tag:blogger.com,1999:blog-4959245896522980751.post8417724508549645269..comments2023-12-10T22:24:08.053+05:30Comments on सत्यार्थमित्र: निरुपमा के बाद रजनी को भी जान गँवानी पड़ी… क्यों???सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठीhttp://www.blogger.com/profile/04825484506335597800noreply@blogger.comBlogger13125tag:blogger.com,1999:blog-4959245896522980751.post-12116317373850705202010-05-18T07:30:50.010+05:302010-05-18T07:30:50.010+05:30एक जीवन से कीमती कुछ नहीं होता। रजनी का मरना दुखद ...एक जीवन से कीमती कुछ नहीं होता। रजनी का मरना दुखद है।अनूप शुक्लhttps://www.blogger.com/profile/07001026538357885879noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4959245896522980751.post-18010128080598958002010-05-17T18:22:00.655+05:302010-05-17T18:22:00.655+05:30यह विषय इतना सरल नहीं कि इसपर त्वरित टिपण्णी की जा...यह विषय इतना सरल नहीं कि इसपर त्वरित टिपण्णी की जा सके...<br />दोनों ही समस्याएं जटिल हैं,निंदनीय तथा वर्जनीय हैं....अभिभावकों द्वारा अपने संतान की हत्या करना भी और संतान का अल्पवय में शारीरिक सम्बन्ध स्थापित करना भी...रंजनाhttps://www.blogger.com/profile/01215091193936901460noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4959245896522980751.post-18232411391792096122010-05-16T13:32:38.467+05:302010-05-16T13:32:38.467+05:30बहुत दुखद -मनुष्य शरीर का ऐसा त्रासद अंत .....खुद ...बहुत दुखद -मनुष्य शरीर का ऐसा त्रासद अंत .....खुद मनुष्य के द्वारा ! वह भी अपने ही खून का खून ! कौन कहेगा की ब्लड इज थिकर देन वाटर ! <br />और यह गर्भ किस मूर्खता की देंन है -विडंबना है कि गर्भ निरोधक गोली का यह पचासवां वर्ष हैArvind Mishrahttps://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4959245896522980751.post-55888488594890230432010-05-15T23:04:15.162+05:302010-05-15T23:04:15.162+05:30मारी तो नारी ही जाती है न, पुरुष क्यों नहीं। पुरुष...मारी तो नारी ही जाती है न, पुरुष क्यों नहीं। पुरुष प्रधान समाज है शायद इसलिये?विनोद शुक्ल-अनामिका प्रकाशनhttps://www.blogger.com/profile/18173585318852399276noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4959245896522980751.post-53950759923731520022010-05-15T22:22:57.112+05:302010-05-15T22:22:57.112+05:30कितना दुखद है यह सब.कितना दुखद है यह सब.डॉ. मनोज मिश्रhttps://www.blogger.com/profile/07989374080125146202noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4959245896522980751.post-53005036735632649592010-05-15T15:13:11.119+05:302010-05-15T15:13:11.119+05:30जातियां मनुष्य की सामाजिकता पुष्ट करने को बनी थीं,...जातियां मनुष्य की सामाजिकता पुष्ट करने को बनी थीं, वे अब तानाशाही कर रही हैं।Gyan Dutt Pandeyhttps://www.blogger.com/profile/05293412290435900116noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4959245896522980751.post-37707936529517183652010-05-14T23:34:29.861+05:302010-05-14T23:34:29.861+05:30प्यार ओर हवस मै फ़र्क है, यह लोग जिसे प्यार का नाम ...प्यार ओर हवस मै फ़र्क है, यह लोग जिसे प्यार का नाम देते है वो क्या सच मै ही प्यार है???<br />लेकिन जो भी हुआ वो बहुत गलत हुआ,शायद मां बाप ओर भाईयो ने गुस्से मै इतना मारा कि यह लोग भुल ही गये कि वो भी इन के परिवार का एक हिस्सा है.... दोष किसे दे?राज भाटिय़ाhttps://www.blogger.com/profile/10550068457332160511noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4959245896522980751.post-34236611555857713542010-05-14T19:49:35.600+05:302010-05-14T19:49:35.600+05:30'स्व' सबसे प्यारा होता है। समस्या 'स्व...'स्व' सबसे प्यारा होता है। समस्या 'स्व' को जड़ और तुच्छ मान्यताओं से जोड़ने से होती है। <br />यह कृत्य बर्बर है, निन्दनीय है। लेकिन लड़के लड़की क्यों अपने को किसी आसमानी दुनिया का समझने लगते हैं? वे भाग कर शादी कर सकते थे। इस जमाने में भी गर्भ ठहरा लेना मुझे समझ में नहीं आता।<br />थोड़ी बहुत बेवकूफी तो आ ही जाती है लेकिन यह कैसा प्यार है जो इतना मूर्ख बना देता है? कटु यथार्थों की ऐसी उपेक्षा क्यों की जाती है? लड़के को कुछ नहीं होगा और लड़की की जान अपनों ने ही ले ली। ऐसे स्वार्थियों को लड़कियाँ क्यों नहीं पहचान पातीं ? ..ऐसी घटनाओं में गर्भ का डीएनए परीक्षण अनिवार्य हो जाना चाहिए ताकि पुरुष को भी दण्ड मिल सके। ..गिरिजेश राव, Girijesh Raohttps://www.blogger.com/profile/16654262548719423445noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4959245896522980751.post-31346285162848467442010-05-14T15:07:03.771+05:302010-05-14T15:07:03.771+05:30हमने अपने आस पास एक घेरा खींच रखा है और उसी में ह...हमने अपने आस पास एक घेरा खींच रखा है और उसी में हम बंद हैं। पर कब तक?दिनेशराय द्विवेदीhttps://www.blogger.com/profile/00350808140545937113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4959245896522980751.post-4278665137670731152010-05-14T12:19:50.641+05:302010-05-14T12:19:50.641+05:30हम हमारा परिवार समाज के जातिगत खूंटे में कुच्छ इस ...हम हमारा परिवार समाज के जातिगत खूंटे में कुच्छ इस प्रकार बंधे हुए हैं,<br /><br />जहाँ सोच किसी भी परोसी के साथ रहने निभाने और साझा विकास के पहल की तो है परन्तु रिश्तेदारी तभी सफल है जब अपने जाति समूह द्वारा प्रमाणपत्र मिले.<br /><br />विभिन्न जातीय प्रथाओं में मीन मेख निकालना भी समस्यां के मूल में है.<br /><br />और सबसे बड़ी बात यह की उंच और नीच जाति की कई पंक्तियाँ है. किसी व्यक्ति विशेष की आदत को जातीय प्रथा मानकर उसे बेईज्ज़त करने की प्रथा है अपने समाज में. क्या कहें बातें बहुत है, परिणाम वही है. व्यक्ति के निजी जीवन में परिवार(और स्थानीय जातिगत समाज) का दखल राज्य/देश के क़ानून से भी ऊपर है.Sulabh Jaiswal "सुलभ"https://www.blogger.com/profile/11845899435736520995noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4959245896522980751.post-5494880209217568312010-05-14T12:10:05.308+05:302010-05-14T12:10:05.308+05:30इंसान से कुत्ता बनने की प्रक्रिया जल्द ही शुरू होन...इंसान से कुत्ता बनने की प्रक्रिया जल्द ही शुरू होनी चाहिए.. क्योंकि कुत्तो के सुनने की क्षमता इंसानों से दुगुनी होती है.. शायद कुत्ता बनने के बाद हमें कुछ सुनाई दे जाये..कुशhttps://www.blogger.com/profile/04654390193678034280noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4959245896522980751.post-24097112198037595232010-05-14T09:38:42.786+05:302010-05-14T09:38:42.786+05:30विविधता जब फूलों की तरह उद्यान की शोभा बढ़ाती है त...विविधता जब फूलों की तरह उद्यान की शोभा बढ़ाती है तो भाती है, जब वही विविधता एक दूसरे से भेद के कारण खोज ले तो मन चीत्कार कर उठता है ।प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4959245896522980751.post-86968657900023092742010-05-14T07:44:07.593+05:302010-05-14T07:44:07.593+05:30जातिव्यवस्था को जब हमारी सरकार ही मान रही है, जाती...जातिव्यवस्था को जब हमारी सरकार ही मान रही है, जाती के आधार पर जनगणना हो रही है तो एक मध्यम वर्गीय परिवार जिसके पास ले दे कर इज्जत ही पूँजी है, जाति व्यवस्था के चलते वहशी हो जाता है, अपनी ही बेटी की हत्या करता है तो मुझे नहीं लगता कि अपराधी सिर्फ वही है..कहीं न कहीं हम और हमारा समाज भी इन हत्याओं के पीछे जिम्मेदार है. अंतरजातीय विवाह को यह समाज खुलेआम स्वीकार क्यों नहीं करता? पढे-लिखे और बुद्धिजीवी माने जाने वाले वर्ग को तो पहल करनी चाहिए..!देवेन्द्र पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/07466843806711544757noreply@blogger.com