tag:blogger.com,1999:blog-4959245896522980751.post8876154031742324698..comments2023-12-10T22:24:08.053+05:30Comments on सत्यार्थमित्र: यह सरकारी ‘असरकारी’ क्यों नहीं है?सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठीhttp://www.blogger.com/profile/04825484506335597800noreply@blogger.comBlogger9125tag:blogger.com,1999:blog-4959245896522980751.post-41664144698457210372011-06-11T16:13:15.588+05:302011-06-11T16:13:15.588+05:30..डा० अमर कुमारhttps://www.blogger.com/profile/09556018337158653778noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4959245896522980751.post-31170930553750891372009-05-07T22:21:00.000+05:302009-05-07T22:21:00.000+05:30baat gambhir aur dhyan dene wali haibaat gambhir aur dhyan dene wali haiprabhat gopalhttps://www.blogger.com/profile/04696566469140492610noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4959245896522980751.post-714490658600895152008-11-27T18:02:00.000+05:302008-11-27T18:02:00.000+05:30अत्यन्त दुखद, चिंतित करने वाला और विचारणीय प्रश्न....अत्यन्त दुखद, चिंतित करने वाला और विचारणीय प्रश्न. <BR/>इसे दूर करने का एक ही तरीका है की हम ख़ुद को जिम्मेदार नागरिक बनाएं, ख़ुद अनुशासन में रहें और दूसरों को भी रहने को प्रेरित करें. जो अनुशासन हीन हैं उन्हें हतोत्साहित करें (मगर सही तरीके से.) साथ ही बच्चों को भी यही संस्कार दें.Rajeev Nandan Dwivedi kahdojihttps://www.blogger.com/profile/13483194695860448024noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4959245896522980751.post-39843455159551705902008-11-26T14:25:00.000+05:302008-11-26T14:25:00.000+05:30मित्र, मुझे तो लगता है कि यह हमारे भौगोलिक वातावर...मित्र, मुझे तो लगता है कि यह हमारे भौगोलिक वातावरण का कुप्रभाव है, जो बुरी तरह से हमारे जींस में भी घुस गया है।adminhttps://www.blogger.com/profile/09054511264112719402noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4959245896522980751.post-1999608153871300802008-11-26T07:57:00.000+05:302008-11-26T07:57:00.000+05:30हर जगह यही हाल है लेकिन सिर्फ पूर्वी उत्तरप्रदेश क...हर जगह यही हाल है लेकिन सिर्फ पूर्वी उत्तरप्रदेश का नाम इस मामले में कुछ ज्यादा ही बदनाम है। विश्लेषण किया जाय तो कई रोचक तथ्य सामने आ सकते हैं जो देश के बाकी हिस्सों की भी बदहाल तस्वीर पेश करेंगे।<BR/>अच्छी पोस्ट।सतीश पंचमhttps://www.blogger.com/profile/03801837503329198421noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4959245896522980751.post-63316488099514286952008-11-25T23:20:00.000+05:302008-11-25T23:20:00.000+05:30हमारा सारा ढांचा अभी भी अंग्रेजो के जमाने का ही है...हमारा सारा ढांचा अभी भी अंग्रेजो के जमाने का ही है जब तक इसे नाबदला जायेगा तब तक सरकारी काम ऎसे ही चलते रहै गे.<BR/>धन्यवादराज भाटिय़ाhttps://www.blogger.com/profile/10550068457332160511noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4959245896522980751.post-22016458049012365492008-11-25T18:39:00.000+05:302008-11-25T18:39:00.000+05:30इसी व्यवस्था से व्यथित होकर कभी बाबा नागार्जुन ने ...इसी व्यवस्था से व्यथित होकर कभी बाबा नागार्जुन ने लिखा था-<BR/><BR/>सड़े हुए शहतीरों की बाराखडी बिधाता बांचे,<BR/>टूटी भीत है छत चूती है आले पर बिस्तुइया नाचे,<BR/>बिफरा कर रोते बच्चों पर मिनट-मिनट में पॉँच तमाचे,<BR/>दुखरन मास्टर गढ़ते रहते जाने कैसे-कैसे सांचे. <BR/><BR/>सरकारी तंत्र की विफलता के पीछे जितना लंबा हाथ नौकरशाही का है, उतना ही रियाया की आंख मूंदे रहने की प्रवृत्ति का भी.कार्तिकेय मिश्र (Kartikeya Mishra)https://www.blogger.com/profile/03965888144554423390noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4959245896522980751.post-21107002298842892482008-11-25T16:30:00.000+05:302008-11-25T16:30:00.000+05:30सरकारी और प्राइवेट में फर्क देखना पूर्वी उत्तर प्र...सरकारी और प्राइवेट में फर्क देखना पूर्वी उत्तर प्रदेश की मानसिकता है. आप किसी कंपनी के सीईओ भी बन जाओ तो लोग यही कहेंगे 'है तो प्राइवेट ही ना?' और सरकारी चपरासी की भी औकात होती है... फिर प्राइमरी के मास्टर तो राजा होते हैं !<BR/><BR/>इस नौकरी का मतलब ही होता है घर पर रहो सारे काम करो... खेती करो. महीने में एक-आध बार स्कूल हो आओ. हमारे एक करीबी हैं वो शिक्षा मित्र होते हुए दुसरे शहर में छात्र भी थे ! उन्होंने थोड़े ज्यादा वेतन पर एकाउंटेंट की 'प्राइवेट' नौकरी नहीं की... कारण था प्राइमरी की मास्टरी की जायेगी एकाउंटेंट में बहुत काम करवाएंगे ! एक बार मास्टर बन गए तो प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी भी की जायेगी और फिर कोई अच्छी सरकारी नौकरी... 'आराम की जिंदगी'. प्राइमरी का मास्टर तो होता ही है इसीलिए. <BR/><BR/>हाँ आईआईटी में शनिवार-रविवार और रात को आठ-दस बजे भी क्लास हुई... कई बार ! शायद मानसिकता का फर्क है. पूर्वी उत्तर प्रदेश की चिरकुटी मानसिकता को तो मैं जानता हूँ.Abhishek Ojhahttps://www.blogger.com/profile/12513762898738044716noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4959245896522980751.post-24745283976448957262008-11-25T16:24:00.000+05:302008-11-25T16:24:00.000+05:30शिक्षा के क्षेत्र में ही नहीं, अन्य क्षेत्रों में ...शिक्षा के क्षेत्र में ही नहीं, अन्य क्षेत्रों में भी <B>सरकारी</B> <B>असरकारी</B> नहीं है। अगर कहीं सरकारी क्षेत्र में उत्कृष्टता दिखती भी है तो वह व्यक्तिनिष्ठ होती है, संस्थागत नहीं। <BR/>भारत में तो यह मुझे लोगों का चरित्रगत दोष लगता है। सरकारी नौकरी मिलने पर सेलरी को अपना अधिकार मानते हैं वे और काम करने के लिये अन्य मोटीवेशन चाहिये उनको!Gyan Dutt Pandeyhttps://www.blogger.com/profile/05293412290435900116noreply@blogger.com