tag:blogger.com,1999:blog-4959245896522980751.post385796983550902573..comments2023-12-10T22:24:08.053+05:30Comments on सत्यार्थमित्र: राम रसोई हुई मुखर…|सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठीhttp://www.blogger.com/profile/04825484506335597800noreply@blogger.comBlogger23125tag:blogger.com,1999:blog-4959245896522980751.post-38927438584335871572010-02-13T14:11:08.678+05:302010-02-13T14:11:08.678+05:30राम रसोई हुई मुखर
कविता बोली देख इधर
अद्भुत .........राम रसोई हुई मुखर<br />कविता बोली देख इधर<br />अद्भुत ........!इष्ट देव सांकृत्यायनhttps://www.blogger.com/profile/06412773574863134437noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4959245896522980751.post-16826931775697241382010-02-13T13:21:09.029+05:302010-02-13T13:21:09.029+05:30bahut badhia.bahut badhia.SKANDhttps://www.blogger.com/profile/13369223197555135054noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4959245896522980751.post-68673733877696518452010-02-07T01:05:06.851+05:302010-02-07T01:05:06.851+05:30गिरिजेश जी पर तो उम्र का असर साफ दिख रहा है- एक त...गिरिजेश जी पर तो उम्र का असर साफ दिख रहा है- एक तरफ स्वीकारोक्ति है <a href="http://girijeshrao.blogspot.com/2010/01/11.html" rel="nofollow">.... मैं बूढ़ा हो गया ... </a> और वहीं हफ्ता भर बाद बसंत आते ही मालिश करके अखाड़ा में उतर रहे हैं... जियो बसंती बयार!<br /><br />और अब आप भी- अब तो पक्का लग रहा है कि इस रसोई में तो भेजे का भजिया बन जायेगा।<br /><br />रहना नहीं देस बेगाना रे...कार्तिकेय मिश्र (Kartikeya Mishra)https://www.blogger.com/profile/03965888144554423390noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4959245896522980751.post-10230910641697571852010-02-05T18:04:04.281+05:302010-02-05T18:04:04.281+05:30kavita boli dekh idhar, so aaye dekhe aur chal diy...kavita boli dekh idhar, so aaye dekhe aur chal diye agli post ka intjar liye......Harshkant tripathihttps://www.blogger.com/profile/15441547683065761377noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4959245896522980751.post-15405024082274597672010-02-05T08:14:26.074+05:302010-02-05T08:14:26.074+05:30.....क्या कहा ५ मानत में कविता तैयार करने का सोफ्ट........क्या कहा ५ मानत में कविता तैयार करने का सोफ्टवेयर आ गया ?<br />अभी गिज्जी भाई को फोन लगा आर्डर करता हूँ | <br /><br />@पर वह अध्ययन और मनन कहाँ से लाऊँ ?प्रवीण त्रिवेदीhttps://www.blogger.com/profile/02126789872105792906noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4959245896522980751.post-51449828637310291242010-02-03T22:21:27.798+05:302010-02-03T22:21:27.798+05:30आचारच और कवि संवाद मजेदार रहा! कविता के बारे में ह...आचारच और कवि संवाद मजेदार रहा! कविता के बारे में हम कुछ न कहेंगे!अनूप शुक्लhttps://www.blogger.com/profile/07001026538357885879noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4959245896522980751.post-37241918667985936922010-02-03T22:20:30.347+05:302010-02-03T22:20:30.347+05:30@अमरेन्द्र नाथ त्रिपाठी
मुझे किस बात पर क्षुब्ध हो...@अमरेन्द्र नाथ त्रिपाठी<br />मुझे किस बात पर क्षुब्ध होना था भाई? :)<br /><br />@डॉ.अरविन्द मिश्र<br />बड़े भैया, क्यों गड़बड़ झाला कर रहे हैं? मुझे मझला भाई और गिरिजेश भैया को छोटा भाई बताकर आपने दुष्क्रमत्व दोष पैदा कर दिया। उम्र, शिक्षा, और अनुभव सबकुछ में वे मेरे अग्रज हैं। इस त्रुटि का सुधार अनिवार्य है महात्मन्।सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठीhttps://www.blogger.com/profile/15057775263127708035noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4959245896522980751.post-21192133467654534712010-02-03T19:54:34.916+05:302010-02-03T19:54:34.916+05:30सिद्धार्थ जी !
अगर आप क्षुब्ध हुए हों तो माफी चाह...सिद्धार्थ जी ! <br />अगर आप क्षुब्ध हुए हों तो माफी चाहूँगा ..<br />नहीं तो आपके मौन को मैं और क्या समझूँ ..<br />मेरा मंतव्य अरविन्द मिश्र जी ने कुछ समझा है .. उन्हें आभार ,,,<br />बाकी अपनी बातें यहाँ कर आया हूँ ---http://kavita-vihangam.blogspot.com/2010/02/blog-post_03.html?showComment=1265206687572_AIe9_BGMcyM8laEqklddLYs5Iz4tgVhWAj4-E_GAqGKT0cZvqSnyKtp63AYRb4tg-FktjHuR4aZMAmrendra Nath Tripathihttps://www.blogger.com/profile/15162902441907572888noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4959245896522980751.post-3721774795762152212010-02-03T09:41:24.221+05:302010-02-03T09:41:24.221+05:30कविता बोली देख इधर ...
देखे तो...और धन्य भी भये ...कविता बोली देख इधर ...<br /><br /><br />देखे तो...और धन्य भी भये महाराज!Udan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4959245896522980751.post-16887596296310549432010-02-03T08:41:42.945+05:302010-02-03T08:41:42.945+05:30सहज स्फूर्त कविता ! हाँ यह सही है ! पर जो सहज स्फू...सहज स्फूर्त कविता ! हाँ यह सही है ! पर जो सहज स्फूर्त हो उसमें सर-खपउव्वल क्यों ? एकदम नहीं न ! <br />हम भी आपकी इस राम-रसोई से रसाप्लावित हुए ! <br /><br />अबूझ आइटम पर एक टिप्पणी हम भी कर आये हैं - http://kavita-vihangam.blogspot.com/2010/02/blog-post.html?showComment=1265165886330#c2114525764785950300Himanshu Pandeyhttps://www.blogger.com/profile/04358550521780797645noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4959245896522980751.post-17373741038151886942010-02-03T07:22:01.649+05:302010-02-03T07:22:01.649+05:30सबसे पहले तो कविता की सुघड़ता पर रचनाकार,अपने मझले...सबसे पहले तो कविता की सुघड़ता पर रचनाकार,अपने मझले भैया सिद्धार्थ जी पर जां कुर्बान!<br />फिर यह संक्रामकता दरअसल गिरिजेश जी से उदगमित हुयी और यहाँ अदृश्य दिख रही सरस्वती के साथ त्रिपथगा /त्रिवेणी बन रसिकों को रिझाने लग गयी है .चतुरंगिनी बसंत सेना इसमें उत्प्रेरण बनी है .<br />अमरेन्द्र जी ने अपनी बात से एक पुरातन बहस छेड़ी है -रचना के लिए रचना (ब्लागजगत की संज्ञाएँ नहीं ) या फिर सहज स्फूर्त कविता(जैसा की रचना द्वितीय द्वारा परिभाषित है यहाँ ! )<br />मगर देवेन्द्र जी की बात में दम है -रचना तो मन में रची बसी होती है -ज़रा सा भी उद्रेक पाते ही बह चलती है .<br />बाकी सहज सरल मासूम छोटके भैया जहिरा ही दिए हैं सब-उनसे भला कोई असहमति कैसे हो ?Arvind Mishrahttps://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4959245896522980751.post-64146991564528624302010-02-03T06:42:45.324+05:302010-02-03T06:42:45.324+05:30इस कड़ी की अगली प्रस्तुति यहाँ है:
a href="h...इस कड़ी की अगली प्रस्तुति यहाँ है:<br /><br /><br />a href="http://kavita-vihangam.blogspot.com/2010/02/blog-post_03.html">YOUR "आचारज जी" /a <br /><br />हुड़दंग है<br /><br />सब रंग है।गिरिजेश राव, Girijesh Raohttps://www.blogger.com/profile/16654262548719423445noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4959245896522980751.post-85410656696249863582010-02-02T22:59:27.018+05:302010-02-02T22:59:27.018+05:30@यह कविता कौन है?
यह कविता वही है जो आप के ब्लॉग ...@यह कविता कौन है?<br /><br />यह कविता वही है जो आप के ब्लॉग पर रोज नये-नये परिधानों में अजब-गजब फैशन बिखेरती, उड़ती-दौड़ती, गिरती-पड़ती और दूसरों को ठेलती-ठेलाती चलती है। बसंती बयार पाकर इसकी कौन गत होगी, राम जाने री...:)रचना त्रिपाठीhttps://www.blogger.com/profile/12447137636169421362noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4959245896522980751.post-37530130407348759442010-02-02T22:48:33.591+05:302010-02-02T22:48:33.591+05:30.
@ ...समर्पण 'गुल' खिलाते हैं.....
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आप ग....<br />@ ...समर्पण 'गुल' खिलाते हैं.....<br />.<br />आप गुल की बात करते हैं , हम तो गुलगुला भी खा सकते हैं पर <br />आँख मूँद कर नहीं ... परख के <br />बाद ही ... समर्पण ! ... कविता !... आचारज ! ... न बाबा न !...<br />जब कविता सहज नहीं 'विकट' पहेली ( = रस्साकशी बुझौहल ) लगेगी <br />तो हमसे न रहा जायेगा .. असहमति तो दर्ज करेंगे ही ..Amrendra Nath Tripathihttps://www.blogger.com/profile/15162902441907572888noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4959245896522980751.post-61913405041226999692010-02-02T22:44:34.555+05:302010-02-02T22:44:34.555+05:30वाह...शब्दों का ऐसा प्रभावी प्रयोग किया आपने कि सब...वाह...शब्दों का ऐसा प्रभावी प्रयोग किया आपने कि सब कुछ नयनाभिराम हो गया...<br />बहुत ही सुन्दर कविता...रंजनाhttps://www.blogger.com/profile/01215091193936901460noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4959245896522980751.post-38799084171896140412010-02-02T22:38:23.961+05:302010-02-02T22:38:23.961+05:30५ मिनट में कविता बन सकती है मगर इसके पीछे अवचेतन म...५ मिनट में कविता बन सकती है मगर इसके पीछे अवचेतन मस्तिष्क में छुपा गहन अध्ययन ही होता है. सुंदर शब्द चित्र. गिरजेश जी का 'अदहन' ही पर्याप्त था रसोई की याद दिलाने के लिए ...आपने तो चटनी के साथ पूरे गावं-घर का सौंदर्य ही बिछा दिया है.<br /> <br />अमरेन्द्र जी, यह ब्लागर तिकड़बंदी नहीं है. तिकड़बंदी तो सोंच-समझ कर की जाती है. न ही यह बैठे ठाले का धंधा है. मुझे तो लगता है कि यह उल्लास से निकले मन की सहज उपज है... यह प्रयोग भी नहीं लगता...हाँ, तत्काल पढते वक्त पाठकों के मन में ऐसे भाव आ सकते हैं जैसा की आपने लिखा.<br />..उल्लास में आनंद लीजिए ...शंका, सृजन नहीं होने देती ..समर्पण 'गुल' खिलाते हैं.<br />..आप भी शामिल हो जायिए...लोग पढ़ें तो कहें <br />वाह! क्या चौकड़ी जमाई है.<br />..एक बात और सच्ची-सच्ची लिख दूँ कि मुझे गिरजेश जी कि कविता पढ़कर तो बहुत आनंद आया मगर उनके दिए अनेकों संकेतों के बाद भी 'पहेली' अभी तक समझ में नहीं आई जबकि कमेन्ट पढ़कर लगता है कि मेरे आलावा सभी समझ रहे हैं.<br />..अब लगता है कि खोजना पड़ेगा..देवेन्द्र पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/07466843806711544757noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4959245896522980751.post-21732664913100849952010-02-02T22:38:21.956+05:302010-02-02T22:38:21.956+05:30@ गिरिजेश राव
वाह खूब ..
शरीर पर तेल लगा कर अखाड़...@ गिरिजेश राव <br />वाह खूब ..<br />शरीर पर तेल लगा कर अखाड़े में आइये और 'फिसलन' में विजय तो <br />निश्चित ! <br />मजाल है तब कोई 'आचारज' आपसे भिड़े .. खैर .. जिसका मुझे दर था <br />वही हुआ .. आपने जा कर '' रसोई '' में शरण ली ! .. बहुत खूब !!! <br />.<br />जिस दिन कोई आचारज अपने विवेक से नहीं सोचेगा उस आचारज को थू !<br />व <br />जिस दिन कवि आचारज के हिसाब से चलेगा उस कवि को भी उससे ज्यादा थू !<br />.<br />............. बड़े आये हैं आचारज को चैलेन्ज करने ! हुँ !Amrendra Nath Tripathihttps://www.blogger.com/profile/15162902441907572888noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4959245896522980751.post-78324294922352569042010-02-02T21:59:49.752+05:302010-02-02T21:59:49.752+05:30बहुत ही अच्छे भाव. आपने तो कम्पूटर की गति से खाना ...बहुत ही अच्छे भाव. आपने तो कम्पूटर की गति से खाना बना डाला.मज़ा भी आया और बहुत कुछ जो पीछे छोड़ आयी थी याद आ गया धन्यवाद <br />बधाई स्वीकारेंरचना दीक्षितhttps://www.blogger.com/profile/10298077073448653913noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4959245896522980751.post-60800069024067598572010-02-02T21:53:33.666+05:302010-02-02T21:53:33.666+05:30आचारज जी!
न तो देवेन्द्र जी का गीत जड़-रवायत है और...आचारज जी!<br /><br />न तो देवेन्द्र जी का गीत जड़-रवायत है और न मेरी बन्दिश। और यह कविता तो रसोई का गीत है। <br />जरा उस उल्लास को समझें ।<br /> प्रयोग 5 मिनट में नहीं किए जाते, बस मन नृत्य करता है, अक्षर सजते हैं और बन्दिशें की बोर्ड पर उतर आती हैं। <br />पहले भी होता रहा है - कंकन किंकिनि नूपुर धुनि सुनि हो या ताक कमसिन वारि या ससुराल गेंदा फूल हो..<br />.. इमली के बूटे, बेरी के फूल और घर जल्दी जाने में कोई संगति नहीं बस उल्लास है ... <br />..जाय दो ! फागुन का जानें कठ करेजी !!<br /><br />हम त होली तक अइसहि करबे, कोई कोहनाय तो उसकी बला से ...बड़े आए आचारज ! हुँ ।गिरिजेश राव, Girijesh Raohttps://www.blogger.com/profile/16654262548719423445noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4959245896522980751.post-76317686002268261702010-02-02T21:37:34.179+05:302010-02-02T21:37:34.179+05:30ब्लोगर - तिकड़बंदी अच्छी चल रही है !
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सच कह रहा ...ब्लोगर - तिकड़बंदी अच्छी चल रही है !<br />. <br />सच कह रहा हूँ , अन्यथा न लीजियेगा , संवेदना भी <br />संवेदित हो गयी होगी इन प्रयोगों की रस्साकशी से , एक <br />बात पूछ रहा हूँ प्रयोगातुरों से --- आप लोगों ने सहजता को <br />प्रवोग पर तरजीह दी है कि प्रयोग को सहजता पर .. जने क्यों इन <br />प्रयोगों में समस्या-पूर्ति ( वही पुरानी जड़ - रवायत ) की पदचाप सुनाई दे रही है ..<br />भो कविता - धुरीणों ! क्या यही है काव्य या कौतुक !!! <br />या बैठे ठाले का धंधा !!!Amrendra Nath Tripathihttps://www.blogger.com/profile/15162902441907572888noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4959245896522980751.post-65547243065323479122010-02-02T21:34:10.231+05:302010-02-02T21:34:10.231+05:30राम रसोई हुई मुखर
कविता बोली देख इधर ...
इन लाइनों...राम रसोई हुई मुखर<br />कविता बोली देख इधर ...<br />इन लाइनों पर मन झूम गया..डॉ. मनोज मिश्रhttps://www.blogger.com/profile/07989374080125146202noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4959245896522980751.post-73144361880880369182010-02-02T21:02:35.529+05:302010-02-02T21:02:35.529+05:30सिद्धार्थ जी आपकी राम रसोई का स्वाद चखा अच्छा लगा....सिद्धार्थ जी आपकी राम रसोई का स्वाद चखा अच्छा लगा. लगे हाथ आपको खुशखबरी दे दूं- गोरखपुर में सीता रसोई खुल रही है. चम्पा देवी पार्क में देश का सबसे बड़ा वाटर पार्क बन गया है. ११ मार्च को इसका लोकार्पण है. इस पार्क में एक सीता रसोई भी खुल रही है. आपको बहुत मजा आयेगा. दूसरी खुशखबरी यह कि दैनिक जागरण ने भी अपना ब्लॉग शुरू कर दिया है- anandrai.jagranjunction.com...देखें और अपनी प्रतिक्रया से जरूर अवगत कराएं. एक बात और उसमें भी अपना पंजीकरण करा लें. धन्यवाद .Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/07065981802189787445noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4959245896522980751.post-87143181795497722652010-02-02T21:01:55.644+05:302010-02-02T21:01:55.644+05:30ये कविता कौन है?
रचना जी कृपया बताएँ।
__________...ये कविता कौन है?<br /><br />रचना जी कृपया बताएँ।<br /><br />____________________-<br /><br /><br />देवेन्द्र जी के गीत से शुरू हुई फगुनी बयार चौका तक पहुँच गई ! <br />ग़ज़ब भयो रामा, ग़ज़ब भयो।<br /><br />अभी तो 'सम्हति' गड़नी शुरू हुई है। राम जाने आगे के दिनों में क्या होगा !<br /><br />बढ़िया। मन का उल्लास ह्रस्व मात्राओं और 'अम्मा' के चूल्हे चौका से संगमित हो निखर आय है इन अक्षरों में.... अब इनमें और अर्थ गुरुता लाओ... भुजिया भात की तरह महर महर महक फैल जाय ...गिरिजेश राव, Girijesh Raohttps://www.blogger.com/profile/16654262548719423445noreply@blogger.com