tag:blogger.com,1999:blog-4959245896522980751.post7596353361881383408..comments2023-12-10T22:24:08.053+05:30Comments on सत्यार्थमित्र: गाली के बहाने दोगलापन...।सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठीhttp://www.blogger.com/profile/04825484506335597800noreply@blogger.comBlogger17125tag:blogger.com,1999:blog-4959245896522980751.post-23067300529392625162009-01-02T00:36:00.000+05:302009-01-02T00:36:00.000+05:30यह नौबत तक आगाई कि हिन्दी ब्लॉगरों को आपस में ब...यह नौबत तक आगाई कि हिन्दी ब्लॉगरों को आपस में बात करने के लिए अँग्रेज़ी का प्रयोग करना पद रहा है | किस से क्या छिपाना चाह रहे हैं ?'' अन्योनास्ति " { ANYONAASTI } / :: कबीरा ::https://www.blogger.com/profile/02846750696928632422noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4959245896522980751.post-66013694208238409502008-12-31T02:07:00.000+05:302008-12-31T02:07:00.000+05:30सिद्धार्थजी कहाँ अनर्थक चर्चा में पड़ गये? कुछ अच्छ...सिद्धार्थजी कहाँ अनर्थक चर्चा में पड़ गये? कुछ अच्छा अच्छा लिखिये पढ़िये न और अब तो नया वर्ष भी आगया!सुमन्त मिश्र ‘कात्यायन’https://www.blogger.com/profile/14324507646856271888noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4959245896522980751.post-57722668121482986722008-12-30T23:01:00.000+05:302008-12-30T23:01:00.000+05:30हमें लघ्टा है की अब इस चर्चा को विराम दे दिया जाना...हमें लघ्टा है की अब इस चर्चा को विराम दे दिया जाना चाहिए. समझने वेल सब साँझ गये हैं.<BR/>आपके लिए और आपके परिवार के लिए नव वर्ष मंगलमय हो.Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4959245896522980751.post-28215504679971249802008-12-30T18:53:00.000+05:302008-12-30T18:53:00.000+05:30बढ़िया चर्चा है। काश में उन्मुक्त भाव से कुछ कह पा...बढ़िया चर्चा है। काश में उन्मुक्त भाव से कुछ कह पाता!Gyan Dutt Pandeyhttps://www.blogger.com/profile/05293412290435900116noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4959245896522980751.post-19031373118781023892008-12-30T13:13:00.000+05:302008-12-30T13:13:00.000+05:30सीमा जी से सहमत… बहसकारों को एक प्रिय विषय मिल गया...सीमा जी से सहमत… बहसकारों को एक प्रिय विषय मिल गया है "गालियाँ", सब लगे हुए हैं अपने को सही साबित करने में… बहस हो भी रही है तो किस बात पर गालियों पर और महिलाओं पर… क्या इस विषय को तत्काल खत्म नहीं किया जा सकता? और शेखर से भी सहमत हूँ कि सिगरेट-शराब की तरह गालियों के मामले में धीरे-धीरे लड़के-लड़की में फ़र्क मिट रहा है, मैंने खुद कई बार कॉलेज जाते लड़के-लड़कियों के ग्रुप में लड़कियों के मुँह से आपस में "चूतिया", "फ़ट गई", "अबे तेरी माँ की आँख" जैसे शब्दों का आदान-प्रदान सुना है… अब चोखेर बालियाँ इस पर पता नहीं क्या कहेंगी…Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/02326531486506632298noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4959245896522980751.post-23478819752486945212008-12-30T13:02:00.000+05:302008-12-30T13:02:00.000+05:30चिट्ठाचर्चा में आपके ब्लाग की चर्चा में मैंने जो प...चिट्ठाचर्चा में आपके ब्लाग की चर्चा में मैंने जो प्रतिक्रिया दी, उस पर जो गाली खाई, तो आगे क्या कहूं!<BR/><BR/>i dont think what you wrote mr cmpershad was a reaction to any post . it was your thinking which came out in open . you want woman to open red light areas for them selfs because if woman desire to be equals then they should be prepared to be raped and molested and sold . <BR/><BR/>using foul language is bad for any one instead of saying that you simply said that if woman want to use fould language they should be ready to sell their bodies . <BR/><BR/>i feel you should stop commenting if you dont understand the issueAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4959245896522980751.post-50078873605328849512008-12-30T12:41:00.000+05:302008-12-30T12:41:00.000+05:30क्या लड़का क्या लड़की, जिसे जहाँ मौका मिलता है पुर...क्या लड़का क्या लड़की, जिसे जहाँ मौका मिलता है पुरुषत्व दिखा देता है| कल मेरी एक मित्र से बात हुई उन्होंने बताया की रात की शिफ्ट में चाय वाले के यहाँ लड़के लड़कियां चाय के साथ सिगरेट का आनंद उठाते है? कारण, रात में काम करने के लिए मोटिवेशन जरुरी होता है| यही नही गालियों में भी दोनों में फर्क दिन ब दिन कम होता जा रहा है| <BR/><BR/>मेरे कहने का तात्पर्य यह है की जब भी किसी को वैसा परिवेश मिलता है, दोनों में फर्क ख़त्म हो जाता है और फ़िर इस तरह की चर्चा बेमानी लगने लगती है| <BR/><BR/>गालियों के लिए पुरुषों की सहमती की जरुरत नही है, बस मौका मिलना चाहिए| पुरूष होना आजकल फैशन में है|sshttps://www.blogger.com/profile/10746526495871896780noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4959245896522980751.post-24027630423701308652008-12-30T12:14:00.000+05:302008-12-30T12:14:00.000+05:30" ये कैसी जंग है, ब्लाग जगत के इतने आदरणीय और सम्म..." ये कैसी जंग है, ब्लाग जगत के इतने आदरणीय और सम्मानित लोग किस बात पे बहस कर एक दुसरे पर आरोप प्रत्यारोप कर रहे हैं...क्या अब ब्लॉग जगत में ऐसे विषयों पर इतनी अभद्रता से बहस होगी??? बहुत दुखद और असहनीय लग रहा है ये सब पढना और देखना ...हम लोग यहाँ क्या साबित करना चाह रहे हैं....पुरूष और महिला एक दुसरे के पूरक हैं दोनों एक दुसरे के बिना अधूरे हैं फ़िर क्या ये जायज है की इस तरह एक दुसरे को सरे आम यूँ अपमानित किया जाए.....ये बात कहाँ से कैसे शुरू हुई ये मै नही जानती, बस आप सभी से नम्र निवेदन है की , अब इस बहस पर विराम चिन्ह लगायें और इसको यही खत्म करें...."<BR/><BR/>क्षमा और निवेदन सहितseema guptahttps://www.blogger.com/profile/02590396195009950310noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4959245896522980751.post-49518112975520823502008-12-30T12:13:00.000+05:302008-12-30T12:13:00.000+05:30इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.seema guptahttps://www.blogger.com/profile/02590396195009950310noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4959245896522980751.post-46683114928607523212008-12-29T23:56:00.000+05:302008-12-29T23:56:00.000+05:30चिट्ठाचर्चा में आपके ब्लाग की चर्चा में मैंने जो प...चिट्ठाचर्चा में आपके ब्लाग की चर्चा में मैंने जो प्रतिक्रिया दी, उस पर जो गाली खाई, तो आगे क्या कहूं!चंद्रमौलेश्वर प्रसादhttps://www.blogger.com/profile/08384457680652627343noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4959245896522980751.post-24978521904056093212008-12-29T21:25:00.000+05:302008-12-29T21:25:00.000+05:30भाई गलियां ना तो मे देता हुं, ना ही मुझे अच्छा लगत...भाई गलियां ना तो मे देता हुं, ना ही मुझे अच्छा लगता है, अब चाहे देने वाला पुरुष हो या स्त्री, कभी किसी को गाली देते हुये सुने फ़िर सोचे क्या गाली देना अच्छा है??? अगर बराबरी ही करनी है तो किसी अच्छे काम मै करो.....राज भाटिय़ाhttps://www.blogger.com/profile/10550068457332160511noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4959245896522980751.post-89691939854154988462008-12-29T15:48:00.000+05:302008-12-29T15:48:00.000+05:30लोग गालियाँ क्यों देते हैं ? और पुरुष अधिक क्यों? ...लोग गालियाँ क्यों देते हैं ? और पुरुष अधिक क्यों? यह बहुत गंभीर और विस्तृत विषय है। सदियों से समाज में चली आ रही गालियों के कारणों पर शोध की आवश्यकता है। समाज में भिन्न भिन्न सामाजिक स्तर हैं। मुझे लगता है कि बात गंभीरता से शुरू ही नहीं हुई। हलके तौर पर शुरू हुई है। लेकिन उसे गंभीरता की ओर जाना चाहिए।दिनेशराय द्विवेदीhttps://www.blogger.com/profile/00350808140545937113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4959245896522980751.post-88982263453060541482008-12-29T12:20:00.000+05:302008-12-29T12:20:00.000+05:30जहां तक मुझे याद है जब मैं करीब सात-आठ साल की थी त...जहां तक मुझे याद है जब मैं करीब सात-आठ साल की थी तो मैंने भी कुछ ईसी तरह की गाली का ईस्तमाल अपने भाइयों के लिए किया था नतीजा पापा ने मुझें कुएं में लटका दिया था और मेरा गांव घूमना बन्द। तबसे मेरे लिए गाली तो जैसे कोई भूत,आज फ़िर वही भूत उपटा है। सारा दिन गालीमय हो गया ।रचना त्रिपाठीhttps://www.blogger.com/profile/12447137636169421362noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4959245896522980751.post-17607132291399800212008-12-29T11:27:00.000+05:302008-12-29T11:27:00.000+05:30देखिए चोखेर बाली तो एक अदना सा मंच है , इसकी क्या ...देखिए चोखेर बाली तो एक अदना सा मंच है , इसकी क्या औकात कि ज़माने की भली बहू बेटियों को बिगाड़ पाए। फिर भी आप हमें झंडाबरदार कहते हैं तो आपकी ज़र्रा नवाज़ी। लेकिन बस इतना बताइए कि क्या पंच इस पर सहमत हैं कि वे अपनी बेटियों और बेटों के सामने समान भाषिक सन्यम का आदर्श रखेंगे और उनके अनुसरण न करने पर समान रूप से आहत होंगे।क्या पंच इस बात पर सहमत हैं कि गालियों की परम्परा यदि गलत है तो इसे सबसे पहले हमें यानी पुरुषों को त्यागना होगा क्योंकि आपके अनुसार यह पुरुषों की ही थाती है? <BR/>मै क्या होड़ करना चाहती हूँ , यहाँ मंतव्य यह नही है क्योंकि मुझे जब गाली देनी होगी तो उसके लिए पोस्ट लिखने की ज़रूरत नही होगी।या किसी भी लड़की का जब गुस्से मे ऊल जलूल बोलने का मन करेगा तो वह चोखेर बाली से ही प्रेरित नही होकर करेगी।इस लिए आप निश्चिंत हो सकते हैं।<BR/> <BR/>मै केवल उस मानसिकता को आपके आगे लाने की हिमाकत कर रही हूँ कि पुरुष होने के नाते जिन गालियों को कोई इंज्वाय करता हैं जब वही स्त्री के मुख से सुनता है तो तिलमिला जाता है।उसे अचानक सभ्यता की याद आती है, संस्कृति की याद आती है। <BR/>मेरी दृष्टि मे यह दोगलापन है।सुजाताhttps://www.blogger.com/profile/12373406106529122059noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4959245896522980751.post-75700859901665380132008-12-29T10:12:00.000+05:302008-12-29T10:12:00.000+05:30sahmat hai. thik likha haisahmat hai. thik likha haiprabhat gopalhttps://www.blogger.com/profile/04696566469140492610noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4959245896522980751.post-76828110540853919682008-12-29T09:34:00.000+05:302008-12-29T09:34:00.000+05:30आपने भी सही ढंग से अपनी बात रखी। संदर्भित पोस्ट की...आपने भी सही ढंग से अपनी बात रखी। संदर्भित पोस्ट की बात जानें दें, हम आपसे भी सहमत हैं।अजित वडनेरकरhttps://www.blogger.com/profile/11364804684091635102noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4959245896522980751.post-27699689663396720702008-12-29T07:46:00.000+05:302008-12-29T07:46:00.000+05:30वाह सिद्धार्थ जी आप भी ! कुछ छोड़ते नहीं और मैं यह...वाह सिद्धार्थ जी आप भी ! कुछ छोड़ते नहीं और मैं यह जोड़ता हूँ ! <BR/>कहीं यह भी ध्वनित हुआ कि गालियाँ स्त्री अंगों और स्त्री के लिए ही जयादा हैं -यह ग़लत फहमी है .कभी ध्यान से गावों की औरतों को झगड़ते हुए देखिये (जिन्होंने नही देखा सुना है ! ) -गलियाँ एक पुरूष विशेष अंग के इर्द गिर्द किसी झंझावात की तरह घूमती हैं .इतना कि शायद नारी का विशेषांग उसका शतांश भी अलंकरित /विभूषित नही हुआ है .गालियाँ हमें मूलावस्था में जा पहुंचाती है -जहाँ कोई सोफेस्तिकेशन नहीं ,क्रत्रिमता नहीं ! पर शिष्ट समाज इसे अनुचित मानता है .मैं भी दैनदिन सार्वजनिक जीवन में इनके बेलौस प्रयोग को अनुचित माना है और यह भी पुरूष समानता से तुलना करने का कोई मुद्दा है ?-छि.. छि !Arvind Mishrahttps://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.com