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सोमवार, 31 जुलाई 2017

नये सिरे से ब्लॉग-यात्रा का प्रारम्भ


सत्यार्थमित्र पर मौलिक रूप से ब्लॉग पोस्ट करने की आदत फ़ेसबुक ने छीन ली थी। जो मन में आया उसे तुरत-फुरत स्टेटस के रूप में फेसबुक पर डालकर छुट्टी ले लेने का आसान रास्ता पकड़ लिया था मैंने। अधिकतम चौबीस घंटे की सक्रिय आवाजाही पाने के बाद वह स्टेटस काल के गाल में समा जाया करता था। लेकिन इतने में ही करीब सौ पाठकों की लाइक्स व कुछ के कमेन्ट्स की खुराक मिल जाती थी। अधिक महत्वाकांक्षा न पालने के कारण इतने से काम चल जा रहा था।

मैं ऐसा मान चुका था कि हिन्दी ब्लॉगरी की दुनिया प्रायः निष्क्रिय हो चुकी है। लेकिन खुशदीप सहगल जी के तगादे से एक बार फ़िर से हरकत शुरू हुई है। नौकरी में तबादला भी एक कारण बना है। नयी तैनाती में अब पहले जैसी कमरतोड़ मेहनत की जरूरत नहीं रह गयी है। यहाँ थोड़ा आराम और खाली समय उपलब्ध हो गया है। इसलिए अब आशा की जानी चाहिए कि इन पन्नों पर अब धूल नहीं जमने पायेगी।

ब्लॉग को दुबारा सक्रिय करने की कड़ी में सर्वप्रथम मैंने रायबरेली में सुबह-सुबह की गयी साइकिल से सैर का हाल-चाल बताने वाली रिपोर्टों को कालानुक्रम में सहेजकर उन्हें ब्लॉग-पोस्ट का रूप दे दिया है। चूँकि ये पोस्टें पुरानी तिथियों में शिड्यूल हो गयी हैं इसलिए ब्लॉगर के पाठक इसे वर्तमान ट्रैफ़िक में शायद नहीं देख पायेंगे। इसलिए मैं इन सभी पोस्टों के लिंक यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ। समय की उपलब्धता के अनुसार इसे देखा जा सकता है। मुझे विश्वास है कि यह सामग्री आपको पसन्द आयेगी –
01.       साइकिल से सैर की सरपट रपट 
02.       अल्पवयस्क कटहल और चहकते टमाटर के पेड़
03.       विस्मृति का शिकार मुंशीगन्ज शहीद स्मारक
04.       साइकिल से सैर में साप्ताहिक विराम
05.       रायबरेली के लोकउद्यम भी बदहाल हैं
06.       अभियानों से बेखबर गाँव और सूखती नदी
07.       सी.एम. के साथ साइकिल यात्रा
08.       कुकरैल जंगल की सैर के बहाने
09.        साइकिल के साथ तैराकी का लुत्फ़
10.       साइकिल से देखा ग्रीप साहब का पुरवा
11.       दरीबा से सीतारामपुर की ओर
12.       गजोधरपुर और कूड़ा प्रसंस्करण संयन्त्र
13.       परसदेपुर रोड पर पुलिस वाले की ट्रकपन्थी
14.       इब्राहिमपुर से आगे मछेछर
15.       तकरोही और अमराई गाँव, इन्दिरानगर लखनऊ
16.       बारिश में उफ़नती सई, धोबीघाट और शहीद स्मारक
17.       हरित दर्शन औरपढ़ाई की कठिन राह
18.       भूएमऊ गाँव की गन्दी भैंसें और भली गायें
19.       भूएमऊ के प्राथमिक स्कूल और ज्ञान मन्दिर
20.       महानन्दपुर की तंग गलियों के दुधारू पशु
21.       ऑर्टीमिसिया और ओडीएफ़ गाँव की खोज
22.       बारिश में भींगने की अधूरी ख़्वाहिश
23.       बालमखीरा केदर्शन
24.       महुए पर क़ाबिज माफ़िया बन्दर
25.       झाड़-फूँक की अदृश्य शक्ति से सामना
26.       गढ्ढामुक्त सड़कों का सपना
27.       बेहटा-खुर्द एक बेहतर गाँव है
28.       थूहर : एकऔषधीय वृक्ष
29.       नदी के ऊपर से बहती इन्दिरा नहर
(सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी) 
www.satyarthmitra.com

रविवार, 30 जुलाई 2017

नदी के ऊपर से बहती इंदिरा नहर

#साइकिल_से_सैर #रायबरेली
रायबरेली से स्थानांतरण का आदेश मिला तो थोड़ी उलझन हुई। साढ़े चार साल तक की जीवन चर्या में बड़ा बदलाव आने वाला था। पदोन्नति के पद पर तैनाती हुई तो बधाइयाँ भी मिली लेकिन नये ठिकाने पर जाना कष्टप्रद भी महसूस हो रहा था। ऐसी मनःस्थिति में वहाँ की आखिरी साइकिल यात्रा का हाल बताने की सुध ही नहीं रही; जबकि वह सबसे यादगार यात्रा साबित हुई।
01 जुलाई 2017 को अपनी साइकिल लेकर मैं एक ऐसे पुल के ऊपर पहुँच गया जहाँ नदी के ऊपर से सड़क के साथ-साथ विशाल जलराशि वाली इंदिरा नहर भी गुजरती है। यह अद्भुत 'जलसेतु' बेहटा खुर्द गाँव के पास ही है जो रायबरेली से परसदेपुर जाने वाली सड़क से दो किलोमीटर दक्षिण की ओर सई नदी को पार करने के लिए बनाया गया है। रायबरेली शहर को बाहर से पार करने के लिए जो फोर-लेन बाई-पास बनाया जा रहा है वह इंदिरानहर की बायीं पटरी के किनारे से होकर जाएगा। इसके लिए सई नदी पर एक और बड़ा पुल इस जलसेतु के समानांतर बनाया जा रहा है जिसके पाये (pillars) अभी खड़े किये जा रहे हैं।
इस पानी-पुल पर खड़ा हुआ तो मैंने देखा कि इंदिरानहर का अकूत पानी इसके पेट में एक तरफ से गड़गड़ाता हुआ प्रवेश कर रहा था और दूसरी ओर से थोड़ी गर्जना के साथ कलकल झरने की तरह बाहर निकल रहा था। पुल के एकदम नीचे सुस्त और अलसायी सी सई नदी अनेक वनस्पतियों से घिरी और ढंकी हुई अपने अस्तित्व मात्र का भान करा रही थी। लग रहा था कि मानसून की शुरुआती बारिश ने सोयी हुई सई को अभी-अभी जगा दिया है। नहर के किनारों को कुछ आगे तक सीमेंट-कांक्रीट से पक्का किया गया था और उसमें नीचे उतरने के लिए एक स्थान पर सीढ़ियाँ भी बनी थीं। मैं नहर के दक्षिणी छोर पर जाकर पूर्वी पटरी पर खड़ा हुआ तो उसके पश्चिमी किनारे की ढलान पर एक वृद्ध आदमी कपड़ा धुलता हुआ दिखायी दिया। खतरे की एक आशंका मेरे सीने में डर की लहर बनकर गुजर गयी। मैंने नहर की दूसरी पटरी की ओर साइकिल मोड़ दी। पास जाकर मैंने उस वृद्ध से पूछा कि ढलान पर बैठने के बजाय सीढ़ियों पर क्यों नहीं बैठते? यहाँ फिसलने का डर नहीं है क्या? इसपर उन्होने बताया कि सीढ़ियों पर कुछ लोग गंदा (शौच) कर गये हैं इसलिए यहाँ बैठा हूँ। यहाँ की चिकनाई को मैंने रगड़कर साफ कर दिया है इसलिए फिसलन नहीं है। मैंने उन्हें सावधान रहने की सलाह देकर साइकिल वापस मोड़ दी।
यहाँ लगाये गये पत्थरों पर जो रोचक सूचना उत्कीर्ण है वह मिटती जा रही है। फिर भी ध्यान से पढ़ने पर मुझे जो समझ में आ सका वह सहेज लाया हूँ। इसके अनुसार शारदा सहायक परियोजना के अंतर्गत "सई नदी जलसेतु" का शिलान्यास भारत की प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने 12 अप्रैल 1975 को किया था। यद्यपि इसके निर्माण कार्य का प्रारंभ जनवरी 1974 में हो गया था जो दिसंबर 1978 में पूरा हुआ। पुल के उदघाटन से संबंधित कोई शिलालेख मुझे दिखायी नहीं दिया। इंजीनियरिंग के दृष्टिकोण से निम्नलिखित रोचक आंकड़े यहाँ दिये गये हैं उनसे इस जलसेतु की विशालता का कुछ अनुमान हो सकता है :-

जल सेतु
सई नदी
सेतु की जल प्रवाह क्षमता 167 क्युमेक्स
सेतु में जल प्रवाह का वेग 3.8 मीटर/सेकेंड
पानी की अधिकतम गहराई 8.0 मीटर
जलसेतु की लंबाई 248.5 मीटर
प्रत्येक दर की लंबाई 35.5 मीटर
दरों की संख्या 7
नींव के कुओं की माप 14×20 मीटर
नींव के कुओं की गहराई 33.0 मीटर
पूर्व प्रतिवलित कांक्रीट गर्डर की ऊंचाई 85.85 मीटर
दोणी के अंदर की माप 7.3×6.75 मीटर
उच्चतम बाढ़ स्तर 105.0 मीटर
अधिकतम जल प्रवाह 2830 क्युमेक्स
जलसेतु और नहर के बीच संक्रमण-
ऊपरी संक्रमण की लंबाई 26.7 मीटर
निचली संक्रमण की लंबाई 40.0 मीटर
ऊपरी संक्रमण के नींव के कुओं की संख्या 03 नंबर
निचली संक्रमण के नींव के कुओं की संख्या 04 नंबर
नींव के कुओं की माप 10×20 मीटर
नींव के कुओं की गहराई 18.0 मीटर


पहले इस जलसेतु स्थल को एक सुंदर पिकनिक स्पॉट की तरह विकसित किया गया होगा। इसे देखने आसपास के लोग आते रहते हैं। पुल के किनारे बोगनबेलिया की पुरानी झाड़ी की दशा देखने से ऐसा लगा कि किसी समय इस स्थान का सौन्दर्यीकरण किया गया होगा लेकिन वर्तमान में इसके अनुरक्षण की कोई खास व्यवस्था नहीं है। लेकिन इस जलसेतु के भीतर इंदिरानहर के चौड़े पाट को एक-तिहाई तक पतला करके उसकी तेज धारा के दोनों किनारों पर सड़क की पटरी तैयार कर बनाया गया यह तीन लेन वाला पुल अपने आप में एक विलक्षण दृश्य उत्पन्न करता है।
मेरे मोबाइल कैमरे में इस विशाल निर्माण को ठीक-ठीक दिखा पाने का सामर्थ्य शायद नहीं था। फिर भी मैंने कुछ प्रतिनिधि चित्र सहेज लिये; इस सोच के साथ कि रायबरेली से स्थानांतरण के बाद यहाँ तक दुबारा आना शायद संभव न हो सके। आप इन चित्रों को देखकर वहाँ के दृश्य की कल्पना कीजिए। एक-दो चित्र वापसी के समय रास्ते से लिए गये जो ग्रामीण जीवन की एक खास झलक दिखाते हैं।































 



(अब साइकिल से सैर का अगला किस्सा किसी नये शहर से सुनाऊंगा। थोड़ी प्रतीक्षा कीजिए।)

(सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी)

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शुक्रवार, 28 जुलाई 2017

थूहर : एक औषधीय वृक्ष

रायबरेली में #साइकिल_से_सैर करते हुए मुझे एक गाँव जगदीशपुर के बाहर एक छोटी सी चाय की दुकान के सामने एक विचित्र शक्ल -सूरत का पेड़ मिला। विचित्र इसलिए कि यह खूब घना और हरा था लेकिन इसमें एक भी पत्ती नहीं थी। यह बिजली के तारों के मकड़जाल जैसी आकृति लिए बहुत सी लताओं का पुंज था। हरी, मुलायम और सफेद दूध से भरी लताएं।
मैंने चाय बना रहे आदमी से पूछा तो पता चला कि इसे स्थानीय स्तर पर 'थूहर' कहा जाता है। यह त्वचा पर सफेद दाग का बेहतरीन इलाज़ है। उसने बताया कि इसका दूध लगाने पर एक-दो हफ्ते में दाग गायब हो जाते हैं। यदि कोई इस औषधीय वृक्ष के बारे में वैज्ञानिक जानकारी साझा कर सके तो मुझे खुशी होगी।