tag:blogger.com,1999:blog-4959245896522980751.post4739153034674141470..comments2023-12-10T22:24:08.053+05:30Comments on सत्यार्थमित्र: हिन्दी के दुश्मन देश के दुश्मन…सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठीhttp://www.blogger.com/profile/04825484506335597800noreply@blogger.comBlogger26125tag:blogger.com,1999:blog-4959245896522980751.post-70537008631499165272010-07-24T10:40:44.558+05:302010-07-24T10:40:44.558+05:30"देश की हिन्दी भाषी जनता से विज्ञापन द्वारा क..."देश की हिन्दी भाषी जनता से विज्ञापन द्वारा करोड़ॊ कमाने वाले ये मीडिया समूह ऐसी दोगली नीति पर काम कर रहे हैं तो मन में रोष पैदा होना स्वाभाविक ही है। क्या हिन्दी के ये दुश्मन देश के दुश्मन नहीं हैं?"<br />बहुत सही कहा आपने. लेकिन हिन्दी को इसका यथोचित सम्मान दिलाने के लिये जो लोग लगे हुए हैं वे ही इसके सबसे बड़े दुश्मन हैं.Harshkant tripathihttps://www.blogger.com/profile/15441547683065761377noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4959245896522980751.post-41229808609857624332010-07-23T07:36:37.774+05:302010-07-23T07:36:37.774+05:30बढिया लेख। सार्थक टिप्पणियां। पता नहीं क्यों जब भी...बढिया लेख। सार्थक टिप्पणियां। पता नहीं क्यों जब भी मैं कहीं हिन्दी अंग्रेजी की बहस के बारे में सुनता हूं मुझे रागदरबारी के मास्टर मोतीराम याद आते हैं जो कहते हैं- <b>साइंस साला बिना अंग्रेजी के आयेगा?</b>अनूप शुक्लhttps://www.blogger.com/profile/07001026538357885879noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4959245896522980751.post-38051954081431867432010-07-22T08:26:07.036+05:302010-07-22T08:26:07.036+05:30सिद्धार्थ जी, एक सार्थक और प्रासंगिक बहस शुरू करने...सिद्धार्थ जी, एक सार्थक और प्रासंगिक बहस शुरू करने के लिये धन्यवाद। इस हिन्दी-अंग्रेजी के बीच मुख्य बहस रोज़गार को लेकर है। उपभोक्तावाद और बाज़ारवाद के चलते हमारा न्यायवाक्य हो गया है जो बिके वही ठीक। इसीलिये बड़ी-बड़ी बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के अंग्रेजीशिक्षित और उसी पर आश्रित अधिकारी जब अपने उत्पाद का विज्ञापन निकालते हैं तब उन्हें हिन्दी ही अच्छी लगती है क्योंकि वह वड़े उपभोक्ता वर्ग तक पहुँचती है। इसी प्रकार रोज़गार के अवसर खोजते समय अंग्रेजी का सहार लेते हैं।<br />इस समस्या पर किसी का ध्यान नहीं है कि पूरे देश की सम्पर्क भाषा क्या हो। संविधान सभा में और उसके पूर्व जिन लोगों ने हिन्दी को राष्ट्रभाषा के रूप में स्वीकार करने की वकालत की थी वो अहिन्दीभाषी क्षेत्रों से थे। लेकिन आज लोग अधिक व्यावहारिक और <b>बुद्धिमान</b> हो गये हैं|<br />गिरिजेश जी ने जिस बात को रेखांकित किया है वह भी विचारणीय और महत्त्वपूर्ण है। शायद इसी को ध्यान में रख कर नवोदय विद्यालयों में मातृभाषा के साथ एक अन्य भारतीय भाषा भी पढ़ाई जाती है। <br />हमें भी प्रयत्न करके बच्चों को एक अन्य भारतीय भाषा पढ़ानी चाहिये।<br />अभिषेक जी से सहमत होने में इसलिये असमर्थ हूँ कि वह मुद्दे को शायद सही परिप्रेक्ष में देखने का यत्न नहीं कर रहे हैं। यहाँ बात अंग्रेजी के विरोध की कदापि नहीं है। अन्तर्राष्ट्रीय भाषा है उसका विस्तृत साहित्य है वहाँ से कुछ लेना या सीखना बुरा नहीं है और यदि जीविका में सहायक है तो भी क्या गलत है लेकिन राष्ट्र की सम्पर्क भाषा क्या हो इस पर नहीं सोचना चाहिये अंग्रेजी जानने और बोलने वाले लोगों को।अमिताभ त्रिपाठी ’ अमित’https://www.blogger.com/profile/12844841063639029117noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4959245896522980751.post-11053175144483418822010-07-21T07:56:52.620+05:302010-07-21T07:56:52.620+05:30boot khoob likha hai.lekin soch ko badalana zaroo...boot khoob likha hai.lekin soch ko badalana zaroori haimadhyamhttps://www.blogger.com/profile/06396180931969147927noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4959245896522980751.post-34101798568050671512010-07-21T06:36:27.519+05:302010-07-21T06:36:27.519+05:30माफ़ कीजियेगा लेकिन मेरा मतलब ये था कि सिर्फ ज्याद...माफ़ कीजियेगा लेकिन मेरा मतलब ये था कि सिर्फ ज्यादा लोग बोलते हैं इसलिए हिंदी किसी पर थोपी नहीं जा सकती. और ये मुद्दा पिछले ५० सालों से चला आ रहा है और कहीं न कहीं कुछ कारण है तभी हिंदी पिछड़ी है. जहाँ तक भाषा के चयन का सवाल है तो हम चयन तो कर लें (और राष्ट्रभाषा का दर्जा भी इसी कारण से मिला हुआ है) लेकिन उसे कोई बोले तब न? <br />तब के हिंदी का झंडा उठाने वाले कितनों ने अपने बेटों को हिंदी में शिक्षा दी? आजादी के बाद जो मंडल बनें होंगे हिंदी के विकास के लिए उसके कितने सदस्यों ने खुद के परिवार में हिंदी को बढ़ावा दिया होगा? घर पर कुछ विदेशी लेखकों की इतिहास की पुस्तकें पड़ी हैं जिनका अनुवाद किया गया था ताकि स्नातकोत्तर स्तर पर हिंदी में पढाई हो सके. मैं सोचता हूँ कि अनुवादक ने अनुवाद के पैसे से क्या अपने बेटे-बेटियों को बाहर और अंग्रेजी में पढने के लिए नहीं भेजा होगा? <br />हिंदी के बड़े साहित्यकारों के उदहारण आपको पता होंगे जिनके बेटों ने आजीवन अंग्रेजी में पढाई की. <br />और यकीन मानिए यहाँ भी बड़ी-बड़ी बातें हम कर रहे हैं और हमारे घर के बच्चे भी अंग्रेजी माध्यम में पढ़ रहे हैं और वो भी हिंदी बस इसीलिए पढ़ रहे हैं क्योंकि उन्हें दसवी तक पढना पड़ रहा है ठीक उसी दक्षिण भारतीय लड़की की तरह. हम भले मान लें की नहीं हम तो अपने लडको को हिंदी में ही पढ़ाते हैं या पढ़ाते क्या होता कि अगर हम दक्षिण भारतीय होते. लेकिन आराम से सोच कर देखित्ये वास्तविकता ये नहीं है ! <br />हिंदी ही नहीं किसी भाषा को दुत्कारना गलत है. और मैं पूरी तरह से सहमत हूँ इस बात से. लेकिन मेरी बात में कुछ गलत हो तो बताइए ?Abhishek Ojhahttps://www.blogger.com/profile/12513762898738044716noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4959245896522980751.post-51697156257377602182010-07-20T18:39:15.780+05:302010-07-20T18:39:15.780+05:30राष्ट्रीय शर्म का दिन था वह ।राष्ट्रीय शर्म का दिन था वह ।कृष्ण मोहन मिश्रhttps://www.blogger.com/profile/14783932323882463991noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4959245896522980751.post-46628980304170261502010-07-20T16:11:55.482+05:302010-07-20T16:11:55.482+05:30संसार पर उन्हीं देशों ने राज़ किया है जिन्होंने अप...संसार पर उन्हीं देशों ने राज़ किया है जिन्होंने अपनी भाषा को प्यार किया है उनमें जर्मन और फ़्रांस का नाम सर्वोपरि है...आज भी फ़्रांस में फ़्रांसिसी को अंग्रेजी में बात करने में शर्म महसूस होती है...हमें क्यूँ नहीं होती...??? क्यूँ के हम गुलाम हैं...और गुलाम हमेशा अपने आका की भाषा बोलते हैं अपनी नहीं...शर्म की बात है...बहुत शर्म की...<br />नीरजनीरज गोस्वामीhttps://www.blogger.com/profile/07783169049273015154noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4959245896522980751.post-14012934240525042992010-07-20T12:27:35.585+05:302010-07-20T12:27:35.585+05:30बढ़िया पोस्ट है. रिजर्वेशन अपने-अपने.
मुझे यह जानक...बढ़िया पोस्ट है. रिजर्वेशन अपने-अपने.<br />मुझे यह जानकार खुशी हुई कि हमारीवाणी.कॉम का घूँघट उठ 'चूका' है. <br />अब हिंदी को बढ़ने से कौन रोक सकता है? बरखा दत्त की क्या औकात?Shivhttps://www.blogger.com/profile/05417015864879214280noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4959245896522980751.post-75295794260778965582010-07-20T10:25:39.086+05:302010-07-20T10:25:39.086+05:30@अभिषेक ओझा
मुद्दा पसन्द-नापसन्द का नहीं हैं। यहा...@अभिषेक ओझा<br /><br />मुद्दा पसन्द-नापसन्द का नहीं हैं। यहाँ बात इसपर केन्द्रित है कि बहु भाषाभाषी इस देश में जब एक कोने का व्यक्ति दूसरे कोने में जाय तो वह आपस में किस भाषा में बात करे। जब एक कन्नड़भाषी व्यक्ति तेलुगू क्षेत्र में जाय तो क्या बोले? मलयालम वाला तमिलनाडु में जाकर अपनी बात कैसे समझाए? हमें पूरे भारत के लिए एक ऐसी भाषा तो स्थापित करनी पड़ेगी जो सभी लोगों में उचित संवाद कायम कर सके। विचारों का आदान प्रदान करा सके। तो मुद्दा यह है कि इस सम्पर्क भाषा के रूप में हिंदी का प्रयोग उचित है कि अंग्रेजी का? <br /><br />आप गणित के जानकार हैं। अनुमान लगाकर बताइए कि सौ करोड़ भारतीयों को यदि किसी एक समान भाषा (common language) की जानकारी कराना हो तो इसके लिए किस भाषा का चयन करना उचित होगा? जाहिर है कि जिस भाषा को पहले से ही जानने वालों की संख्या सबसे अधिक हो उसका चयन करने पर हमारा टारगेट छोटा हो जाएगा। क्योंकि हमें कम नये लोगों को वह भाषा पढ़ानी पड़ेगी। <br /><br />दूसरा पैमाना यह हो सकता है कि भारत की जनता को कौन सी भाषा सिखाना आसान होगा।? हम जानते हैं कि अधिकांश भारतीय भाषाएं संस्कृत की कोंख से जन्मी हैं जिनमें हिन्दी बोलने और समझने वालों की संख्या सर्वाधिक है। तो फिर भारत के लोगों को एकता के सूत्र में पिरोने वाली भाषा के रूप में हिंदी के अतिरिक्त कौन सी दूसरी भाषा हो सकती है?<br /><br />गिरिजेश जी की बात सोलह आने सही है कि यह आदान-प्रदान एक तरफा नहीं होना चाहिए। हिन्दी भाषिओं को भी कम से कम एक अन्य भारतीय भाषा सीखने का संकल्प लेना चाहिए। इस प्रकार न केवल हम एक दूसरे की भाषा का आदर करना सीखेंगे बल्कि एक दूसरे की संस्कृति से भी परिचित होंगे। यह सब भारतवर्ष की मजबूती के लिए बहुत कारगर हो सकता है।<br /><br />मुझे जो बात खराब लगी वह थी बरखा दत्त के नेतृत्व में अंग्रेजी की वकालत और यह धारणा कि अंग्रेजी के बिना भारतवंशियों का उद्धार नहीं हो सकता। राष्ट्रीय स्तर पर अपने देश को ठीक से पहचानने से पहले ही अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर सफलता की कामना से मात्र अंग्रेजी की पूजा कहाँ तक उचित है? उच्चस्तर पर जो लोग अन्तरराष्ट्रीय सफलता की कामना करते हैं उन्हें अंग्रेजी से किसने रोका है, लेकिन इनके द्वारा हिन्दी को दुत्कारने की कोशिश मुझे देशद्रोह ही लगती है।सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठीhttps://www.blogger.com/profile/04825484506335597800noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4959245896522980751.post-14474095921555067512010-07-20T07:47:35.120+05:302010-07-20T07:47:35.120+05:30भाषा के दुश्मन तो मैं नहीं जानता लेकिन जैसे 'प...भाषा के दुश्मन तो मैं नहीं जानता लेकिन जैसे 'परिवेश' हो गए हैं उसमें अगर किसी की पसंद ना हो तो उसमें कोई गलती नहीं दिखाती मुझे. अगर मुझे तमिल पढना पड़ता तो शायद मैं भी यही कहता... और मैं नहीं मानता हिंदी को तमिल से श्रेष्ठ भाषा या ऐसा कुछ. हम जिसे जानते हैं उससे स्वाभाविक प्रेम होता है... हिंदी हमारी अपनी है... पर अगर किसी को तमिल और अंग्रेजी के साथ हिंदी पढाई जा रही है और उसे बोझ लग रहा है तो इसमें मुझे गलती नहीं दिखाई देती. कुछ भी किसी की सोच पर थोपना एक स्वतंत्र समाज में मुझे सही नहीं लगता. हाँ ऐसे परिवेश हुए क्यों ये अलग बात है. पर मेरे हिसाब से किसी एक भाषा को अनिवार्य रूप से थोपने का मैं समर्थन नहीं कर सकता. और अगर हिंदी के प्रचार से कोई जुड़ा है तो उसे अंग्रेजी के प्रचार से डरने की क्या जरुरत ? अपनी और से प्रचार करना है... ये तो अपने-अपने पसंद की बात है और सर्वाइवल ऑफ़ फिटेस्ट होगा.Abhishek Ojhahttps://www.blogger.com/profile/12513762898738044716noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4959245896522980751.post-78693754333313929232010-07-20T03:04:14.451+05:302010-07-20T03:04:14.451+05:30अफसोसजनक स्थितियाँ है. आपने बहुत सार्थक आलेख के मा...अफसोसजनक स्थितियाँ है. आपने बहुत सार्थक आलेख के माध्यम से यह मुद्दा उठाया है.Udan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4959245896522980751.post-86232738476279980642010-07-20T02:43:55.943+05:302010-07-20T02:43:55.943+05:30b.a. kar penshan le mar jane ke bavjud bhee aapke ...b.a. kar penshan le mar jane ke bavjud bhee aapke kairiyar ki rakh se ek din angaare udenge...himmat mat hariyega...Prabodh Kumar Govilhttps://www.blogger.com/profile/12839366183996594801noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4959245896522980751.post-52722788152795582342010-07-20T01:44:07.835+05:302010-07-20T01:44:07.835+05:30सब से पहले तो इन सब पर लानत जो अपनी मां का सम्म्मन...सब से पहले तो इन सब पर लानत जो अपनी मां का सम्म्मन नही कर सकते, यह लोग अन्तरराष्ट्रीय स्तर की बात तो कर रहे है, लेकिन पहले यह तो देखे इन की ऒकात कया है इस अंतरराष्ट्रिया स्तर पर इन्हे किस रुप मै बाहर वाले पहचानते है सिर्फ़ भारत के नाम से सिर्फ़ हिन्दी के नाम से, जो इन सब की भी मां है ओर जब से अपनी मां की इज्जत ही नही कर सकते तो इन की इज्जत कोन करेगा??? सब इन्हे सिर्फ़ ओर सिर्फ़ गुलाम कहेगे चाहे वो इग्लेंड के गोरे भी क्यो ना हो... बात करते है अन्तरराष्ट्रीय स्तर की जब की इन का स्तर गुलामो से भी गया गुजरा है गुलाम तो मजबुरी मै अपने मालिक की भाषा सीखता है ओर यह... राष्ट्रीय जो इन की पहचान है उस से आंखे चुराते है उसे घटिया बताते है यानि यह घटिया ही है, मै शान ओर मान से कहता हुं मै हिन्दी हुं ओर अपने देश मै अपने लोगो से हिन्दी मै बात करता हुं.... अग्रेजी बोलने मै मेरी आत्मा मुझे धिधकारती है जब हिन्दी को नीचे धकेल कर अपनो से अग्रेजी मै बात करुंतो...मुझे अग्रेजी से बहुत ज्यादा हिन्दी मै प्यार ओर इज्जत मिलती है क्योकि यह मेरी है मेरी पहचान है, मेरी मां है,<br />आप का लेख पढ कर मुझे ऎसे लोगो पर तरस आया जिन्हे पता ही नही कि आजादी क्या है यह ही तो जयं चंद जेसो की ऒलाद है, जो खाते भारत का है ओर उसी पर भॊंकते भी है. आप का धन्यवादराज भाटिय़ाhttps://www.blogger.com/profile/10550068457332160511noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4959245896522980751.post-33328039023312724462010-07-19T23:59:41.250+05:302010-07-19T23:59:41.250+05:30मातृभाषा और मातृभूमि का महत्व सगी मां से कम नहीं ...मातृभाषा और मातृभूमि का महत्व सगी मां से कम नहीं .. जाने कब लोग इसके महत्व को समझेंगे ??संगीता पुरी https://www.blogger.com/profile/04508740964075984362noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4959245896522980751.post-33050590842280099542010-07-19T23:34:17.776+05:302010-07-19T23:34:17.776+05:30Media wale to humesha se hee enki wakalat karte aa...Media wale to humesha se hee enki wakalat karte aaye hain, ab kya kaha jaye enheMithilesh dubeyhttps://www.blogger.com/profile/14946039933092627903noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4959245896522980751.post-59262355009822113592010-07-19T22:29:14.284+05:302010-07-19T22:29:14.284+05:30आपसे सहमत।
गिरिजेश जी से भी।
मैं तेलुगू लिख पढ और ...आपसे सहमत।<br />गिरिजेश जी से भी।<br />मैं तेलुगू लिख पढ और बोल लेता हूं।<br />अपने तेलुगू भाषी मित्रों से तेलुगू में आज भी बातें करता हूं, हालाकि आंध्र प्रदेश छोड़े दस वर्ष होने को आए।<br /><br />बंगाल में बागला, और जब पंजाब में था पंजाबी हमारे दिन भर के काम-काज में प्रयुक्त किए जाने वाली भाषा रही है।<br />हमने आंध्र में राजभाषा हिन्दी को अपने कार्यालय में सफलता पूर्वक क्रियान्वयन करवाया। इसमें हमारा तेलुगू में संवाद करना काफ़ी काम आया।मनोज कुमारhttps://www.blogger.com/profile/08566976083330111264noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4959245896522980751.post-75315565511783205672010-07-19T21:21:45.505+05:302010-07-19T21:21:45.505+05:30बढि़या कमेंट...
आज आपके ब्लॉग के माध्यम से वर्ध...बढि़या कमेंट...<br /><br />आज आपके ब्लॉग के माध्यम से वर्धा विश्वविद्यालय की साइट तक पहुंचा...पत्रकारिता और जनसंचार में डिप्लोमा पाठ्यक्रम के बारे में जानना चाहता हूं...क्या प्रवेश प्रक्रिया है और परीक्षा कहां होती है एवं पूरी तरह से दूरस्थ शिक्षा पाठ्यक्रम है या कक्षाओं में उपस्थिति आवश्यक है...आपका मेल आईडी नहीं मिला इसलिए यहां आकर पूछना पड़ा...<br /><br />अक्सर आपका ब्लॉग पढ़ता हूं पर कमेंट नहीं करता...कुछ दीगर कारणों से ब्लॉगिंग से दूर हूं.<br /><br /><br />धन्यवाद<br /><br />-भुवनेश शर्माbhuvnesh sharmahttps://www.blogger.com/profile/01870958874140680020noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4959245896522980751.post-20864382735924333712010-07-19T17:46:25.964+05:302010-07-19T17:46:25.964+05:30हिंदी ब्लॉग लेखकों के लिए खुशखबरी -
"हमारी...<b><a href="http://hamarivani.blogspot.com/2010/07/blog-post.html" rel="nofollow">हिंदी ब्लॉग लेखकों के लिए खुशखबरी -</a></b> <br /><br /><br /><a href="http://hamarivani.com" rel="nofollow">"हमारीवाणी.कॉम"</a> का घूँघट उठ चूका है और इसके साथ ही अस्थाई feed cluster संकलक को बंद कर दिया गया है. <a href="http://hamarivani.com" rel="nofollow">हमारीवाणी.कॉम</a> पर कुछ तकनीकी कार्य अभी भी चल रहे हैं, इसलिए अभी इसके पूरे फीचर्स उपलब्ध नहीं है, आशा है यह भी जल्द पूरे कर लिए जाएँगे.<br /><br />पिछले 10-12 दिनों से जिन लोगो की ID बनाई गई थी वह अपनी प्रोफाइल में लोगिन कर के संशोधन कर सकते हैं. कुछ प्रोफाइल के फोटो हमारीवाणी टीम ने अपलोड.......<br /><br /><b><a href="http://hamarivani.blogspot.com/2010/07/blog-post.html" rel="nofollow">अधिक पढने के लिए चटका (click) लगाएं</a></b><br /><br /><br /><br /><br /><b><a href="http://hamarivani.com" rel="nofollow">हमारीवाणी.कॉम</a></b>हमारीवाणीhttps://www.blogger.com/profile/02677178735599301399noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4959245896522980751.post-11644086806703848732010-07-19T16:48:05.267+05:302010-07-19T16:48:05.267+05:30hm bul bule ike yeh gulistaan hmaaraa , hindi hen ...hm bul bule ike yeh gulistaan hmaaraa , hindi hen hm hindustaan hmaaraa jnaab schchaayi to yhi he lekin hari raajniti aazaadi ke 55 saalon men bhi hindi ko desh ki sbse bdi bhaahaa bnaane men naakaamyaab rhi he or isiliyen aaj hindi desh ki dusre tisre nmbr ki bhaahaa bni he lekin hm or aap snghrsh krte rho inshaa allah aek din hindi desh ki sbse bdhi bhaashaa bn kr rhegi. akhtar khan akela kota rajsthanआपका अख्तर खान अकेलाhttps://www.blogger.com/profile/13961090452499115999noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4959245896522980751.post-53621051395866996152010-07-19T16:29:11.001+05:302010-07-19T16:29:11.001+05:30दरअसल हिंदी इमानदार व छल कपट नहीं रखने वालों की भा...दरअसल हिंदी इमानदार व छल कपट नहीं रखने वालों की भाषा है | बरखा दत्त क्या जाने हिंदी की कीमत | हमारे देश में जब पैसा ही सबकुछ है तो पैसे के लिए भ्रष्टाचार और बईमानी जरूरी है और इन दोनों को सिर्फ और सिर्फ अंग्रेजी से ही पोषण मिलता है | आज इस देश के अदालतों में हिंदी और क्षेत्रीय भाषा में काम करना अनिवार्य कर दिया जाय तो कल से ही अंग्रेजी का पतन शुरू हो जायेगा लेकिन ऐसा तबतक नहीं होगा जबतक इस देश से नेहरु गाँधी परिवार का सफाया नहीं होगा |honesty project democracyhttps://www.blogger.com/profile/02935419766380607042noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4959245896522980751.post-33649024768691776722010-07-19T14:20:42.957+05:302010-07-19T14:20:42.957+05:30दुर्भाग्यपूर्ण है।दुर्भाग्यपूर्ण है।प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4959245896522980751.post-24364875077232319502010-07-19T10:22:35.589+05:302010-07-19T10:22:35.589+05:30साथ ही गिरिजेश जी के विचार आज के परिपेक्ष्य में वि...साथ ही गिरिजेश जी के विचार आज के परिपेक्ष्य में विचारणीय हैं ...समयचक्रhttps://www.blogger.com/profile/05186719974225650425noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4959245896522980751.post-53615083131986353372010-07-19T10:20:14.834+05:302010-07-19T10:20:14.834+05:30मै शतप्रतिशत आपके आपके विचारों से सहमत हूँ .... आभ...मै शतप्रतिशत आपके आपके विचारों से सहमत हूँ .... आभारसमयचक्रhttps://www.blogger.com/profile/05186719974225650425noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4959245896522980751.post-54005037382414508412010-07-19T08:25:25.950+05:302010-07-19T08:25:25.950+05:30कश्मीर समस्या सहित जो चन्द नासूर नेहरू हमें दे गए,...कश्मीर समस्या सहित जो चन्द नासूर नेहरू हमें दे गए, उनमें भाषायी समस्या प्रमुख है। सत्ता की पूरी बागडोर काले अंग्रेजों के हाथ में है। वे उस गोरे अंग्रेज से भी गए बीते हैं जिसका जिक्र आप ने किया है। मार्क टुली को मैंने हिन्दी बोलते सुना है और विश्वास मानिए बहुत से कालों की तुलना में अच्छी बोलते पाया है। वह एक उदाहरण हैं।<br />तमिल भाषियों में हिन्दी के प्रति भाषायी द्वेष है, जिसके कई कारण है। उस लड़की ने जो कहा, सच है। एक प्रश्न उठा रहा हूँ - हिन्दी पट्टी के किसी तमिल, तेलुगू, कन्नड़ विद्वान का नाम बताइए? <br />चलिए छोड़िए हिन्दी पट्टी के किसी ब्लॉगर का ही नाम बताइए जो इन भाषाओं में लिखता हो। न लिखता हो उद्धरण देने लायक जानकारी रखता हो और देता भी हो? <br />इसके विपरीत हिन्दी ब्लॉगरों में बालसुब्रमण्यम जी (http://jaihindi.blogspot.com/) दक्षिण भारतीय हैं। चाहे जो कारण हों, हिन्दी को उनका योगदान हममें से कई पर भारी है। <br />मल्हार (http://mallar.wordpress.com)वाले पा.ना. सुब्रमणियन एक दूसरी हस्ती हैं। <br /> कटु हो रहा हूँ लेकिन यह सच है कि हिन्दी की दुर्दशा में हिन्दी वालों का ही योगदान अधिक है। आपसी टाँग खिंचाई, अपनी भाषिक परम्परा को लेकर घोर अज्ञान, उपेक्षा और पाखंड आदि महती कारण हैं।<br />हिन्दी ब्लॉग जगत की गुटबाजी से ही दु:खी होकर बालसुब्रमण्यम जी ने हिन्दी ब्लॉगरी बन्द कर दी, अब चाहे जो कारण बताएँ। आवश्यकता अपने गिरेबान में झाँकने की है। हिन्दी के लिए शब्दकोष पलटने वाले कितने हैं? वही लोग अंग्रेजी के मामले में तनिक भी शंका होने पर थिसारस पलटने लगते हैं। उन लोगों के अंग्रेजी लेखन में जरा वर्तनी दोष निकाल कर दिखाइए! <br />मुद्दा उठाने के लिए धन्यवाद। बहस अच्छी होगी।गिरिजेश राव, Girijesh Raohttps://www.blogger.com/profile/16654262548719423445noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4959245896522980751.post-26150932698799024982010-07-19T08:13:27.082+05:302010-07-19T08:13:27.082+05:30ये दोगलापन सिर्फ मीडिया का नहीं है ...मीडिया में आ...ये दोगलापन सिर्फ मीडिया का नहीं है ...मीडिया में आकर्षण का केंद्र बने हर प्रतिष्ठित व्यक्ति का है ..वाणी गीतhttps://www.blogger.com/profile/01846470925557893834noreply@blogger.com