हिन्दू परिवारों में सत्यनारायण की कथा से कौन नहीं परिचित होगा। कुछ गृहस्थ तो प्रत्येक मास की पूर्णिमा को इस कथा का आयोजन करते हैं। पंडित जी सत्यनारायण व्रत कथा की पोथी खोलकर बाँचते हैं और प्रत्येक अध्याय की समाप्ति पर शंख बजाते हैं। कथा के अन्त में यजमान को सबसे पहले प्रसाद मिलता है। उसके बाद सभी उपस्थित भक्तों को पञ्चामृत, मोहनभोग, पंजीरी आदि का प्रसाद वितरित किया जाता है। शहरों में भी आस-पड़ोस में आयोजित होने पर इस कथा में सम्मिलित होने का एक विशिष्ट ‘मेन्यू’ बन चुका है।
लेकिन मेरा अनुमान है कि इस कथा की विषयवस्तु के बारे में बहुत कम लोग रुचि लेकर जानने का प्रयास करते हैं। कथा में सशरीर उपस्थित होकर प्रसाद प्राप्त करने को ही अधिक महत्व दिया जाता है। मनसा उपस्थिति प्रायः शून्य ही होती है। इस कथा का मूल श्रोत भविष्य पुराण है। यह इसके प्रतिसर्ग पर्व के २३वें से २९वें अध्याय में वर्णित है। किन्तु भविष्य पुराण में और भी ढेर बातें हैं जो चमत्कृत करती हैं।
महर्षि वेद व्यास द्वारा रचित भविष्य पुराण में भगवान सूर्य नारायण की महिमा, उनके स्वरूप, पूजा उपासना विधि का विस्तार से उल्लेख किया गया है। इसीलिए इसे ‘सौर-पुराण’ या ‘सौर ग्रन्थ’ भी कहा गया है।
इस पुराण में स्त्री-पुरुष के शारीरिक लक्षणों, विभिन्न रत्नों की शुद्धता परखने का तरीका, विविध स्तोत्र, आयुर्वेद से सम्बन्धित अनेक प्रभावशाली औषधीय गुणों से युक्त वनस्पतियों और सर्प विद्या से सम्बन्धित अनेक अद्भुत बाते बतायी गयी हैं।
हजारो साल पहले रचे गये इस पुराण में २००० वर्षों का अचूक वर्णन है। इसकी विषय सामग्री देखकर मन बेहद आश्चर्य से भर उठता है। भविष्य की कोंख में छिपे घटना्क्रम और राजाओं, सन्तों, महात्माओं और मनीषियों के बारे में इतना सटीक वर्णन अचम्भित कर देता है। इसमें नन्द वंश एवं मौर्य वंश के साथ-साथ शंकराचार्य, तैमूर, बाबर हुमायूँ, अकबर, औरंगजेब, पृथ्वीराज चौहान तथा छत्रपति शिवाजी के बारे में बताया गया है। सन् १८५७ में इंग्लैण्ड की महारानी विक्टोरिया के भारत की साम्राज्ञी बनने और आंग्ल भाषा के प्रसार से भारतीय भाषा संस्कृत के विलुप्त होने की भविष्यवाणी भी इस ग्रन्थ में की गयी है। महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित इस पुराण को इसीलिए भविष्य का दर्पण भी कहा गया है।
प्रारम्भ में इस पुराण में पचास हजार (५००००) श्लोक विद्यमान थे लेकिन श्रव्य परम्परा पर निर्भरता और अभिलेख के रूप में उचित संरक्षण न मिल पाने के कारण वर्तमान में केवल अठ्ठाइस हजार (२८०००) श्लोक ही उपलब्ध रह गये हैं। स्पष्ट है कि अभी भी विद्वान उन अद्भुत एवं विलक्षण घटनाओं और ज्ञान से पूर्णतया अनभिज्ञ हैं जो इस पुराण के विलुप्त आधे भाग में वर्णित रही होंगी। सौभाग्य से अब गीताप्रेस गोरखपुर द्वारा ऐसे अनेक वैदिक व पौराणिक ग्रन्थों का संचयन, संरक्षण, परिमार्जन और प्रकाशन किया जाता है जो इस धर्मप्राण देश की अमूल्य थाती हैं। मूल संस्कृत के साथ-साथ हिन्दी में अनुवाद और टीकाएं प्रकाशित करने का यह अनुष्ठान प्रणम्य है।
इस वृहद ग्रन्थ की सम्पूर्ण सामग्री का उल्लेख तो यहाँ सम्भव नहीं है लेकिन मैं यहाँ चार पर्वों में विभाजित इस पुराण से कुछ ऐसी लोकप्रिय और जनश्रुत कहानियों और पौराणिक पात्रों तथा व्यक्तियों का नामोल्लेख करना चाहूँगा जिनके बारे में हम अपनी सामान्य बोलचाल में, रीति-रिवाजों के अनुपालन मे, अपने पारिवारिक व सामाजिक दिनचर्या में या साहित्य के अध्ययन की बौद्धिक परम्परा में प्रायः सुनते रहते हैं:
१.ब्राह्म पर्व: गर्भाधान से लेकर यज्ञोपवीत तक के संस्कार, भोजन विधि, ओंकार एवं गायत्री मन्त्र के जप का महत्व, अभिवादन विधि, विवाह योग्य युवक-युवतियों के शुभाशुभ लक्षण, विवाह के आठ प्रकार, पतिव्रता स्त्रियों, पुरुषों तथा राजपुरुषों के शुभाशुभ लक्षण, चतुर्थी व्रत, नागपंचमी व्रत, सर्पदंश से पीड़ित मनुष्यों के लक्षण, सर्पों के विष के वेग, शरीर में विष के पहुँचने, उसके प्रभाव तथा सर्पदंश की चिकित्सा विधि, षष्ठी व्रत (छठ- बिहार वाली), भगवान सूर्यदेव के माहात्म्य से जुड़ी अद्भुत और विलक्षण कथाएं, |
२.मध्यम पर्व: सृष्टि एवं विभिन्न लोकों की उत्पत्ति व स्थिति का वर्णन, गृहस्थ आश्रम की महिमा, माता, पिता व गुरू की महत्ता, विभिन्न वृक्षों को लगाने से प्राप्त होने वाले फल, वृक्षारोपण का उचित समय व इसका महत्व, हानिकारक वृक्ष, यज्ञ-हवन की विधियाँ, विभिन्न पक्षियों के दर्शन से प्राप्त होने वाले लाभ; चन्द्रमास, सौरमास, नक्षत्रमास, एवं श्रावण मास का माहात्म्य; ‘मल मास’ में शुभ कार्यों की वर्जना; उद्यानों, जलाशयों, गोचर भूमियों, अश्वत्थ, पुष्करिणी, तुलसि तथा मण्डप आदि की प्रतिष्ठा की महत्वपूर्ण शास्त्रोक्त (वैज्ञानिक) विधियाँ आदि। |
३.प्रतिसर्ग पर्व: ऐतिहासिक व आधुनिक घटनाओं का सुन्दर मिश्रण। ईसा मसीह का जन्म, उनकी भारत-यात्रा, मुहम्मद साहब का आविर्भाव, महारानी विक्टोरिया का राज्यारोहण, तक का वर्णन। सतयुग, त्रेता (सूर्यवंश व चंद्रवंश), द्वापर और कलियुग के राजा तथा उनकी भाषाएं, ‘नूह’ की प्रलय गाथा, मगध के राजा नन्द, बौद्ध राजा, चौहान व परमार वंश, राजा विक्रम और वेताल की शिक्षाप्रद कहानियाँ- ‘वैताल-पचीसी’, रूपसेन एवं वीरवर, हरिस्वामी, राजा धर्मबल्लभ एवं मन्त्री सत्यप्रकाश, जीमूतवाहन एवं शंखचूड़, गुणाकर, चार मूर्ख,एवं मझले भाई की रोचक व शिक्षाप्रद कथाएं। श्री सत्यनारायण व्रतकथा का पूजन विधि सहित विस्तृत वर्णन जिसमें शतानन्द ब्राह्मण, राजा चन्द्रचूड़, लकड़हारे, साधु वणिक व उसके जामाता की कथा वर्णित है। देवी दुर्गा की सप्तशती मे वर्णित उनके तीन चरित्र, कात्यायन एवं मगधराज महानन्द, देवी सरस्वती की कृपा से महर्षि पतंजलि द्वारा कात्यायन को शास्त्रार्थ में पराजित करने की कथा। भारत के लगभग १०००ई. के बाद का इतिहास। ईसा मसीह, पैगम्बर मुहम्मद, शंकराचार्य, कृष्णचैतन्य, पृथ्वीराज चौहान, अकबर, जयचन्द, तैमूरलंग, रामानुज, कुतुबुद्दीन ऐबक आदि का वर्णन। इस पर्व में शंकराचार्य को भगवान शिव का व रामानुजाचार्य को भगवान् विष्णु का अंशावतार बताया गया है तथा काशी में उनके बीच हुए रोचक शास्त्रार्थ का वर्णन किया गया है। |
४.उत्तर पर्व: भुवनकोश, भगवान् विष्णु की माया से देवर्षि नारद के मोहित होने का आख्यान व चित्रलेखा का चरित्र। तिलक व्रत, अशोक व्रत, करवीर व्रत (कनेर के वृक्ष की पूजा), परम गोपनीय और अत्यन्त फलदायी कोकिला व्रत (इस व्रत के प्रभाव से पति-पत्नी के मध्य प्रेम प्रगाढ़ होता है।), अनेक सौभाग्यशाली (रमा, मधूक, ललिता, अवियोग, रम्या, हरकाली, आदि) तृतीया व्रत, शनि ग्रह की पीड़ा से निवारण के लिए शनि व्रत के माहात्म्य सम्बन्धी पिप्पलाद की कथा। |
मैने इस अनमोल पुस्तक से कोई एक कथा संक्षेप में प्रस्तुत करने का मन बनाया था लेकिन इसमें छिपे खजाने के बारे में बताने का लोभसंवरण नहीं कर सका। अब मैं आपकी प्रतिक्रियाओं और फ़रमाइशों की प्रतीक्षा करूंगा। जनता की मांग के अनुसार ऊपर गिनाये गये विषयों में से कुछ अंश सत्यार्थमित्र पर प्रस्तुत करने की कोशिश करूंगा।
(सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी)
बढ़िया जानकारी, तीसरे पर्व पर जानकारी चाहूंगा।
जवाब देंहटाएंउत्तर भारत के हिन्दू जीवन के अभिन्न अंग बन चुकी सत्यनारायण कथा पर प्रकाश डालने के लिए बधाई
जवाब देंहटाएं। इस कथा में एक अजीब सी बात नोटिस करने योग्य है - सारे अध्यायों में कथा महात्म्य का ही वर्णन है लेकिन कथा क्या है
? यह नहीं मिलता।
कुछ लोगों का यह भी मत है कि इस्लाम के आगमन से आई धर्मांतरण के बाढ़ रोकने के लिए सनातन धर्म के मनीषियों ने इस अति सरल कथा का आविष्कार किया। उद्देश्य था आम जन के निर्वात से बन चुके लौकिक जीवन को धीरे से एक भराव का सामान दे देना। कथा अपने उद्देश्य में सफल हुई यह बात किसी से छिपी नहीं है। कभी और मसाला मिला तो पोस्ट लिखूँगा। भूमिका की सामग्री तो आप ने मुहैया करा ही दी।
भविष्य पुराण खरीदता हूँ और पढ़ता हूँ। इसका एक और पक्ष यह है कि भाषा शास्त्री इसे ब्रिटिश पिरियड तक अनवरत लिखी जाने वाली पुराण परम्परा मानते हैं और इसीलिए भविष्यवाणियों(?) को एकदम से खारिज कर देते हैं। कथित लुप्त श्लोकों वाली बात को भी वे 'भविष्यवाणी' को तार्किक सिद्ध करने का आयोजन बताते हैं।
संस्कृत मुझे आती नहीं, नहीं तो इस दृष्टि से खंगालता।
इतने अपनापन और संवाद स्थापित करती सी शैली में कैसे लिख लेते हो भाई? हम अपनी काशी पोस्टिंग के दौरान गंगा के सुरक्षित कच्चे किनारों पर गर्मी में खूब नहाए। सिद्धार्थ परम्परा की पोस्ट,सतत या टूटी फूटी कोई भी हो,पढ़ना कुछ वैसा ही अनुभव होता है। लिखते रहो। हिन्दी ब्लॉगिंग को तुम्हारे जैसों की बहुत जरूरत है।
http://ved-puran.com पर सबकुछ उपलब्ध है!
जवाब देंहटाएंसत्यार्थ मित्र के सत्कर्म की एक और बानगी ! कितना विविध और विपुल रहा है हमारा वांग्मय ! गिरिजेश जी के इस वक्तव्य "भाषा शास्त्री इसे ब्रिटिश पिरियड तक अनवरत लिखी जाने वाली पुराण परम्परा मानते हैं " से सहमति !
जवाब देंहटाएंमोंती चुंगें तो बांटे जरूर ! प्रतीक्षा है !
अरे वाह ये तो बहुत बढ़िया है बहुत सारी नई बातें पता चलीं।
जवाब देंहटाएंलिखा जाये, पढ़ा जायेगा!
जवाब देंहटाएंई स्वामि तो पूरा पोथा दे गये, अब क्या बचा!
जवाब देंहटाएंसत्यनारायण की कथा के अनुसार फलां शख्स ने सत्यनारायण की कथा सुना तो उसके कष्ट दूर हुए। संतोषी माता कथा के अनुसार गृहस्थ महिला रोज उपवास करती और संतोषी माता की कथा सुनती / पढती थी तो उसके कष्ट दूर हुए।
जवाब देंहटाएंलेकिन मैं ये समझ नहीं पाया कि जब यही कथा है तो उस कथा में पढी गई अथवा गुनी गई कथा क्या है। गिरिजेश जी ने मेरी बात लगभग खुल कर कही है कि सत्यनारायण कथा मं कथा का महात्म्य तो बताया है पर ये नहीं बताया कि कथा क्या है।
मैं नास्तिक तो नहीं, पर घोर आस्तिक भी नहीं हूँ। आपने अच्छा किया जो इस बारे में कुछ लिखा और इस मुद्दे को बहस लायक एक मंच दिया।
वैसे भी धर्म का मामला बडा पेचीदा होता है। जरा कुछ लीक से हटकर कोई कहे तो हजारों भृकुटियां तन जाती हैं :)
इस पेज को बुकमार्क कर लिया गया है...
जवाब देंहटाएंत्रिपाठी जी
जवाब देंहटाएंआज तो आपने निहाल ही कर दिया। अनुत्तरित प्रश्न को बताने की पहल कर दी। आप शनै: शनै: विस्तार से बताते रहेंगे तो हमें भी कथा का पुण्य मिल जाएगा। आपको बधाई, इतनी श्रेष्ठ प्रस्तुति के लिए।
लेख भी पढा और गिरिजेश राओ की टिप्पणी भी, वैसे मूल भविष्य पुराण भी पढा है और उस पर लिखा भी है. बहुत रोचक लगा.
जवाब देंहटाएंअच्छी जानकारी मिली और आगे भी इंतज़ार रहेगा आपको पढने का।
जवाब देंहटाएंअत्यंत ज्ञानवर्धक और जरूरी.
जवाब देंहटाएंयह तो सभी के लिए रोचक होगा .
जवाब देंहटाएंसिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी, इन सब कथा को सुनो तो वहम से ज्यादा कुछ नही मिलता, इन सब मै डर डाला जाता है यह करो नही तो वो हो जायेगा, चलिये अब इसे पढ कर देख्ते है, आप ने जानकारी अच्छी दी.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
सिद्धार्थजी
जवाब देंहटाएंभविष्य पुराण आपने काफी बारीकी से पढ़ लिया है जरा कुछ बांचें :)
हमको हमारे अतीत से जोड़ने के लिए शत शत धन्यवाद । आपके इस प्रयास से उन लोगों का भी ज्ञानवर्धन हो जायेगा जो कि पैदा तो भारत में हुए हैं लेकिन खुद को भारतीय संस्कृति से लाखों प्रकाशवर्ष दूर पाते हैं । इस महान कार्य को बीच में न छोड़ियेगा क्योंकि रास्ता बहुत लंबा है । इस शुभकर्म को शुरू करने के लिए मेरी शत शत बधाई स्वीकार करें ।
जवाब देंहटाएंहम हाथ जोड़ के सुन रहे हैं. प्रसाद वितरण की व्यवस्था है या नहीं? :)
जवाब देंहटाएंसिद्धर्थ जी पाठकों के मन में भगवान सत्यनारायण जी के वास्तविक स्वरूप को जाननें की जिज्ञासा उत्पन्न करनें में आप सफल रहे हैं। मूल कथा एवं स्वरूप के लिए प्रतीक्षा रहेगी।
जवाब देंहटाएंयह ग्रन्थ मेरे पास भी है। पर मैं तो इसे बाद में ट्राण्सप्लाण्टेड ही मानता रहा।
जवाब देंहटाएंज्ञानदत्त जी की बात से मेरी पूरी सहमति है. ट्रांसप्लांटेड मानने की एक वजह यह भी है कि 18 पुराणों में शामिल नहीं किया गया है. असल में इसमें मूलतः केवल पूजा विधियां हैं.
जवाब देंहटाएंखोजपूर्ण आलेख के लिए धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंसुखद आश्चर्य । सिध्दार्थ जी ने यथा नाम तथा गुण को चरितार्थ कर दिया । बधाई ।
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