मैने पिछली पोस्ट में बताया था कि सत्यनारायण की कथा में लुप्त कथा का सूत्र आप सबके हाथ पकड़ाउंगा। सोचा कि यह बताऊंगा कि पण्डित जी जब कथा कहते हुए साधु वणिक्, काष्ठविक्रेता, शतानन्द ब्राह्मण, उल्कामुख, तुंगध्वज, आदि के प्रसंग में इनके द्वारा सत्यानारायण कथा सुनने की बात बताते हैं तो वे कौन सी कथाएं रही होंगी जो इन्होंने सुनी होगी। वे कथाएं कहाँ गयीं और इस कथा का प्रचार कैसे हुआ।
लेकिन जैसाकि हम जानते हैं प्रत्येक यज्ञ, व्रत, अनुष्ठान में विघ्न-बाधाएं आ ही जाती हैं। पुराने समय में ऋषि-मुनि जब कोई यज्ञादि का आयोजन करते थे तो विघ्नकारी तत्वों से रक्षा के लिए विशेष प्रबन्ध करते थे। गुरु वशिष्ठ ने राजा दशरथ से राम-लक्ष्मण को यज्ञ की रक्षा के लिए ही मांगा था। इसी प्रकार मेरे पुण्यकार्य में भी व्यवधान आ गया है। विघ्न डाला है एक शातिर चोर ने...
कथा प्रसंग यह है कि मेरी श्रीमतीजी अपने मायके से अपने भतीजे के मुण्डन में उपहार आदि बटोरकर इलाहाबाद वापस आ रही थीं। दोनो बच्चे और मेरा भतीजा अचल (१९ वर्ष) चौरीचौरा एक्सप्रेस के एसी कोच में उनके साथ थे। सुबह-सुबह जब बनारस से आगे इनकी नींद खुली तो पता चला कि बर्थ के नीचे जंजीर से बाँध कर रखे एयर-बैग की चेन के बगल में एक लम्बा चीरा लगाकर भीतर रखा हैण्डबैग उड़ा लिया गया है। उस पर्स में रखी नगदी और ज्यूलरी मिलाकर करीब पच्चीस हजार का चूना तो लगा ही, इनके मन में घर से बाहर निकलकर अकेले यात्रा कर लेने का जो आत्मविश्वास पैदा हो रहा था वह भी सेंसेक्स की तरह धड़ाम से नीचे आ गिरा।
चोरी का पता चलने के बाद कोच कण्डक्टर, अटेण्डेन्ट, सुरक्षाकर्मी आदि सभी पल्ला झाड़कर चलते बने। सहयात्रियों ने अपनी-अपनी लुटने की कहानी बता-बताकर इन्हें ढाँढस बँधाया। इलाहाबाद उतरकर जीआरपी थाने में प्राथमिकी दर्ज करायी गयी। पूरा दिन इस प्रक्रिया को पूरा करने और इष्टमित्रों को रामकहानी बताने में चला गया। अगले दिन अखबारों में खबर छप गयी। फिर दिनभर फोन का जवाब देने, कथा सुनाने और संवेदना बटोरने का क्रम चला।
इस विघ्न कथा का एक सर्वसम्मत निष्कर्ष यही निकला कि जो जाने वाला है उसे कोई रोक नहीं सकता। चाहे जैसी सुरक्षा व्यवस्था की गयी हो आप कभी भी आश्वस्त नहीं हो सकते। चोरी का धन्धा कभी मन्दा नहीं होने वाला है। इसी की देखभाल के लिए केन्द्र और राज्य सरकारों ने बहुत बड़ा पुलिस महकमा जो खड़ा कर रखा है।
हम भी इसी निचोड़ पर ध्यान लगा रहे हैं कि इस अकिंचन मानव के वश का कुछ नहीं है। जीवन में कल्याण और सर्वमंगल की गारण्टी देने की क्षमता इस लोक में किसी के पास नहीं है। यह तो केवल उसी एक परमेश्वर के हाथ में है जो त्रिकाल अबाधित सत्य है। वही सबके अभीष्ट मनोरथों को पूर्ण करने वाला है:
नवाम्भोजनेत्रं रमाकेलिपात्रं
चतुर्बाहुचामीकरं चारुगात्रम्।
जगत्त्राणहेतुं रिपौ धूम्रकेतुं
सदा सत्यनारायणं स्तौमि देवम्॥
तो आइए, हम सभी मिलकर श्री सत्यनारायन व्रत कथा के मूल तक पहुँचने की कोशिश करें। और अपने भीतर भक्तिभाव भरकर इस अमृतमय कथा का रसपान करें...
नोट: खेदप्रकाश करते हुए वचन देता हूँ कि अगली पोस्ट में सीधे कथा ही बता दूंगा :)
(सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी)
अब और इन्तजार नहीं .
ReplyDeleteये तो बहुत बुरा हुआ। मेरी संवेदनाएँ।
ReplyDeleteआभूषणों के साथ यात्रा नहीं करनी चाहिए। आज कल इमीटेशन ज्वेलरी अच्छी आती हैं। उनका प्रयोग ठीक रहता है।
घटना को जग जाहिर कर सबको सतर्क कर दिया। चोर ऐसा भी कर सकते हैं सोचा भी नहीं था। मड़ुवाडीह स्टेशन पर एक बार हम लोग ज्वेलरी से भरी अटैची ऑटो में छोड़ दिए थे। संयोग अच्छा था कि भोर के समय नींद से माता ऑटो वाला हमें छोड़ स्टेशन पर ही सो गया था। अटैची मिल गई।
सब संयोग का खेल है।
भाई वेसे मै इन बातो को नही मानता, क्योकि सोना जरुरी नही था, ओर अगर सोये तो इतना गहरा ? फ़िर उस कमरे को अंदर से लांक क्यो नही किया, फ़िर जब आप के पास टिकट है तो कलेम क्यो नही किया रेलवे से, चलिये मन को समझाने के लिये ख्याल अच्छा है गालिब
ReplyDeleteधन्यवाद
ओह यह तो बुरा हुआ -आप तो साथ नहीं थे भाभी जी ने जो क्लेश और मानसिक आघात सहा होगा उस घटना से (मात्र कीमती आभूषणों और नगदी के जाने से ही नहीं ) वह समझा सकता है .
ReplyDeleteपर वो एक सीख है न गतम न सोचाम ....चलिए अआप दोनों भूलिए इसे और भाभी जी से कहिये वे टूटी फूटी पर कुछ लिखें !
हम तो एक चोरी के बल पर राष्ट्र/परराष्ट्र/नैतिकता आदि पर चार पांच प्रकार से पोस्ट ठेलक मसाला बना लेते।
ReplyDeleteआप और आपकी पत्नी जी कम सक्षम नहीं हैं।
सम्वेदनायें।
कहीं ऐसा तो नहीं भाभी जी ने कथा करवाने को बोला हो और नहीं करवाई हो?
ReplyDeleteलेकिन मेने तो सुना था कि लालू के समय मै रेलवे ने बहुत तरक्की कर ली ?? तो क्या रेलवे आज भी वो ३० साल पुरानी ही है?? अगर ऎसा है तो मै माफ़ी चाहुंगा.
ReplyDeleteधन्यवाद
पिछले महीने दिल्ली जाते वकत मेरी बहन के साथ भी बिल्कुल ऐसा ही हुआ .. वह भी बनारस के आसपास ही .. आजकल रेलवे में ऐसी घटनाएं आम हो गयी हैं ।
ReplyDeletesafar sara sambhal kar
ReplyDeleteयह तो बहुत बुरा हुआ !
ReplyDeleteरेल मे चोरी आम बात है,इधर जहरखुरानी यानी नशीले पदार्थ खिला कर बेहोश कर लूटने की वारदात भी आये दिन होती है।इंतज़ार रहेगा कथा सुनने/पढने का।
ReplyDeleteये तो रोचक मामला बन गया है। भाग का इंतजार।
ReplyDelete-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
चोरा-चोरी एक्सप्रेस है तो चोरी होगी ही:) आपके माल की क्षति के लिए संवेदना ही प्रेषित कर सकते है। ईश्वर आपके माल को शांति प्रदान करें:)
ReplyDelete'चोर-चोरी' :) में तो हम भी खूब चलते थे. संस्थान से घर लगभग हर बार इसी ट्रेन से जाना होता था. और एक बार एक 'सज्जन' गलतफहमी में हमारा बैग लेकर उतर रहे थे की हमारी नींद खुल गयी थी. वैसे आपकी बात सच है जिसे जाना है वो तो जाएगा ही !
ReplyDeleteइस विघ्न कथा का एक सर्वसम्मत निष्कर्ष यही निकला कि जो जाने वाला है उसे कोई रोक नहीं सकता। चाहे जैसी सुरक्षा व्यवस्था की गयी हो आप कभी भी आश्वस्त नहीं हो सकते।
ReplyDelete"sach kh rhe hain aap, bhagwan hi bcaaye"
regards
थोड़े दिन पहले मैंने यह पोस्ट पढ़ी होती तो एक भविष्यवाणी करता, लेकिन अब देर हो चुकी है. करूंगा भी तो वह भूतवाणी साबित होगी. इसलिए छोड़ ही देता हूं.
ReplyDeleteथोड़े दिन पहले मैंने यह पोस्ट पढ़ी होती तो एक भविष्यवाणी करता, लेकिन अब देर हो चुकी है. करूंगा भी तो वह भूतवाणी साबित होगी. इसलिए छोड़ ही देता हूं.
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