हमारी कोशिश है एक ऐसी दुनिया में रचने बसने की जहाँ सत्य सबका साझा हो; और सभी इसकी अभिव्यक्ति में मित्रवत होकर सकारात्मक संसार की रचना करें।

मंगलवार, 3 मार्च 2009

अब चाहिए एक हाइब्रिड नेता...।

 

parlament2 देश की सबसे बड़ी पंचायत के चुनाव का बिगुल बज चुका है। आदर्श आचार संहिता लागू होने से ठीक पहले सरकारें अपने मतदाताओं को खुश करने के लिए एक से बढ़कर एक घोषणाओं, शिलान्यास, उद्‌घाटन, लोकार्पण और जातीय भाईचारा सम्मेलन जैसे कार्यक्रम पूरी तन्मयता से कर रही थीं। समय कम पड़ गया। आजकल नेताजी जनता की सेवा के लिए दुबले होते जा रहे हैं। इस समय अब मतदाता के सामने सोशल इन्जीनियरिंग के ठेकेदार पैंतरा बदल-बदल कर आ रहे हैं।

वोटर की चाँदी होने वाली है। भारतीय लोकतंत्र का ऐसा बेजोड़ नमूना पूरी दुनिया में नहीं मिलने वाला है। यहाँ राजनीति में अपना कैरियर तलाशने वाले लोग गजब के क्षमतावान होते हैं। इनकी प्रकृति बिलकुल तरल होती है। जिस बरतन में डालिए उसी का आकार धारण कर लेते हैं। जिस दल में जाना होता है उसी की बोली बोलने लगते हैं। पार्टीलाइन पकड़ने में तनिक देर नहीं लगाते।

आज भाजपा में हैं तो रामभक्त, कल सपा में चले गये तो इमामभक्त, परसो बसपा में जगह मिल गयी तो मान्यवर कांशीराम भक्त। कम्युनिष्ट पार्टी थाम ली तो लालसलाम भक्त। शिवसेना में हो जाते कोहराम भक्त, राज ठाकरे के साथ लग लिए तो बेलगाम भक्त। और हाँ, कांग्रेस में तो केवल (madam) मादाम भक्त...!

कुछ मोटे आसामी तो एक साथ कई पार्टियों में टिकट की अर्जी लगाये आला नेता की मर्जी निहार रहे हैं। जहाँ से हरी झण्डी मिली उसी पार्टी का चोला आलमारी से निकालकर पहन लिया। झण्डे बदल लिए। सब तह करके रखे हुए हैं। स्पेशल दर्जी भी फिट कर रखे हैं।

हर पार्टी का अपना यू.एस.पी.है। समाज का एक खास वर्ग उसकी आँखों में बसा हुआ है। जितनी पार्टियाँ हैं उतने अलग-अलग वोटबैंक हैं। सबका अपना-अपना खाता है। राजनीति का मतलब ही है - अपने खाते की रक्षा करना और दूसरे के खाते में सेंध मारने का जुगाड़ भिड़ाना। आजकल पार्टियाँ ज्वाइण्ट खाता खोलने का खेल खेल रही हैं ताकि बैंक-बैलेन्स बढ़ा हुआ लगे। कल के दुश्मन आज गलबहिंयाँ डाले घूम रहे हैं। carcat        कार्टून: शंकर परमार्थी 

नेताजी माने बैठे हैं कि वोटर यही सोच रहा है कि अमुक नेताजी मेरी जाति, धर्म, क्षेत्र, रंग, सम्प्रदाय, व्यवसाय, बोली, भाषा, आदि के करीब हैं तो मेरा वोट उन्हीं को जाएगा। उनसे भले ही हमें कुछ न मिले। दूसरों से ही क्या मिलता था? कम से कम सत्ता की मलाई दूसरे तो नहीं काटेंगे...! अपना ही कोई खून रहे तो क्या कहना?

जो लोग देश के विकास के लिए चिन्तित हैं, राष्ट्र को आगे बढ़ाने के लिए भ्रष्टाचार, अपराध, अशिक्षा, और अराजकता को मिटाने का स्वप्न देखते हैं, वे भकुआ कर इन नेताओं को ताक रहे हैं। इनमें कोई ऐसा नहीं दिखता जो किसी एक जाति, धर्म, क्षेत्र, रंग, सम्प्रदाय, व्यवसाय, भाषा, बोली आदि की पहचान पीछे धकेलकर एक अखिल भारतीय दृष्टिकोण से अपने वोटर को एक आम भारतीय नागरिक के रूप में देखे। उसी के अनुसार अपनी पॉलिसी बनाए। आज यहाँ एक सच्चे भारतीय राष्ट्रनायक का अकाल पड़ गया लगता है।

हमारे यहाँ के मतदाता द्वारा मत डालने का पैटर्न भी एक अबूझ पहेली है। जो महान चुनाव विश्लेषक अब टीवी चैनलों पर अवतरित होंगे वे भी परिणाम घोषित होने के बाद ही इसकी सटीक व्याख्या प्रस्तुत कर सकेंगे। इसके पहले तुक्केबाजी का व्यापार तेज होगा। कई सौ घंटे का एयर टाइम अनिश्चित बातों की चर्चा पर बीतेगा। इसे लोकतन्त्र का पर्व कहा जाएगा।

मेरे मन का वोटर अपने वोट का बटन दबाने से पहले यह जान लेना चाहता है कि क्या कोई एक व्यक्ति ऐसा है जो अपने मनमें सभी जातियों, धर्मों, क्षेत्रों, रंगो, सम्प्रदायों, व्यवसायों, भाषाओं और बोलियों के लोगों के प्रति समान भाव रखता हो? शायद नहीं। ऐसा व्यक्ति इस देश में पैदा ही नहीं हो सकता। इस देश में क्या, किसी देश में नहीं हो सकता।  इस प्रकार के विपरीत लक्षणों का मिश्रण तो हाइब्रिड तकनीक से ही प्राप्त किया जा सकता है।

इस धरती पर भौतिक रूप से कोई एक विन्दु ऐसा ढूँढा ही नहीं जा सकता जहाँ से दूसरी सभी वस्तुएं समान दूरी पर हों। फिर इस बहुरंगी समाज में ऐसा ज्योतिपुञ्ज कहाँ मिलेगा जो अपना प्रकाश सबपर समान रूप से डाल सके?

प्लेटो ने ‘फिलॉस्फर किंग’ की परिकल्पना ऐसे ही नहीं की होगी। उन्होंने जब लोकतंत्र को भीड़तंत्र में बदलते देखा होगा और इसमें पैदा होने वाले अयोग्य नेताओं से भरोसा उठ गया होगा तभी उसने ‘पत्नियों के साम्यवाद’ का प्रस्ताव रखा होगा। यानि ऐ्सी व्यवस्था जिसमें हाइब्रिड के रूप में उत्कृष्ट कोटि की संतति पायी जा सके जिसे अपने माँ-बाप, भाई-बन्धु, नाते रिश्ते, जाति-कुल-गोत्र आदि का पता ही न हो और जिससे वह राज्य पर शासन करते समय इनसे उत्पन्न होने वाले विकारों से दूर रह सके। राजधर्म का पालन कर सके।

आज विज्ञान की तरक्की से उस पावन उद्देश्य की प्राप्ति बिना किसी सामाजिक हलचल के बगैर की जा सकती क्या? ...सोचता हूँ, इस दिशा में विचार करने में हर्ज़ ही क्या है?

(सिद्धार्थ)

14 टिप्‍पणियां:

  1. विचार हो किसी भी दिशा में, पर विचार होना चाहिये और फिर आप तो सही दिशा में विचार रहे हैं.

    शंकर परमार्थी का कार्टून देखकर तबीयत मस्त हो गई.

    जवाब देंहटाएं
  2. भई वाह दोगलों की सरकार की व्यंजना भा गयी !

    जवाब देंहटाएं
  3. एक सामयिक और विचारपरक पोस्ट। चिंतन प्रक्रिया को झकझोरनें के लिये साधुवाद। संकर नस्ल के नेताऒं का विचार देश की समस्यायों के निराकरण के लिये रामबाण साबित होगा। आपसे ऐसे बहुत सारी पोस्टों की उम्मीद रहेगी चुनावी पर्व के दौरान।

    जवाब देंहटाएं
  4. I m not here to give any comment on the post, Just wantedTo wish u A VERY HAPPY B'DAY.

    जवाब देंहटाएं
  5. हाइब्रिड जनता क़ी ज़्यादा ज़रूरत लगती है मुझे..

    क्या वाकई आपका जन्मदिवस है आज? यदि है.. तो बधाई स्वीकारे

    जवाब देंहटाएं
  6. कार्टून..दिलचस्प है बूढे भ्रष्ट नेताओ से कोई उम्मीद नहीं है...सब एक ही थैले की चट्टे- बट्टे है

    जवाब देंहटाएं
  7. इन मे से किसे देश की फ़िक्र है ? शायद किसी को भी नही... सभी को अपनी अपनी पडी है, तो यह क्या देश की प्र क्या समाज की सेवा करेगे... साले दलबदलू.....
    आप का लेख ओर चित्र दोनो ही लाजवाब है.

    जवाब देंहटाएं
  8. अच्छा वैचारिक व सामयिक चिन्तन। थाली के बैगन व चरित्र के ढीले तथाकथित नेताओं की खासी धुनाई होनी जरूरी है। लोग इसीलिए चुनावों से उचाट होते जा रहे हैं। परन्तु यह भी लोकतन्त्र के लिए नया खतरा है। वे दुष्ट एकछत्र निरंकुश शासक हुए जाते हैं।
    इस देश का क्या समाधान है,पता नहीं। ऊब होती है अब तो। सब आपारधिकों का जमावड़ा है देश।

    जवाब देंहटाएं
  9. अब आपको जन्मदिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ।

    एक दिन के विलम्ब का खेद सहित प्रपत्र एक अलग लिफ़ाफ़े में।

    जवाब देंहटाएं
  10. ऐसा है कि तरह तरह के दलों-नेताओं-वर्गों की सरकारें देख लीं। देश तो धारा में बहती बिना रडर की नाव सा लगता है।
    आज जो प्रॉमिजिंग लगता है, कल वही अपना घर भरता नजर आता है!
    देश चलेगा, अपनी चाल से। हां, समय चमत्कार करता है - वही प्रतीक्षा है।

    जवाब देंहटाएं
  11. party bhakto ki suchi padhkar aanand aa gaya.....sare bhakt party me chal rahi hawa ki disa me chalte najar aa rahe hai.madam bhakt kuchh hi dino me calm bhakt (rahul) hote najar aa rahe hain. kuchh bhakt to aise hain jo har tarah ki hawa ke sath chlne ka samarthya rakhte hain. bahut achhi post...

    जवाब देंहटाएं
  12. बधाई हो, आपकी यह पोस्‍ट अमर उजाला के कल के अथवा आज के अंक में प्रकाशित हुई है।

    जवाब देंहटाएं
  13. बधाई हो, आपकी यह पोस्‍ट अमर उजाला के कल के अथवा आज के अंक में प्रकाशित हुई है।

    जवाब देंहटाएं

आपकी टिप्पणी हमारे लिए लेखकीय ऊर्जा का स्रोत है। कृपया सार्थक संवाद कायम रखें... सादर!(सिद्धार्थ)