tag:blogger.com,1999:blog-4959245896522980751.post1592561805303337492..comments2023-12-10T22:24:08.053+05:30Comments on सत्यार्थमित्र: प्रकृति ने औरतों के साथ क्या कम हिंसा की है...?सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठीhttp://www.blogger.com/profile/04825484506335597800noreply@blogger.comBlogger18125tag:blogger.com,1999:blog-4959245896522980751.post-69304309083595687332009-11-01T15:23:19.080+05:302009-11-01T15:23:19.080+05:30आपकी टिप्पणी से वही खुशी मिलतीआपकी टिप्पणी से वही खुशी मिलतीAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4959245896522980751.post-78896342170240666092009-11-01T15:23:17.787+05:302009-11-01T15:23:17.787+05:30आपकी टिप्पणी से वही खुशी मिलतीआपकी टिप्पणी से वही खुशी मिलतीAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4959245896522980751.post-23469940128831403992009-11-01T15:22:29.027+05:302009-11-01T15:22:29.027+05:30ram ek achcha ladka hairam ek achcha ladka haiAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4959245896522980751.post-5349680544319065772009-03-29T03:22:00.000+05:302009-03-29T03:22:00.000+05:30yah post aur us par charcha dono hee bahut vicharo...yah post aur us par charcha dono hee bahut vicharottejak lage .khas kar Dr. ajit gupta aur kavita jee ke bayan.<BR/><BR/>rachna jee ne bhee ek drishtikon rakha hai. sahee hai ki adhikansh purush samaj abhee bhee usee mansikta ko jee raha hai to yah bhee jimmedaree sabhee purushon kee hee bantee hai ki apne adhikans ka 'jimmedar' ke roop me khud ko dekhen, bhale hee ve naree vimarsh me nyaypoorn bhumika ka nirvah hee kar rahe hon.<BR/><BR/>aur 'satyarth mitra' ka to udghosh hee hai 'sajha satya kee mitravat abhivyakti'.<BR/><BR/>to anavashyak dwand se bach kar is sajhee jimmedaree me sabhee sahbhagee hon.<BR/><BR/>sirf ek nivedan hai ki uddeshya sabhee ka ek hee hai.vimarsh alag sa thoda dikh raha hai.<BR/><BR/>siddarth jee meree post 'satya !' par jo tippanee aapne dee hai, vah vichr ko gahrayee detee hai aur satya ki vivechna ko vistar detee huyee hai . dhanyavad !RAJ SINHhttps://www.blogger.com/profile/01159692936125427653noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4959245896522980751.post-22583099622055456962009-03-17T23:07:00.000+05:302009-03-17T23:07:00.000+05:30इसके विपरीत यदि हम किसी औरत की कमजोरी का लाभ उठाते...इसके विपरीत यदि हम किसी औरत की कमजोरी का लाभ उठाते हुए उसका शारीरिक, मानसिक वाचिक अथवा अन्य प्रकार से शोषण करते हैं तो निश्चित रूप से हम सभ्यता के सोपान पर बहुत नीचे खड़े हुए हैं....accha lga jankar...! Kavita ji aur Dr Gupta ji ko naman hai ..!!हरकीरत ' हीर'https://www.blogger.com/profile/09462263786489609976noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4959245896522980751.post-90533942143275827842009-03-16T06:22:00.000+05:302009-03-16T06:22:00.000+05:30भाई त्रिपाठी जी,आप महिलाओं के दुखों के बारे में चा...भाई त्रिपाठी जी,<BR/>आप महिलाओं के दुखों के बारे में चाहे जितना सहानुभूति के आँसू बहा लें, ये अपनी पोजीशन से टस से मस नहीं होने वाली हैं। पुरुष इन्हें चाहे अपना कलेजा निकाल कर देदे इनके मन में शक का कीड़ा कुलबुलाता ही रहेगा। इस झमेले में पड़ने से बेहतर है कुछ और अच्छी बातें सोचिए और लिखिए। <BR/><BR/>वैसे आपने लिखा गलत नहीं है लेकिन सब बेकार का परिश्रम है। आधी दुनिया एक तरफ़ और बाकी दूसरी तरफ़ बनी रहेगी।Malayahttps://www.blogger.com/profile/00391978161610948618noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4959245896522980751.post-84077351558384891802009-03-15T10:48:00.000+05:302009-03-15T10:48:00.000+05:30बहुत अच्छा लिखा रहे हैं आप ! बधाई !!बहुत अच्छा लिखा रहे हैं आप ! बधाई !!Neha Devhttps://www.blogger.com/profile/16949522092615457973noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4959245896522980751.post-56484781795702104052009-03-14T13:28:00.000+05:302009-03-14T13:28:00.000+05:30मेरा आलेख 'नारी विमर्श' मेरे ब्लाग पर अवश्य पढ़े ...मेरा आलेख 'नारी विमर्श' मेरे ब्लाग पर अवश्य पढ़े और अपनी राय दें।अजित गुप्ता का कोनाhttps://www.blogger.com/profile/02729879703297154634noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4959245896522980751.post-44542836869781749802009-03-13T22:32:00.000+05:302009-03-13T22:32:00.000+05:30ज्ञानदत्त जी से सहमत है हम भी...राम राम जी कीज्ञानदत्त जी से सहमत है हम भी...<BR/>राम राम जी कीराज भाटिय़ाhttps://www.blogger.com/profile/10550068457332160511noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4959245896522980751.post-14742700763381817292009-03-13T21:36:00.000+05:302009-03-13T21:36:00.000+05:30वैचारिक झमेलोत्पादक पोस्ट है। टिपेरने से बच रहा हू...वैचारिक झमेलोत्पादक पोस्ट है। टिपेरने से बच रहा हूं मैं।Gyan Dutt Pandeyhttps://www.blogger.com/profile/05293412290435900116noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4959245896522980751.post-34032864271230742222009-03-13T20:40:00.000+05:302009-03-13T20:40:00.000+05:30विचारशील पोस्ट! सभी टिप्पणियां पढ़ीं! अच्छा लगा।कवि...विचारशील पोस्ट! सभी टिप्पणियां पढ़ीं! अच्छा लगा।<BR/>कविता जी की सूत्र वाक्य <B>मानवीयता के संस्कार जब हिलोरें लेते हैं तो समाज मुस्कराता है।</B> पढ़कर अच्छा लगा! मुस्करा रहे हैं! :)अनूप शुक्लhttps://www.blogger.com/profile/07001026538357885879noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4959245896522980751.post-39546165492556842202009-03-13T18:24:00.000+05:302009-03-13T18:24:00.000+05:30कविता जी अच्छा लिखा है आपने -मैं अभी तक इतना परिपक...कविता जी अच्छा लिखा है आपने -मैं अभी तक इतना परिपक्व अपने को नहीं मानता कि कोई अपनी बात कह सकूं -जो सीखा समझा है उसे शब्दों में उतारने की एक कोशिश भर रहती है मेरी ! आप अपने परिप्रेक्ष्य में सही हैं ! <BR/>बहरहाल सिद्धार्थ जी का तदर्थ आभारी न होकर एतदर्थ आभारी होयें ! और इन्द्रलोक का संदर्भ भी याद है मुझे -मनोविनोद को गाँठ न बांधें ! अब न रहा पुरुरवा और न वे उर्वशी-मेनकाएँ ! हम तो उन पुराकथाओं के पात्रों के पासंग के बराबर भी शायद नहीं ! !Arvind Mishrahttps://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4959245896522980751.post-4281207341375788592009-03-13T17:44:00.000+05:302009-03-13T17:44:00.000+05:30उपर्युक्त टिप्पणी को ‘स्त्रीविमर्श’ पर (इस पोस्ट क...उपर्युक्त टिप्पणी को ‘स्त्रीविमर्श’ पर (इस पोस्ट को सन्दर्भित करते हुए) डाल रही हूँ।Kavita Vachaknaveehttps://www.blogger.com/profile/02037762229926074760noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4959245896522980751.post-870827565606511802009-03-13T17:41:00.000+05:302009-03-13T17:41:00.000+05:30सिद्धार्थ जी,आपने इस लेख को जिस भावना से लिखा है उ...सिद्धार्थ जी,<BR/>आपने इस लेख को जिस भावना से लिखा है उसके प्रति मेरी शुभकामनाएँ,बधाई। अच्छा लगता है कि ऐसा वातावरण बनने लगे जब महिलाओं के प्रति मानवीय दृष्टि से समझ विकसित करने की आवश्यकता अनुभव हो।<BR/><BR/>जिसको प्रकृति द्वारा जैसा बनाया गया है, उस से उसे शिकायत नहीं है, उसी प्रकार स्त्री को प्रकृति से कोई शिकायत नहीं है अपितु वह इस सुख की दावेदार, बल्कि मैं कहूँगी कि अधिकार की दावेदार, होने पर गर्वोन्नत ही होती है कि woman is second to God. इसलिए इस विषय में दयादृष्टि जैसा भाव भी उसे खलता है और इस स्थिति का लाभ उठाने की ताक में लगे रहने वाला भाव भी। <BR/><BR/>यदि किसी समाज में उसकी सम्पूर्ण आबादी के आधे हिस्से का २ प्रतिशत ( यानि कुल आबादी का १ प्रतिशत )स्त्री के शोषण के विरुद्ध आवाज उठाता है, तो इसमें तिलमिलाने जैसी बात कहीं होनी ही नहीं चाहिए। ऐसे तर्क उठने ही नहीं चाहिएँ कि स्त्री-पुरुष का मुद्दा क्यों कहा जा रहा है। आप गिन सकते हैं कितनी स्त्रियाँ वेश्या हैं ( वेश्या कौन बनाता है, किसके आनन्द का साधन हैं वे?) कितनी विधवाएँ सिर मुँडाए अपना जीवन गर्क करती हैं? ( ताकि कहीं किसी पुरुष की दृष्टि रूप पर न पड़ जाए), कितनी बुर्कों में हवा,प्रकाश, धूप तक से वंचित हैं?(ताकि किसी पुरुष का ईमान न डोल जाए)। बाकी सारे एक लाख-भर मुद्दों को छोड़ भी दिया जाए तो यही तीन मुद्दे काफ़ी हैं यह बताने को कि बात केवल कमजोर या सबल की नहीं है। ( बलात्कार का प्रतिशत भी आपको पता ही होगा, उसे भी इसमें और जोड़ लें)।<BR/><BR/> बात कमजोर और सबल की तब होती जब पता चलता कि क्या किसी कमजोर पुरुष को बुर्का पहनाया गया? या उसे विधुर होने पर जीवन कारा में मरने के लिए छोड़ दिया गया? या किसी महिला ने सबल होने पर अपने बेटे से शारीरिक सम्बन्ध बनाए? <BR/><BR/>अब एक उदाहरण देती हूँ। आजकल बहुधा बूढ़ों के प्रति उनकी अपनी सन्तान का व समाज का रवैया कितना स्वार्थ का रूप ले चुका है, आप जानते हैं। ऐसी ऐसे भयंकर घटनाएँ, अपने माता-पिता तक की हत्या आदि व न जाने क्या क्या हो रहा है। वृद्धों के अधिकारों की रक्षा करने वाले संगठन व लोग इसका प्रतिकार करते हैं व एक मिशन की भाँति इस दिशा में प्रयास करते हैं कि ऐसी सन्तान के स्वार्थ से उन्हें बचाया जाए। ऐसे लोगों की सामजिक निन्दा, बहिष्कार, हुक्का-पानी बन्द आदि भी किसी न किसी रूप में करवाए जाने की आवश्यकता अनुभव होती है। ताकि वे चेतें, और न चेतें तो दण्ड दिलवाया जाए। अस्तु। क्या वृद्धों के उत्पीड़न वाले मसले पर कोई यह कहता है कि नहीं इसे वृद्ध बनाम सन्तान या युवा का मामला मत बनाओ, यह तो कमजोर बनाम सबल का मामला है।<BR/><BR/>समाज का सबल वर्ग जिस भी भेस में जिस भी संबन्ध व इकाई पर अपनी सबलता का दुरुपयोग करेगा, वह उस वर्ग पर प्रश्नचिह्न लगाएगा ही। <BR/><BR/>और क्या ये महिला संगठन सास द्वारा, ननद द्वारा, या बहू द्वारा परस्पर किए जाने वाले अत्याचार को सही ठहराती हैं? क्या ऐसे प्रकरणों में वे उन भूमिकाओं में महिलाओं की निन्दा नहीं करतीं?<BR/><BR/>सीधी-सी बात है कि अनुपात के आधार पर यह निर्धारण होता है, स्त्रियों के शोषण का ९०% भाग जब पुरुष के माध्यम से सम्पन्न होता, उसके कारण होता है, उसकी शारीरिक व मानसिक कुँठाओं के कारण रचे गए छद्म द्वारा होता है तो सामान्यत: उसे ही तो दोष दिया जाएगा ना!<BR/><BR/>और जो लोग इस शोषण में हिस्सेदार नहीं हैं, उसे/उन्हें कब किस महिला ने गाली दी, मुझे बताइये। किसने कहा कि वे टार्गेट हैं? ऐसे पुरुषों को कितना मान व आत्मीयता मिलती है, सम्भवत: यह बताने के वस्तु नहीं। और मजे की बात तो यह कि इस मान व आत्मीयता को भी पुरुषों ने स्त्री को ठगने का माध्यम बना लिया है। वे एक प्रकार का स्त्रीहित का छद्म ओढ़ कर महिलाओं की भावनाओं से खिलवाड़ करने से भी नहीं चूकते। बहुधा पुरुष ऐसे भी धूर्त हो जाते है,हैं। स्त्रीविमर्श के नामलेवा तथाकथित नामचीन पुरुषों से आप परिचित ही होंगे। <BR/><BR/>ऐसे में स्त्री किस आधार पर विश्वास करे पुरुष का। उसके विश्वास को छलनी करने वालों को दोष देने की अपेक्षा यदि कोई कातर,छले हुए को ही दोष दे तो क्या कहा जाए उसकी सोच पर।<BR/><BR/>यदि वास्तव में पुरुष की अस्मिता को स्त्री से इस प्रकार दोषी ठहराए जाने पर कष्ट पहुँचता है तो इसके लिए स्त्रियों को चुप करवाने की अपेक्षा पुरुषों को धिक्कारने में,शोषण से रोकने में स्त्रियों के साथ मिलकर यत्न किए जाने चाहिएँ ताकि समाज में इस स्त्रियों के लिए रचे गए इस नर्क को समाप्त किया जाए व पुरुषों को भी दोष आने से। <BR/><BR/>जो पुरुष इस नर्क को रचने में कदापि भागीदार नहीं हैं, वे यह भी जानते हैं कि पुरुषों को दोषी ठहराने वाला तीर उन पर नहीं ताना गया। इसका निशाना वे हैं जो इस पातक के कर्ता हैं। यदि कक्षा में अध्यापक सब बच्चों को डाँटे- फटकारे कि जूते ठीक से पॊलिश नहीं करते हो, या गन्दे ही शाला चले आते हो, तो क्या नियमित व अनुशासनबद्ध रहने वाला कोई विद्यार्थी इस पर तिलमिलाएगा? या क्या ऐसा भी मानेगा कि उसे जूतों के लिए डपटा गया? <BR/><BR/>अत:जिन पर ये बातें लागू नहीं होतीं, उनको दोषियों के धिक्कारे जाने पर विचलित होने या धिक्कारने वाले को दोष देने या चुप करवाने की जरूरत क्यों आन पड़ती है?<BR/> <BR/>हर अपराधी को दण्ड/ फाँसी मिलनी चाहिए, मिले! परन्तु जो अपराध में संलिप्त नहीं है, उनका न्यायप्रक्रिया या अपराध की प्रतिक्रिया करते व्यक्ति को ही दोषी ठहराना गले न उतरने वाली बात है। <BR/><BR/>ऋषभदेव जी की कविता पढ़कर उस दिन ‘कुछ’ लोगों ने अपनी तिलमिलाहट में प्रश्नचिह्न लगाए कि "सब पुरुष ऐसे नहीं होते", "उक्त कविता का लेखक भी तो पुरुष ही है" आदि आदि। बात सही है। और यही प्रमाणित करती है कि जो पुरुष स्त्री की अस्मिता की रक्षा के युद्ध में उसके साथ खड़े हैं, उन्हें स्त्री कभी नहीं धिक्कारती। उन्हें स्त्रियाँ मान ही देती हैं। इसका प्रमाण भी यही उदाहरण है कि एक पुरुष की रचना को एक स्त्री ने इतने आदर पूर्वक छापा और उसकी एक पंक्ति के मान के लिए चक्रव्यूह में घिर लोहा लिया। और, इतना ही नहीं, उस पुरुष को अन्य महिला-प्रकल्पों में भी अत्यन्त आदर दिया गया। <BR/><BR/>दूसरी ओर ऐसे भी लोग हैं कि उन्हें हर स्त्री केवल देह दिखाई देती है। उदाहरण आप से छिपा नहीं है। जब किसी की प्रशंसा में लिखते लिखते लेखक इतना बहक जाता है कि उसके घर परिवार की स्त्रियों पर ही उसकी कलम बहक जाती है। ‘इन्द्रलोक’ (संकेत समझ रहे होंगे)की कल्पना ही उसका ईमान डिगा देती है और वह सामान्य सामाजिक मर्यादा तक से स्खलित हो जाता है कि ....। <BR/><BR/>और अरविन्द मिश्रा की उस समझ पर क्या कहूँ, जो स्त्री के समक्ष पुरुष के दैहिक बल अधिक होने को स्त्री के "अभिभावक" होने का नाम देकर अपना अहं पोसते हैं और स्त्री के मानापमान की रक्षा करने वालों को SHE MAN और दुनिया के सारे शोषक व चुगद दम्भी पुरुषों को HE MAN समझ उनकी ओर से स्त्री को वस्तु ही ठहराते हैं, जो केवल पुरुष द्वारा उसके आनन्द व उपभोग के लिए बनी है, उसकी मानसिक शारीरिक तृप्ति के लिए बनी है। जब तक, जब-जब, जो-जो आनान्ददायी रहेगी तब तक, वह-वह अच्छी स्त्री कहलाएगी वरना गन्दी, घटिया, पथभ्रष्ट, समाज की पातक व और जाने क्या क्या कहलाएगी। <BR/><BR/>आपके बहाने बहुत-सी चीजें साफ़ कहने का अवसर मिला, आपके प्रश्नों ने विचार के लिए बाध्य किया, तदर्थ आभारी हूँ। आपकी जागृत सम्वेदना प्रशंसनीय है, बस, उसे बहकने मत दीजिए, अभी उसे बहकाने वालों के असर से बाहर आना है, बस। मानवीयता के संस्कार जब हिलोरें लेते हैं तो समाज मुस्काता है। <BR/><BR/>शुभकामनाएँ।<BR/><BR/>पुनश्च-<BR/> आपके लेख का मूल स्वर वास्तव में जिस भावना को लेकर उठा है, उसके लिए आपकी प्रशंसा की जानी अत्यावश्यक है।Kavita Vachaknaveehttps://www.blogger.com/profile/02037762229926074760noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4959245896522980751.post-20686435209408484152009-03-13T11:07:00.000+05:302009-03-13T11:07:00.000+05:30सिद्धार्थजी, आप आपनी जगह सही हैं। स्त्री तमाम प्रक...सिद्धार्थजी, आप आपनी जगह सही हैं। स्त्री तमाम प्रकार के कष्टों के बीच से होकर गुजरती है। लेकिन अब वो प्रतिकार भी करने लगी है यही प्रतिकार उसकी ताकत है।222222222222https://www.blogger.com/profile/03001125920425180811noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4959245896522980751.post-53654835361061295082009-03-13T10:10:00.000+05:302009-03-13T10:10:00.000+05:30सिद्दार्थ जीपोस्ट अच्छी बन गयी हैं लेकिन झुकाव किस...सिद्दार्थ जी<BR/>पोस्ट अच्छी बन गयी हैं लेकिन झुकाव किस और हैं ये लिखने की जरुरत नहीं हैं । डॉ गुप्ता का कमेन्ट काफ़ी हैं । वो जो लिख रही हैं उसको समझे और हो सके तो उस पर लिखे ।<BR/>कुछ चीजों को हम आज के परिवेश मे परिभाषित करे जैसे "कुछ नारीवादी लेखिकाओं" क्या तात्पर्य हैं इस का । क्यूँ नारीवादी शब्द, प्रगतिशील नारियां इत्यादि शब्दों को एक गाली , भर्त्सना के रूप मे लिखा जाता हैं ?<BR/>क्यूँ किसी भी उस महिला को जो सामाजिक चेतना , नारी सशक्तिकर्ण इत्यादि पर लिखती हैं उसको पुरूष विरोधी समझा जाता हैं ।<BR/>क्यूँ पुरूष मे इतनी इन्सेकुरिटी हैं की वो हर लड़ाई मे अपना विरोध देख लेता हैं ??<BR/>क्या पुरूष ये मान रहा हैं की वो अत्याचारी हैं और रहा हैं ??<BR/><BR/>जब भी प्रगतिशीलता की बात होती हैं तो पुरूष वर्ग भी नारी के समर्थन मे उठ जाता हैं पर ये बताना नहीं भूलता की<BR/>नारी जो आन्दोलन चला रही हैं उसको वो कैसे चलाये , किसके साथ चलाये और किनके लिये चलाये ।<BR/>पुरूष वर्ग की ये सोच की नारी कमजोर हैं और उसको प्रोटेक्शन की जरुरत हैं अपने आप मे ग़लत हैं । यही सोच संरक्षण से हिंसा का रास्ता बन जाती हैं ।<BR/>कविता जी को ये बताना की उनको हेडिंग मे क्या देना था क्या नहीं उनके कैलिबर पर ? लगाना हुआ और बताया भी किसने जो ख़ुद विज्ञान के आड़ मे ना जाने कितनी ग़लत हेडिंग देते रहे हैं ।<BR/><BR/>आप से निवेदन हैं की आप डॉ गुप्ता के कमेन्ट को पढे और और उसके हिसाब से सम्भव हो तो एक पोस्ट लिखे , हम तो इंतज़ार कर रहे हैं पिछले २ साल से की पुरूष ब्लॉगर नारीवादी औरतो / प्रगतिशील नारियों को समझाने की जगह उन पर आक्षेप लगाने की जगह पुरुषों को समझाये की सयम कैसे बरता जाए ।<BR/><A HREF="http://indianwomanhasarrived.blogspot.com/2009/03/blog-post_12.html" REL="nofollow"> <BR/>जहा देखो महिला को सीख , तुम कमजोर हो सो संरक्षण मे रहो वाह क्या प्रोग्रेसिव थिंकिंग हैं <BR/></A>Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4959245896522980751.post-84996534275747455612009-03-13T09:04:00.000+05:302009-03-13T09:04:00.000+05:30पहले तो इतनी सशक्त अभिव्यक्ति के लिए साधुवाद ! आपक...पहले तो इतनी सशक्त अभिव्यक्ति के लिए साधुवाद ! आपका यह आलेख नारी विमर्श की दिशा में एक प्रस्थान बिंदु /विन्दु विसर्ग के रूप में सम्मान पायेगा ! दरअसल नारी को प्रकृति ने सृजन ,संतति संवहन का जो गुरुतर दायित्व सौंपा है उसी के समुचित प्रबंध में ही उसके नर साथी को भी अभिभावक के रूप में तैनात किया है ! <BR/> नारी को लम्बे गर्भकाल के दौरान ही नहीं शिशुओं के एक सुदीर्घ लालन पालन अवधि में भी उसे सुरक्षा की दरकार रहती है -यह साहचर्य के बिना संभव नहीं ! और यही कारण है कि मनुष्य प्रजाति उत्तरोत्तर एकनिष्ठ -मोनोगैमस होती गयी है -पुरुष के मन में आज भी बहु नारी गम्यता की एक ललक उसके अतीत की एक प्रतीति मात्र है जबकि प्रक्रति उसका मानों कान पकड़कर उसे एकनिष्ठ बनाती आयी है जो प्रजाति रक्षा के लिए अनिवार्य है -<BR/>सही है ,नारियों में परपुरुष गामिता की प्रवृत्ति पुरुष सरीखी नही है . संभवतः उन्हें पुरुष के पहले से ही प्रक्रति द्वारा एक्निष्ठी वृत्ति के लिए तैयार किया जाना आरंभ कर दिया गया हो ! बिना साहचर्य के मनुष्य जाति का भविष्य संकटमय दीखता है .मैं बार बार बल देकर कहता रहा हूँ नर नारी एक दूसरे के पूरक हैं - यह नैसर्गिक है ! अपवाद हैं तो शायद इसलिए की प्रकृति ही कहीं ना कोई प्रयोग परीक्षण कर रही हो अन्यथा उपर्युक्त जीवन शैली ही प्रकृति प्रदत्त है और जिन संस्कृतियों ने इसे पोषित किया है वे सुख से हैं ! <BR/>जहां तक ऋषभ देव की कविता है वह नारी चारण (शुवनिजम) /तुष्टिकरण की एक बेमिसाल मिसाल है जहाँ हर तरह के बिम्बों ,पौराणिक रूपको के सायास उद्धरण से एक सडियल सोच ( surreal अतियथार्थवादी ) को अग्रसारित किया गया है और जो न जाने क्यों कुछ महिलाओं की भ्रमित सोच के लिए अमोघ बाण बन बैठा है ! सतही अभिस्वीक्रितियां किसी को ऐसे सायास रचनाकर्म में प्रवृत्त कर सकती हैं -सोचकर मन दुखी हो जाता हैं ! <BR/>इस मार्गदर्शक लेख के लिए कोटिशः बधाई सिद्धार्थ जी !Arvind Mishrahttps://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4959245896522980751.post-52576930869848485682009-03-13T08:39:00.000+05:302009-03-13T08:39:00.000+05:30यह सत्य है कि नारी का शरीर सृजन के लिए बना है और ...यह सत्य है कि नारी का शरीर सृजन के लिए बना है और पुरुष का सहयोग के लिए। यह भी सत्य है कि काम, क्रोध, मोह आदि समस्त गुण पुरुष और स्त्री दोनों में ही होते हैं। बस अन्तर यह है कि कुछ गुण पुरुषों में आधिक्य होते हैं और स्त्रियों में न्यून। काम भाव ऐसा ही गुण है, जो पुरुषों में अधिक और नारी में न्यून होता है। इसे पुरुष का दोष माना जाता है और इसे ही संयमित करने के लिए मनुष्य को संस्कारित किया जाता है। यही कारण है कि भारत ही ऐसा देश है जहाँ सभ्यता से अधिक संस्कृति की बात की गयी। आज महिला के ऊपर होने वाले अत्याचारों का कारण पुरुष का काम दोष है अत: आवश्यकता है इसे संस्कारित करने की। केवल महिलाओं को ही बेचारा दिखाने से इस समस्या का समाधान नहीं होगा। हमें पुरुषों की इस बीमारी का भी उल्लेख करना चाहिए जो उन्हें प्रकृति ने दी है। पुरुष अपनी इस बीमारी के कारण हिंसक तक हो उठते हैं और सारे ही अपराध इसी कारण होते हैं। हार्मोन्स का बदलाव दोनों में ही होता है लेकिन जहाँ महिला के हार्मोन्स में बदलाव सृजन के लिए होता है वहीं पुरुष के बदलाव उसे हिंसक रूप दे देते हैं। अत: चिन्ता दोनों पर ही करनी चाहिए, तभी स्वस्थ समाज की रचना हो सकती है।अजित गुप्ता का कोनाhttps://www.blogger.com/profile/02729879703297154634noreply@blogger.com