tag:blogger.com,1999:blog-4959245896522980751.post2745021508872616982..comments2023-12-10T22:24:08.053+05:30Comments on सत्यार्थमित्र: सेकुलरिज्म का श्रेय हिंदुओं को: विभूति नारायण रायसिद्धार्थ शंकर त्रिपाठीhttp://www.blogger.com/profile/04825484506335597800noreply@blogger.comBlogger31125tag:blogger.com,1999:blog-4959245896522980751.post-76599316619316732922013-10-13T11:21:28.921+05:302013-10-13T11:21:28.921+05:30मैं भी मानता हूँ कि हिंदुस्तान में धर्मनिरपेक्षता ...मैं भी मानता हूँ कि हिंदुस्तान में धर्मनिरपेक्षता कायम है तो हिंदुओं में उन बहुसंख्यकों के कारण जो कट्टरता स्वीकार नहीं करते. ऐसी राजनीति करने वाले दलों की सीमित सफलता इसी वजह से है. मगर परिस्थितिवश कोई शक नहीं कि अब सेक्युलरिज्म की धारणा को कमजोर करना ज्यादा मुश्किल नहीं हो रहा. इसके कारणों पर भी सभी पक्षों को ईमानदारी से विचार करना चाहिए. इसमें कोई शक नहीं कि स्पेस की समस्या दोनों ही प्रमुख समुदायों के उदारवादी लोगों के लिए समान है. फिर भी एक समुदाय में अपनी असहमति की आवाज ज्यादा मुखर है सांप्रदायिकता के खिलाफ...अभिषेक मिश्रhttps://www.blogger.com/profile/07811268886544203698noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4959245896522980751.post-10283164909398975592013-10-13T11:01:40.290+05:302013-10-13T11:01:40.290+05:30दंगे के वक्त यदि एक धर्म का इंसान दूसरे धर्म के इं...दंगे के वक्त यदि एक धर्म का इंसान दूसरे धर्म के इंसान की रक्षा करता है तो जो रक्षक है वह यदि यह कहे कि तेरी रक्षा इसलिए हुई कि तू मेरे धर्म वाले घर में आने के कारण बच सका। तेरे धर्म वाले घर में गया होता तो काट दिया जाता। तो बचने वाला व्यक्ति उसको मुख से भले धन्यवाद दे, मन से यही कहेगा कि यह भी सामान्य धार्मिक व्यक्ति निकला। मैं तो इसे खालिस इंसान क्या, भगवान समझ बैठा था! <br /><br />जब धर्मनिरपेक्षता के लिए कोई मुल्क अपने बहुसंख्यक धर्म को श्रेष्ठ कहेगा तो उस मुल्क में रहने वाले दूसरे धर्म के लोगों का मन खट्टा हो जायेगा। धर्मनिरपेक्षता की मूल भावना पर कहीं न कहीं आघात पहुँचेगा। भले ही वह सत्य ही क्यों न कह रहा हो। देवेन्द्र पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/07466843806711544757noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4959245896522980751.post-42478277110955679602013-10-13T10:09:05.295+05:302013-10-13T10:09:05.295+05:30संतोष जी , आपकी पहल का स्वागत है !संतोष जी , आपकी पहल का स्वागत है !उम्मतेंhttps://www.blogger.com/profile/11664798385096309812noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4959245896522980751.post-41587928511454496332013-10-13T10:07:38.484+05:302013-10-13T10:07:38.484+05:30अरविन्द जी , अब इतने मासूम भी मत बनिये :) चेले का...अरविन्द जी , अब इतने मासूम भी मत बनिये :) चेले का सहयोग भी मुझसे पूछ के लीजियेगा ? उम्मतेंhttps://www.blogger.com/profile/11664798385096309812noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4959245896522980751.post-39231134515205943472013-10-13T10:03:41.976+05:302013-10-13T10:03:41.976+05:30जल्द ही अपनी स्वल्प-बुद्धि के अनुसार भाषित करूँगा ...जल्द ही अपनी स्वल्प-बुद्धि के अनुसार भाषित करूँगा !संतोष त्रिवेदीhttps://www.blogger.com/profile/00663828204965018683noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4959245896522980751.post-63428127706849563162013-10-13T08:17:40.186+05:302013-10-13T08:17:40.186+05:30 न जाने क्यों ज्यादा अकादमीय बातें अब मेरे पल्ले... न जाने क्यों ज्यादा अकादमीय बातें अब मेरे पल्ले नहीं पड़ती .... :-) <br />दुनियां की बड़ी से बड़ी बातें और सिद्धांत सहज ही बुद्धि गम्य होने चाहिए . :-) <br />मैं स्वीकारता हूँ कि आपके विमर्श को मैं समझ नहीं पाया हूँ -कोई भाष्यकार है ? <br />चेले की मदद ली जाय क्या ? Arvind Mishrahttps://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4959245896522980751.post-5101424804427209492013-10-13T07:45:14.110+05:302013-10-13T07:45:14.110+05:30अरविन्द जी ,
आप मेरे तर्क को अब भी नहीं समझे ! शा...अरविन्द जी , <br />आप मेरे तर्क को अब भी नहीं समझे ! शायद आपने मेरी टिप्पणियां गौर से नहीं पढीं ! मैंने जिस संकट की बात कही है उसे संक्षेप में कहना चाहूँ तो ..इसे हिंदू राष्ट्रवाद / मुस्लिम राष्ट्रवाद / ईसाई राष्ट्रवाद के कथन से तुलना करके देखिये हिंदू धर्मनिरपेक्षता / मुस्लिम धर्मनिरपेक्षता / ईसाई धर्मनिरपेक्षता ! भला क्या अंतर है इन दोनों कथनों की प्रवृत्ति में , यहाँ राष्ट्रवाद और धर्मनिरपेक्षता दोनों के दोनों धर्म के पिछलग्गू बन के रह गये हैं :) है कि नहीं ?<br /><br />आपकी इस बात से सहमति कि बहमत / बहुसंख्या महत्वपूर्ण है सो अगर देश धर्मनिरपेक्ष है तो उन धर्मनिरपेक्ष स्वभाव के लोगों के कारण जो उस वक़्त बहुमत में थे ! निश्चित ही ये सभी बंदे किसी ना किसी धर्म को मानने वाले हैं ! कोई असहमति नहीं ! अगर उस दिन के आयोजन की सदारत मैंने की होती तो यकीनन कुलपति जी से भी बड़ी फटकार लगाता उन मुस्लिम धार्मिक लोगों को ! लेकिन धार्मिकता की प्रतिक्रिया धार्मिकता से नहीं देता :) उम्मतेंhttps://www.blogger.com/profile/11664798385096309812noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4959245896522980751.post-13537029931547998072013-10-13T04:24:24.051+05:302013-10-13T04:24:24.051+05:30गुरूवर, अभी बात में लोचा है। इस पर अलग से चर्चा जर...गुरूवर, अभी बात में लोचा है। इस पर अलग से चर्चा जरूरी है।संतोष त्रिवेदीhttps://www.blogger.com/profile/00663828204965018683noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4959245896522980751.post-40133724996072004342013-10-12T23:17:00.774+05:302013-10-12T23:17:00.774+05:30 अली भाई,
मेरी अल्प बुद्धि यही कहती है कि चाहे ... अली भाई, <br />मेरी अल्प बुद्धि यही कहती है कि चाहे जो भी देश काल हो सर्वधर्म समभाव अगर बरकरार है तो इसका श्रेय वहां के बहुसंख्यक धर्मावलम्बियों को दिया जाना चाहिए , मैंने राय साहब का वक्तव्य इसी अर्थ में ग्रहण किया था . अब इसे कौन अस्वीकार करेगा कि भारत के मामले में हिन्दू ही इसका श्रेय पायेगें वह चाहे अपनी अनाक्रमकता या फिर भीरुता के कारण -<br />हिन्दू धर्म (?) का लचीलापन उसे सब सह लेने का संस्कार देता है . अब इस चर्चा को आगे बढ़ाने पर वही तमाम बातें सामने आयेगीं जो पहले भी अन्यत्र कही जा चुकी हैं . भारत भूमि के हिन्दू भी अगर धर्म कट्टर होते तो यह देश ही धर्म निरपेक्षता का छद्मावरण न ओढ़ता -संविधान कुछ और सा बनता . <br /> हाँ निष्पत्ति यह लिख दूं कि यह देश धर्म निरपेक्षता के बजाय एक दूसरे के प्रति धार्मिक सहिष्णुता से ही चलेगा . हिन्दू तो जन्म और संस्कार से सहज ही सहिष्णु है बिना इसके अवेयर हुए भी मगर क्या मुसलमान भाई भी इतने सहिष्णु हैं ? हमारी और अपनी बात छोड़ दीजिये हम अपवाद हैं ! Arvind Mishrahttps://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4959245896522980751.post-82987248319874173552013-10-12T22:46:19.585+05:302013-10-12T22:46:19.585+05:30सांप्रदायिकता और कट्टरपन चाहे बहुसंख्यकों में हो अ...सांप्रदायिकता और कट्टरपन चाहे बहुसंख्यकों में हो अल्पसंख्यकों में, हर सूरत में खतरनाक होती है। हिन्दू धर्म में भी कट्टरपन अवश्य है मगर उसमें धर्मनिरपेक्ष विचारधारा रखने वालों की संख्या भी अच्छी ख़ासी है। मगर मुस्लिम समाज में कट्टरपन आम है और सेकुलर नजरिए को मानने वाले आते में नमक के बराबर हैं।<br /><br />---- साजिद रसीद, 'वसुधा-89, पृष्ठ 30'।<br />इन्द्र मणि उपाध्यायhttps://www.blogger.com/profile/07855223017082842914noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4959245896522980751.post-67691178446523260342013-10-12T19:13:10.935+05:302013-10-12T19:13:10.935+05:30विभूति नारायण जी ने उस माहौल में जो सच कहने का साह...विभूति नारायण जी ने उस माहौल में जो सच कहने का साहब किया उसकी जितनी तारीफ की जाय कम है। उस पुस्तक के अंश स्पष्ट करते हैं कि वह किस प्रकार पक्षपाती तरीके से लिखी गयी होगी। वहाँ पर जिस तरह उस पुस्तक के हामी लोगों की बहुसंख्या थी ऐसे में अक्सर कोई भी चुप रह जाता या उनके पक्ष में कहता वहीं विभूति जी ने सच कहने का साहस किया।ePandithttps://www.blogger.com/profile/15264688244278112743noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4959245896522980751.post-87530876680608590702013-10-12T18:07:05.164+05:302013-10-12T18:07:05.164+05:30अली साब की यह बात काबिलेगौर है कि धर्मनिरपेक्षता क...अली साब की यह बात काबिलेगौर है कि धर्मनिरपेक्षता के लिए उनके संकल्प के लिए कोई जगह नहीं दी गई।जिस तरह पाकिस्तान की माँग से सभी मुस्लिम सहमत नहीं थे वैसे ही धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र की अवधारणा पर सारे हिन्दू।<br />यहां तक कि गाँधी की हत्या इसी सोच का नतीजा थी।<br />इसलिए साम्प्रदायिक सौहार्द या धर्मनिरपेक्षता एकल स्तर की चीज नहीं है।इसमें दुतरफा,बहुतरफा भागीदारी है।ऐसा न सोचकर हम धार्मिकता को ही पुष्ट करते हैं।संतोष त्रिवेदीhttps://www.blogger.com/profile/00663828204965018683noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4959245896522980751.post-48007455870488066192013-10-12T08:49:52.951+05:302013-10-12T08:49:52.951+05:30प्रिय सिद्धार्थ जी ,
अब भी आप मेरे मंतव्य को नहीं...प्रिय सिद्धार्थ जी , <br />अब भी आप मेरे मंतव्य को नहीं समझे ! मैं यह नहीं कहा कि जो व्यक्ति धर्मनिरपेक्ष होगा उसे 'धर्महीन' होना चाहिए :) मेरे कहने का आशय यह है कि जो मानवीय गरिमा / सह अस्तित्व / पारस्परिक सम्मान के भाव को प्राथमिकता / वरीयता से साधने वाले बंदे हैं उनके लिये उनका धर्म उनकी निज विशिष्टता है उनकी अपनी पारिवारिक सामुदायिक उपलब्धि ! मेरे लिये धर्म अगर 'अंत:सामुदायिक' उपलब्धि है तो उसके बरक्स धर्मनिरपेक्षता 'अंतर-सामुदायिक' उपलब्धि हुई ! <br /><br />हिसाब ये कि , मित्रों को पहले पहल धर्मनिरपेक्ष मानिये फिर व्यक्तिगत तौर पर धर्म पर आस्था रखने वाले ! अपने इस आशय में , मैं अपने उन सभी मित्रों को , जोकि धर्मनिरपेक्षता के लिये समर्पित हैं , धर्महीन नहीं मानता :) यहां बात केवल प्राथमिकता / प्रधानता की है ! यानि कि आपकी टिप्पणी के दूसरे पैरे से कोई असहमति नहीं !<br /><br />नि:संदेह , देश में धर्मनिरपेक्षता की प्राथमिक अभिरुचि रखने वाले बन्दों में सर्वाधिक संख्या उन मित्रों की है जोकि व्यक्तिगत तौर पर हिंदू धर्म में आस्था रखते हैं ! स्मरण रहे , व्यक्तिगत आस्था पर अपनी कोई असहमति नहीं है ! अपनी शिकायत तनिक स्पष्टता से कहना चाहूंगा , उस आयोजन में कुलपति जी ने मुस्लिम धार्मिकता की काट के तौर पर जो तर्क दिया वो हिंदुत्व की प्राथमिकता / अगुवाई वाला था , तो मसला धार्मिकता बनाम धार्मिकता हो गया ! जबकि धर्म निरपेक्षता को इस तर्क की ना तो ज़रूरत है और ना ही इस संकट को मोल लेना चाहिए ! संकट को मोल लेने से आशय ये है कि कल को तुर्की के बहाने मुस्लिम और अमेरिका के बहाने ईसाई धर्मावलंबी , धर्मनिरपेक्षता को अपने अपने धर्म से प्रेरित / पालित / पोषित बताने लग जायेंगे , ठीक वैसे ही जैसे कि कुलपति जी ने तात्कालिक तौर पर मुस्लिम धार्मिकता की काट बतौर 'कर' दिया :) धर्मनिरपेक्षता अगर धार्मिकताओं के चक्कर में उलझ गई तो फिर यह बहस अंतहीन है / निष्कर्ष हीन है ! धर्मनिरपेक्षता को किसी भी धर्म की चेरी कहलाने की ज़रूरत नहीं है , वह एक व्यापक धारणा है , अतः उसे मानने वाला किसी भी धर्म पर आस्था रखता हो , इससे कोई फर्क नहीं पड़ता !<br /><br />जैसा कि मैंने कहा कि कुलपति जी का तर्क मुस्लिम धार्मिकता की काट बतौर एक नया संकट खडा कर देता है , तो उससे मेरा आशय यह भी है कि ( किसी भी देश में ) धर्मनिरपेक्षता (संवैधानिक प्रस्थिति) को अगर जनसँख्या की बहुलता वाले धर्म से जोड़ा जायेगा या कि किसी धर्म को उसका श्रेय दिया जाएगा तो मौजूदा साम्प्रदायिक वैमनष्य / बेरोजगारी / असंतोष आदि आदि ( असंवैधानिक स्थिति ) के लिये भी यही तर्क मुफीद माना जाएगा ? जबकि वास्तव में ऐसा नहीं है ! सो ऐसे तर्क का क्या फायदा जो अतार्किकताओं का सिलसिला शुरू कर दे !<br /><br />आशा है कि आप , आपकी टिप्पणी के पहले और तीसरे पैरे के बारे में मेरा मंतव्य समझ गये होंगे और धर्मनिरपेक्षता बाबत मेरे नज़रिये को भी कि मैं धर्म में आस्था के विरुद्ध नहीं हूं ! <br /><br />मुझे और मेरे विचारों को सहृदयता से बर्दाश्त करने के लिये आपका आभारी हूं :) सप्रेम !उम्मतेंhttps://www.blogger.com/profile/11664798385096309812noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4959245896522980751.post-72523093644583190822013-10-11T23:06:55.833+05:302013-10-11T23:06:55.833+05:30आदरणीय अली सैयद जी,
मुझे लगता है कि आपको अपने अनुस...आदरणीय अली सैयद जी,<br />मुझे लगता है कि आपको अपने अनुसार धर्मनिरपेक्षता का अर्थ भी स्पष्ट करना चाहिए था। भारत में कोई व्यक्ति उन अर्थों में धर्मनिरपेक्ष शायद नहीं हो सकता जिन अर्थों में पाश्चात्य दर्शन की किताबों में इसे पढ़ा जाता है। यानि जिसका किसी धर्म से कोई संबंध न हो। एक स्टॆट पॉलिसी तो इन अर्थों में धर्मनिरपेक्ष हो सकती है लेकिन एक व्यक्ति कदाचित् नहीं। कम से कम भारतीय समाज में मुझे ऐसे लोग नहीं दिखते। उनकी संख्या निश्चित ही बहुत थॊड़ी होगी जो अपने जीवन-व्यवहार से धर्म को बिल्कुल अलग करके जी रहे होंगे।<br /><br />एक सामान्य नागरिक से तो बस यह उम्मीद करनी है कि वह जिस धर्म से जुड़ा है उससे भिन्न दूसरे धर्मों के प्रति भी उसके मन में उतना ही सम्मान हो जितने सम्मान की अपेक्षा वह उस दूसरे धर्म के व्यक्ति से अपने धर्म के लिए करता है। यह धर्म से विमुख नहीं बल्कि धर्म से जुड़ा रहकर भी दूसरे धर्मों के प्रति समभाव की अपेक्षा करने वाली बात है। <br /><br />आपको जो स्पेस चाहिए वह शायद इस प्रास्थिति से अलग है। आपका ‘धर्म से पोषित’ होने का क्या मतलब है, नहीं समझ सका।<br /><br />मैं दर्शन का विद्यार्थी रहा हूँ। भगवान ने जितनी ‘बुद्धि’ दी है उसी का प्रयोग करता हूँ। दिल को ऐसे कामों के बीच नहीं डालता। आप निश्चिंत रहिए। आपने अपने विचार साझा किये, इसके लिए धन्यवाद।सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठीhttps://www.blogger.com/profile/04825484506335597800noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4959245896522980751.post-57738215844920271292013-10-11T18:27:20.881+05:302013-10-11T18:27:20.881+05:30प्रिय सिद्धार्थ जी ,
मुझे खुशी हुई कि आपने इसे अल्...प्रिय सिद्धार्थ जी ,<br />मुझे खुशी हुई कि आपने इसे अल्प समय के चलते सरलीकृत निष्कर्ष तो कम से कम मान ही लिया ! आप कृपया मेरे कथन को दोबारा पढ़ने की कृपा करेंगे ! मैंने कहा कि दोनों पक्ष अपनी अपनी पर अड़े हुए हैं सो इसमें मेरे लिये स्पेस नहीं है !<br /><br />जब धार्मिक लोगों ने पाकिस्तान माँगा तो उस जगह मेरे लिये स्पेस यूं नहीं था कि मैं उस मांग में शामिल नहीं था और अब , अगर मैं धर्मनिरपेक्षता के लिये अपने जैसे धर्मनिरपेक्ष लोगों का सहगामी / सहयात्री नहीं , बल्कि 'हिंदू' धर्मनिरपेक्ष सहृदयता को स्वीकार करने / श्रेय देने वाला वाला एक व्यक्ति माना जाऊं तो यहां पर भी मेरी स्थिति या तो हाशिये वाली या फिर धार्मिक बहुलता की कृपा पर आश्रितता वाली हुई ना ? सो मैंने कहा , मेरे लिये स्पेस कहाँ है ? <br /><br />मेरा व्यक्तिगत मानना है कि मेरा दावा ना तो केवल धार्मिकता का है और ना ही धर्मनिरपेक्षता के लिये मुस्लिम लेबल वाला ! अतः मैं केवल एक धर्मनिरपेक्ष व्यक्ति हूं जो , धर्म पोषित धर्मनिरपेक्षता के दावे में शामिल नहीं है ! मेरे लिये धार्मिक बहुलता विषयक कुलपति जी का कथन कमोबेश वैसा ही है , जैसे कि तुर्की के लोग वहां की धर्मनिरपेक्षता को मुस्लिम बहुलता के साथ जोड़ कर देखें ! <br /><br />यानि कि धर्मनिरपेक्षता का धर्म आधारित दावा मुझे स्पेस इसलिए नहीं देता क्योंकि उसमें धार्मिक पक्षधरता का तर्क सामने आता है ऐन तुर्की वाले (लचर) तर्क की तरह से ! अब अगर गौर फरमाया जाये तो जनसँख्या में जिस धार्मिक समुदाय की भागीदारी का अनुपात जितना बड़ा होगा उसे सहिष्णुता की उतनी ही बड़ी हैसियत / उतना ही अनुपात दिये जाने का तर्क कम से कम मुझे असामान्य लगता है ! क्योंकि ...<br /><br />मेरा अपना विचार ये है कि मेरा धर्मनिरपेक्ष होना मुस्लिम होने के कारण से नहीं है और ना ही किसी अन्य धर्मनिरपेक्ष बंदे को धार्मिक बहुलतावाद आधारित धर्मनिरपेक्षता वाले तर्क देना आवश्यक है ! धर्मनिरपेक्षता के सन्दर्भ में मेरा मत केवल यह है कि उसे धर्माधारित कव्हर ना दिया जाये तो बेहतर , भले ही मेरे मुल्क में हो याकि तुर्की में या फिर कहीं और ! तुलनात्मक रूप से ये एक अच्छी और स्वस्थ परंपरा नहीं है , खास कर मुझ जैसों के लिये जिनका अपना धार्मिक लेबल , धर्मनिरपेक्षता की प्रवृत्ति से सदैव अलग / पृथक बना रहता हो ! <br /><br />बहरहाल कुलपति जी का अपना तर्क है और उसमें आप और अन्य मित्रों की भी सहमति है ... सो मेरे मंतव्य के मुताबिक इसमें मेरे लिये स्पेस कहां है , यही बात मैंने कही है ?... क्योंकि ना तो मैं किसी धार्मिक पोषण प्राप्त धर्मनिरपेक्षता का पक्षधर हूं और ना ही एक नितांत धार्मिक व्यक्ति ! <br /><br />हां इतना ज़रुर है कि मुझ जैसे लोग पहले ही , धार्मिक लोगों से खुद को खारिज़ कराये बैठे हैं और अब धर्म बहुल सहृदयता आधारित धर्मनिरपेक्षता को स्वीकार करने का दावा फिर से सामने , यानि कि हम , दोनों दुनिया से बाहर हुये , है ना ? बस इतनी सी बात थी अपनी / इतना छोटा सा तर्क , कि हमारे लिये उक्त कथन में स्पेस नहीं है ! बाकी कुलपति जी से जितनी सहमति थी वह तो हमने कह ही दी है ! <br /><br />ज़रा सी असहमति है , आप अपने हैं सो उसे दिल पे मत लीजियेगा ! सप्रेम !उम्मतेंhttps://www.blogger.com/profile/11664798385096309812noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4959245896522980751.post-25452570999694569002013-10-11T08:45:34.165+05:302013-10-11T08:45:34.165+05:30आदरणीय, एक ब्लॉग पोस्ट या दो मिनट के भाषण में सरली...आदरणीय, एक ब्लॉग पोस्ट या दो मिनट के भाषण में सरलीकृत निष्कर्ष ही प्रस्तुत किया जा सकता है। गम्भीर चर्चा के लिए तो किताबें लिखी जाती हैं और लिखी भी गयी हैं। धार्मिक कट्टरता बहुत से हिंदुओं में भी है और मुसलमानों में भी। उदारवादी भी दोनो तरफ़ पर्याप्त संख्या में हैं। राय साहब ने तो इस बात पर आक्षेप किया कि 90 प्रतिशत हिंदुओं को ऐसी श्रेणी में शामिल कर दिया गया था जिन्हें मुस्लिम भाइयों की उपस्थिति स्वीकार नहीं थी। यह बात बेहद अतार्किक और अमान्य है। किसी भी जनसंख्या का नब्बे प्रतिशत जो चाहेगा वह कर लेगा, खासकर जब भीड़तंत्र का बोलबाला हो गया हो और अराजकता की स्थिति उत्पन्न हो गयी हो। फिर भी विभाजन के बाद भारत को धर्मनिरपेक्ष देश बनाये रखा गया तो इसके लिए इसके बहुसंख्यक हिंदुओं को श्रेय देने में क्या कठिनाई है? यदि आपको यह कहने का स्पेस नहीं मिल रहा है तो बड़ी मुश्किल बात है। इस अवधारणा में यह कहीं नहीं कहा गया है कि ‘केवल हिंदू ही’ या ‘सभी हिंदू’ धर्मनिरपेक्ष हैं। यह भी नहीं कहा गया है कि सभी मुसलमान पाकिस्तान के समर्थक थे। जो वहाँ नहीं गये और भारत को अपनी जन्मभूमि और कर्मभूमि के रूप में स्वीकार किया उन्हीं के अधिकारों की रक्षा के लिए धर्मनिरपेक्ष गणराज्य के रूप में हमारा विकास हुआ। तकलीफ़ की बात यह है कि आप जैसे उदारवादी और धर्मनिरपेक्ष बुद्धिजीवी को भी वर्तमान संवैधानिक प्रास्थिति के लिए बहुसंख्यक हिंदू समुदाय को किसी प्रकार का श्रेय देने में ‘स्पेस’ की समस्या बनी हुई है।सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठीhttps://www.blogger.com/profile/04825484506335597800noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4959245896522980751.post-61041515483043457912013-10-10T18:36:22.994+05:302013-10-10T18:36:22.994+05:30अरविन्द जी ,
आलेख कम से कम दो बार पढ़ा ! जिसने जो भ...अरविन्द जी ,<br />आलेख कम से कम दो बार पढ़ा ! जिसने जो भी लिखा उसे पढ़ा और जिसने जो भी कहा उसे भी ! कुलपति जी सहित सभी गण्य मान्य महानुभावों के विचार हालात का सरलीकृत निष्कर्ष मात्र हैं ! "उनमें मुझ जैसों के लिये कोई स्पेस नहीं है" ! मसलन मैं धर्मनिरपेक्ष तो हूं पर हिन्दू नहीं , संभवतः जन्मना मुस्लिम तो हूं पर मेरे पुरखों सहित मैंने पाकिस्तान ना कभी चाहा था और ना ही मांगा ! <br />बहरहाल कुलपति जी की एक बात से सहमति कि पूरी की पूरी दुनिया में धर्मनिरपेक्षता से बेहतर कोई दूसरा विकल्प नहीं है ! पूरे आलेख में शायद एक यही बात मेरे जैसे बंदे के लिये सांस लेने का मौका देती है / स्पेस मानी जा सके ! वर्ना दोनों पक्ष अपनी अपनी ढपली अपना अपना राग बजा रहे हैं !<br />मेरी बात यदि किसी बंधु को बुरी लगे तो अग्रिम खेद प्रकाश ! मैंने जो भी कहा उसमें मेरे निज अनुभव भी शामिल हैं ! शायद आप समझ सकें कि मेरा इशारा क्या है ?उम्मतेंhttps://www.blogger.com/profile/11664798385096309812noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4959245896522980751.post-85696527436367177692013-10-10T18:08:27.868+05:302013-10-10T18:08:27.868+05:30देखा जाये तो एक सच्चा हिन्दु ही सच्चा सेक्युलर होत...देखा जाये तो एक सच्चा हिन्दु ही सच्चा सेक्युलर होता है। <br />जो कुछ राय साहब ने जोर देकर कहा, वो ही सच है। हलचल तो मचनी ही थी।संजय @ मो सम कौन...https://www.blogger.com/profile/14228941174553930859noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4959245896522980751.post-21383548625578044142013-10-10T10:54:19.662+05:302013-10-10T10:54:19.662+05:30हमारी खास पहचान यही है कि हम मानव-धर्म को सर्वोपरि...हमारी खास पहचान यही है कि हम मानव-धर्म को सर्वोपरि मानने वाले राष्ट्र हैं न कि किसी विशेष धर्म के.संतोष त्रिवेदीhttps://www.blogger.com/profile/00663828204965018683noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4959245896522980751.post-38640565913905258732013-10-10T08:06:24.826+05:302013-10-10T08:06:24.826+05:30इतिहास के वे अध्याय उन विस्थापितों के हृदय विदीर्ण...इतिहास के वे अध्याय उन विस्थापितों के हृदय विदीर्ण कर जाते हैं, जिनसे धर्म के नाम पर भेद किया गया।प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4959245896522980751.post-12804494157154379242013-10-09T15:18:49.079+05:302013-10-09T15:18:49.079+05:30बिना लाग-लपेट के सच कहने का यह साहस ही विभूति जी क...बिना लाग-लपेट के सच कहने का यह साहस ही विभूति जी की ख़ासियत है. इष्ट देव सांकृत्यायनhttps://www.blogger.com/profile/06412773574863134437noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4959245896522980751.post-42318905327540162262013-10-09T10:30:33.332+05:302013-10-09T10:30:33.332+05:30जो सच्चे इन्सान होते हैं, वो Spade को Spade ही कह...जो सच्चे इन्सान होते हैं, वो Spade को Spade ही कहते हैं ...मैं बहुत प्रभवित हुई हूँ उनके वक्तव्य से। स्वप्न मञ्जूषा https://www.blogger.com/profile/06279925931800412557noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4959245896522980751.post-4997262182264473952013-10-09T10:29:04.058+05:302013-10-09T10:29:04.058+05:30पूरी तरह सहमत ...... पूरी तरह सहमत ...... डॉ. मोनिका शर्मा https://www.blogger.com/profile/02358462052477907071noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4959245896522980751.post-46850821651136412592013-10-09T08:14:33.686+05:302013-10-09T08:14:33.686+05:30मैं भी कुलपति श्री विभूति जी के वक्तव्य से सहमत हू...मैं भी कुलपति श्री विभूति जी के वक्तव्य से सहमत हूँ कि हिन्दू उदार-वादी होते हैं क्योंकि " वसुधैव कुटुम्बकम् " एवम् "सर्वे भवन्तु सुखिनः " उनका आदर्श है ।शकुन्तला शर्माhttps://www.blogger.com/profile/01128062702242430809noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4959245896522980751.post-77207081756107929982013-10-09T08:07:50.931+05:302013-10-09T08:07:50.931+05:30एकदम सहमत !एकदम सहमत !वाणी गीतhttps://www.blogger.com/profile/01846470925557893834noreply@blogger.com