tag:blogger.com,1999:blog-4959245896522980751.post6951172075144097847..comments2023-12-10T22:24:08.053+05:30Comments on सत्यार्थमित्र: गुलदस्ते के बहाने... एक स्त्री विमर्शसिद्धार्थ शंकर त्रिपाठीhttp://www.blogger.com/profile/04825484506335597800noreply@blogger.comBlogger12125tag:blogger.com,1999:blog-4959245896522980751.post-50934441736484020822009-02-07T17:44:00.000+05:302009-02-07T17:44:00.000+05:30शास्त्री जी से सहमत हूँ। पुरुषसत्तात्मक समाज में स...शास्त्री जी से सहमत हूँ। पुरुषसत्तात्मक समाज में स्त्री को सदैव एक शो-पीस का दर्जा ही दिया गया है। गुलदस्ते का कार्य होता है आकर्षण बढ़ाना, माहौल को रंगीन करना। खुद से पूछकर देखें, क्या स्त्री भी वही पर्पज सॉल्व नहीं करती है..? शायद हाँ।<BR/><BR/>एक छोटे से दृष्टान्त के जरिये बात को कहाँ से कहाँ ले गये आप..। साधुवाद।<BR/><BR/>रागिनी दी की पाती एक सुखद अनुभूति थी.. वैसे <B>'दुलारी की डोली’</B> सजाने का ग़लत इल्जाम आपपर लगा है.. <BR/><BR/>:-)कार्तिकेय मिश्र (Kartikeya Mishra)https://www.blogger.com/profile/03965888144554423390noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4959245896522980751.post-38037360345665873202009-02-06T20:14:00.000+05:302009-02-06T20:14:00.000+05:30"मेरा मानना है कि यह फैशन उसी पश्चिमी सभ्यता से आय..."मेरा मानना है कि यह फैशन उसी पश्चिमी सभ्यता से आयातित है जो कथित रूप से मनुष्य की स्वतन्त्रता, समानता और न्याय का स्वयंभू अलम्बरदार है।"<BR/><BR/>स्त्री के यौनिक आकर्षण को भुनाना आजकल काफी आम हो गया है. यह पश्चिम से आयात किया गया नजरिया है.<BR/><BR/>अफसोस की बात है कि "स्त्री-मुक्ति" के नाम पर हिन्दी चिट्ठाजगत में कई महिलाये इस यौनिक प्रदर्शन (शोषण) को आजादी मानती हैं.<BR/><BR/>सस्नेह -- शास्त्रीShastri JC Philiphttps://www.blogger.com/profile/00286463947468595377noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4959245896522980751.post-34336427640412634032009-02-05T14:41:00.000+05:302009-02-05T14:41:00.000+05:30कई बातें जो आप मानने को तैयार नहीं है .... 'वो सच ...कई बातें जो आप मानने को तैयार नहीं है .... 'वो सच हैं !' रागिनी जी की पाती बड़ी अच्छी लगी. अब चिट्ठी कहाँ देखने को मिलती है !Abhishek Ojhahttps://www.blogger.com/profile/12513762898738044716noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4959245896522980751.post-7944247243701976962009-02-05T14:28:00.000+05:302009-02-05T14:28:00.000+05:30भाई मै तो रहता ही गोरो के बीच, अब इन की प्रथा को भ...भाई मै तो रहता ही गोरो के बीच, अब इन की प्रथा को भारत मै देख कर, सच कहूं तो अच्छा नही लगता, कारण... हम बन्दर नही जो हर बात पर सिर्फ़ नकल करे....:), जो करते है करेराज भाटिय़ाhttps://www.blogger.com/profile/10550068457332160511noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4959245896522980751.post-18373373455953694292009-02-05T13:09:00.000+05:302009-02-05T13:09:00.000+05:30रागिनी जी से परिचय करवाने का शुक्रिया ।रागिनी जी से परिचय करवाने का शुक्रिया ।mamtahttps://www.blogger.com/profile/05350694731690138562noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4959245896522980751.post-72571386404092018362009-02-05T10:38:00.000+05:302009-02-05T10:38:00.000+05:30मैं तो बाय्स स्कूल में था .. वहा गुलदस्ता भी हम दे...मैं तो बाय्स स्कूल में था .. वहा गुलदस्ता भी हम देते थे और स्वागत गान भी हम गाते थे.. <BR/><BR/>बाकी अरविंद जी की बात से सहमत हू..कुशhttps://www.blogger.com/profile/04654390193678034280noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4959245896522980751.post-56380378109554185072009-02-05T10:29:00.000+05:302009-02-05T10:29:00.000+05:30@मुंहफटthanks for what you have said@मुंहफट<BR/>thanks for what you have saidAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4959245896522980751.post-71477233347505939902009-02-05T09:35:00.000+05:302009-02-05T09:35:00.000+05:30"लेख पढा अच्छा लगा पर कई विषयों पर चुप रहना बहतर ह..."लेख पढा अच्छा लगा पर कई विषयों पर चुप रहना बहतर होता है....तो हम चुप रहेंगे..रागिनी जी से परिचय करने का आभार.."<BR/><BR/>Regardsseema guptahttps://www.blogger.com/profile/02590396195009950310noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4959245896522980751.post-68880714072477015292009-02-05T09:33:00.000+05:302009-02-05T09:33:00.000+05:30भैया सिद्धार्थ,औरत की संस्कृति जानने के लिए और उसे...भैया सिद्धार्थ,<BR/>औरत की संस्कृति जानने के लिए और उसे और विकसित करने के लिए आप भी स्थाई रूप से गांव में जा बसिए ना. शहर का मजा लेने के लिए क्यों हाशिये पर झूल रहे हैं. गांव जाने का उपदेश तो बहुत से लोग देते हैं, जाने में सुरसुरी छूटती है. औरतनामा की सामंती व्याख्या अच्छी लगी. सामंतवाद का ठूंठ अभी बहुतों का लुकाठा बना हुआ है. शायद आपका भी.मुंहफटhttps://www.blogger.com/profile/08368420570289784107noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4959245896522980751.post-43861440071147360092009-02-05T09:29:00.000+05:302009-02-05T09:29:00.000+05:30कठिन सवाल है आपका।कठिन सवाल है आपका।Anil Pusadkarhttps://www.blogger.com/profile/02001201296763365195noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4959245896522980751.post-57443310016164701202009-02-05T07:46:00.000+05:302009-02-05T07:46:00.000+05:30हमने भी आमतौर पर समान लिंग वालों को ही हार/पहनाते ...हमने भी आमतौर पर समान लिंग वालों को ही हार/पहनाते गुलदस्ता देते देखा है लोगों को। <BR/>रागिनी शुक्लाजी की राइटिंग बड़ी अच्छी, सुघड़ है। आशा है वे नियमित ब्लागर जल्द ही बनेंगी। दुलारी जैसी और कहानियां उनके माध्यम से पढ़ने को मिलेंगी!Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4959245896522980751.post-87297731343032159792009-02-05T06:52:00.000+05:302009-02-05T06:52:00.000+05:30सिद्धार्थ जी भारत एक सांस्कृतिक त्रासदी /संघात के ...सिद्धार्थ जी भारत एक सांस्कृतिक त्रासदी /संघात के दौर में हैं जहाँ वर्जनाएं और उन्मुक्तता के मध्य हमारी गति साँप छंछूदर सी हो चली है -हम ख़ुद भी कई मौकों पर संभ्रमित और ठगे से हो रहते हैं -पर निश्चित ही भारतीय जीवन दर्शन कुछ सुनहले उसूलों पर टिका है और हमें उन्हें प्राथमिकता देनी चाहिए ! मगर नयनाभिराम फोटो का परिचय नहीं दिया आपने !Arvind Mishrahttps://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.com