आप बताइए, उन्हें कौन सी फिल्म दिखाऊँ।

 -सत्यार्थमित्र (१६.१२.१२)

15 टिप्‍पणियां:

  1. ....सही तो है, उसे दर्शकों की तलाश है !

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  2. अरे वो कौन सी फिलिम थी श्री देवी की..पूरी कहानी याद है नाम ही भूल गया..बड़ी अच्छी फिल्म है पिछले महीने देखी थी.. न दिखाई तो जरूर दिखा दीजिये.. आपकी सौ गलतियाँ माफ हो जायेंगी।

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  3. बहुत पुण्य का कार्य किया आपने बता कर!

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  4. Galti se "Khiladi 786" ya "Son of Sardar" na dikha dijiyega. Halaat aur bhi nazuk ho jayenge.
    Life of Pi pe risk liya ja sakta hai preferably 3D me.

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  5. कहाँ आप इन बम्बइया फिल्मों के चक्कर में फँस जाते हैं? समूची इंडस्ट्री और विशेषकर ये सारे खान बारीक नकल और अंडरवर्ल्ड के धन को कई गुना बनाने में प्रवीण हैं

    . अन्य भाषाओं और अंतर्राष्ट्रीय फिल्मों का टेस्ट देवलप कीजिये, घर में बैठ कर असली डी वी डी चला असली फिल्म देखिय.

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  6. विज्ञापन ऐसा करते हैं कि कीमत तो वसूल ही हो जाती है।

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  7. बच्चों से छिपाकर फ़िलिम देखने की सजा मिली। :)

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  8. आप दोनों के लिए तो "दो बदन" ही ठीक रहेगी ?
    बकिया 'गुरु' लोग बताएँगे
    :)

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  9. फिल्म से कहीं ज़्यादा रोचक समीक्षा पढ़कर मज़ा आ गया। भविष्य मे भी यदि आप हमें ऐसी फिल्मों से पहले ही सावधान कर देंगे तो आभार होगा!

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  10. यह भी खूब रही.
    पर आप ऐसी फिल्म देखने जाते वक्त दिमाग को आराम से सोने क्यों नहीं देते, मान्यवर!

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    1. मेरे ख़याल से सोने के लिए सिनेमा हाल की सीट क़तई मुफ़ीद जगह नहीं है।
      तभी तो महसूस हुआ कि फँस ही गये हैं।:)

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