tag:blogger.com,1999:blog-4959245896522980751.post4615483117064797222..comments2023-12-10T22:24:08.053+05:30Comments on सत्यार्थमित्र: पेण्ड्युलम के सवालसिद्धार्थ शंकर त्रिपाठीhttp://www.blogger.com/profile/04825484506335597800noreply@blogger.comBlogger6125tag:blogger.com,1999:blog-4959245896522980751.post-87236426102036412242011-11-19T17:14:17.175+05:302011-11-19T17:14:17.175+05:30वाह...kya sundar chintan....
man भावुक और मुग्ध ह...वाह...kya sundar chintan....<br /><br />man भावुक और मुग्ध हो गया सिद्धार्थ जी...रंजनाhttps://www.blogger.com/profile/01215091193936901460noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4959245896522980751.post-4010203308654923552008-07-28T14:19:00.000+05:302008-07-28T14:19:00.000+05:30हमें तो,इस चरम पंथ से डर लगता हैइसलिए इस पेण्ड्युल...हमें तो,<BR/>इस चरम पंथ से डर लगता है<BR/>इसलिए इस पेण्ड्युलम का मध्यमार्ग<BR/>एक सुहाना सफ़र लगाता है।<BR/><BR/>आपकी इस रचना की जितना प्रशंसा की जाए कम ही है। उच्चकोटि की रचना के लिए साधुवाद।Prabhakar Pandeyhttps://www.blogger.com/profile/04704603020838854639noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4959245896522980751.post-79538609786248484762008-07-25T02:21:00.000+05:302008-07-25T02:21:00.000+05:30घुघुतीजी की कविता पढ़कर अभी हम एक गहरी सोच से ऊबर न...घुघुतीजी की कविता पढ़कर अभी हम एक गहरी सोच से ऊबर न पाए कि आपने हतप्रभ कर दिया... दोनो कविताएँ एक से बढ़ एक...अति उत्तम...<BR/>जो हम कहना चाहते थे...आपने उसे कई गुना सुन्दर रूप दे दिया...मीनाक्षीhttps://www.blogger.com/profile/06278779055250811255noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4959245896522980751.post-45629293736591523912008-07-24T22:24:00.000+05:302008-07-24T22:24:00.000+05:30सिद्धार्थ जी,आपने मेरी कविता पर कविता लिखकर मुझे व...सिद्धार्थ जी,आपने मेरी कविता पर कविता लिखकर मुझे व मेरी कविता को जो सम्मान दिया है उसके लिए धन्यवाद। सच कहूँ तो आपकी कविता मेरी कविता से बेहतर है। मेरी कविता केवल भावना प्रधान है जबकि आपकी जीवनदर्शन प्रधान है। मैंने अपनी कविता में जीवन के इन तीन आयामों, बाल्यावस्था, यौवन और वृद्धावस्था के बारे में नहीं सोचा था। उम्र के जिस पड़ाव में हूँ बस वहीं से जीवन को देखा था। आपने कविता को यह जो नया दार्शनिक रूप दिया मुझे बहुत पसन्द आया। एक बार फिर धन्यवाद सहित,<BR/>घुघूती बासूतीghughutibasutihttps://www.blogger.com/profile/06098260346298529829noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4959245896522980751.post-5473259089716542822008-07-24T07:06:00.000+05:302008-07-24T07:06:00.000+05:30वाह, सशक्त टेक्नो-साइण्टिफिक-ह्यूमन-आध्यात्मिक पोस...वाह, सशक्त टेक्नो-साइण्टिफिक-ह्यूमन-आध्यात्मिक पोस्ट। <BR/>सत्यार्थमित्र के लेखन में सभी शेड्स हैं।Gyan Dutt Pandeyhttps://www.blogger.com/profile/05293412290435900116noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4959245896522980751.post-36991822336536489802008-07-24T05:56:00.000+05:302008-07-24T05:56:00.000+05:30क्या कहें, सिद्धार्थ. आपको आज तक मैने इस स्तर पर त...क्या कहें, सिद्धार्थ. आपको आज तक मैने इस स्तर पर तो नहीं ही आंका था, और इसे स्वीकार करते हुए मुझे कोई ग्लानि नहीं हो रही है. मैं हर्षित हूँ कि मैं गलत साबित हुआ.<BR/><BR/>एक बहुत ही स्तरीय रचना पेश की है. ऐसी गहराई कम ही देखने में आती है:<BR/><BR/>तब तक यह जीवन है<BR/>जब तक साँसे हैं<BR/>इसके टूट जाने के बहाने<BR/>तो बस जरा से हैं<BR/>हमारी साँसो की डोर बँधी है<BR/>उस अद्वैत परमात्मा से<BR/>जो सत्-चित्त-आनन्द है<BR/>और इस दुनिया की सारी माया,<BR/>सारा प्रपञ्च <BR/>उसकी ही मुठ्ठी में बन्द है<BR/><BR/><BR/>--बस, अब यह जान लो कि तुमने ही अपने प्रति अपेक्षायें बढ़वा ली हैं और यह स्तर बनाये रखना होगा. निश्चित ही मेहनत लगेगी मगर करो. हम क्या करें, तुमने खुद ही तो अपने को उस शिखर पर पहुँचा लिया है जहाँ से अब मैदान की बात नहीं कर सकते.<BR/><BR/>-बहुत बहुत बधाई इस अद्भुत रचना के लिए और अनेकों शुभकामनाऐं.<BR/><BR/>--शायद तुम्हें मैं ढंग से टिप्पणी नहीं कर रहा था, वो वाली शिकायत भी जाती रहेगी अब तो. :)Udan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.com