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सोमवार, 31 मार्च 2014

वोट नहीं डालोगे तो लानत है तुमपर

  आगामी लोकसभा चुनावों की सबसे उत्साहजनक तस्वीर यह होने जा रही है कि इस बार वोट देने वालों की संख्या अबतक की सर्वाधिक होगी। जनसंख्या वृद्धि इसका एक कारण तो है ही लेकिन मैं जिस वृद्धि की बात कर रहा हूँ वह मतदान प्रतिशत की है; जो इस बार पिछले सारे रिकार्ड तोड़ने वाला है।

SVEEP Poster1अभी तक होता यह रहा है कि मतदाता सूची में जितने लोगों का नाम होता था उसमें से आधे से कुछ ही अधिक लोग वोट डालते थे, शेष या तो उस स्थान पर रहते ही नहीं थे या रहते हुए भी वोट डालना बेकार का काम समझते थे। इसका कुफल यह हुआ कि राजनीतिक दलों ने अपनी जीट के लिए पन्द्रह से बीस प्रतिशत मतदाताओं को खुश करने के आसान फॉर्मूले खोजने शुरू कर दिए। जाति और धर्म के आधार पर गोलबन्दी होने लगी, अगड़े-पिछड़े-दलित-अल्पसंख्यक वर्ग के लोग अपनी जातीय या सांप्रदायिक पहचान के आधार पर एकजुट होकर अपने को एक वोटबैंक के रूप में देखने लगे और प्रत्याशियों को चुनने के लिए उनकी जातीय या सांप्रदायिक पहचान को अपने मत का आधार बनाने लगे।

इसका परिणाम यह हुआ कि संकीर्ण क्षेत्रीयता और जातीयता का पोषण करने वाली पार्टियों को चुनावों में सफलता मिलने लगी और सत्ता मिलने के साथ ही एक नये प्रभु वर्ग का उदय हो गया जिसके बारे में घोटालों और भ्रष्टाचार की खबरे ज्यादा और जनहित के लिए काम करने की बातें कम सुनायी देती रहीं। हमारी चुनावी पद्धति ऐसी है कि प्रत्याशी को जीत के लिए आधे वोटों की भी जरूरत नहीं पड़ती इसलिए वह सच्चे बहुमत के बारे में सोचने की जरूरत ही नही समझता।

SVEEP Posterभारत के चुनाव आयोग ने ठीक ही अपना कर्तव्य समझा कि सच्चे अर्थों में लोकतंत्र तभी स्थापित होगा जब वास्तव में बहुमत से चुने हुए प्रतिनिधि देश की संसद और विधान सभाओं में जायें। इसके लिए एक सुविचारित रणनीति बनायी गयी है। यह एक कोशिश है देश की जनता को जगाने की, यह समझाने की कि वोट देना कितना जरूरी है। देश के प्रत्येक वयस्क नागरिक को यह कर्तव्यबोध कराने की कि दुनिया का तथाकथित सबसे बड़ा लोकतंत्र असफल हो जाएगा यदि देश की जनता के आलस्य और उदासीनता के कारण दोयम दर्जे के नेता देश की बागडोर सम्हालते रहेंगे।

इस अभियान की सफलता के लिए युद्ध स्तर पर प्रयास किये गये हैं। यह सुनिश्चित किया जाना है कि देश का संविधान जिस व्यक्ति को वोट देने का अधिकार देता है वह इस अधिकार का प्रयोग भी जरूर करे। इस अभियान को नाम दिया गया है– स्वीप; अर्थात्‌ Systematic Voters’ Education and Electoral Participation (SVEEP).

चुनाव आयोग ने यह महसूस किया कि देश की जनता को उसके मताधिकार के प्रति जागरूक करना जितना जरूरी है उससे ज्यादा जरूरी यह है कि वोट डालने की राह में आने वाली उन सभी बाधाओं को दूर किया जाय जो जागरूक वोटर को भी पोलिंग बूथ तक जाने से रोकती हैं।

देश के एक आम नागरिक को मतदाता के रूप में जो ज्ञान रखना चाहिए और वह वास्तव में जितना जानता है  इन दोनो में बड़ा अन्तर है। इस अन्तर को पाटने के लिए आयोग ने गंभीर प्रयास किये हैं। मतदाता पंजीकरण कैसे होगा, फोटोयुक्त मतदाता पहचान पत्र (EPIC) कैसे बनेगा, दूसरे पहचान-पत्र क्या हो सकते है, आपका मतदान केन्द्र कहाँ है, बूथ कौन सा है, ई.वी.एम. का प्रयोग कैसे करना है, चुनाव के दिन क्या करना है और क्या नहीं करना है, प्रत्याशी के लिए आदर्श आचार संहिता क्या है, धन-बल का प्रयोग करने वालों की क्या दवा है, समाज के कमजोर और असहाय तबकों का चुनाव के दौरान भयादोहन कैसे किया जा सकता है, और इसे रोकने  क्या उपाय हैं; इन सभी प्रश्नों का समुचित उत्तर बताने के लिए चुनाव आयोग ने बाकायदा एक कार्य योजना बनाकर जिम्मेदार अधिकारियों की फौज इसके क्रियान्वयन के लिए लगा रखी है।

आयोग ने कम मतदान प्रतिशत के लिए मोटे तौर पर जिन कारणों की पहचान की है वे हैं- त्रुटिपूर्ण व अधूरी मतदाता सूची, शहरी वर्ग की उदासीनता, लैंगिक विभेद, युवाओं की बेपरवाही इत्यादि। इनके निवारण के लिए मतदाताओं को शिक्षित करने, जागरूक करने और चुनाव संबंधी प्रशासनिक तंत्र को दक्ष बनाने की दिशा में ठोस कदम उठाये गये हैं।

SVEEP Poster2 मतदाता सूची में अनेक फर्जी और गैरहाजिर लोगों के नाम भरे रहते थे जिन्हें गहन समीक्षा करते हुए निकाल दिया जा रहा है, घर से बाहर रहकर रोजी-रोटी कमाने वालों या सरकारी नौकरी करने वालों का नाम गाँव की सूची से निकालकर उनके सामान्य निवास के स्थान पर जोड़ने का प्रयास किया जा रहा है। ऑनलाइन पंजीकरण की सुविधा तो है ही, सभी बूथॊं के लिए स्थानीय रूप से उपलब्ध एक-एक समर्पित कर्मचारी (BLO) की नियुक्ति करके उसे जिम्मेदारी दी गयी है कि वह उस बूथ से संबंधित मुहल्लों में घर-घर जाकर वैध मतदाताओं की सूची तैयार करेगा, उनके पंजीकरण का फॉर्म भरवाएगा, जो मर चुके हैं या कहीं बाहर चले गये हैं उनका नाम सूची से हटवाएगा और वैध व सच्ची मतदाता सूची तैयार करेगा। इस प्रकार तैयार की गयी अद्यतन सूची की प्रतियाँ बूथ के नोटिस बोर्ड पर लगायी जाएंगी, मतदाताओं की चौपाल लगाकर मतदाता सूची को त्रुटिरहित बनाया जाएगा।

सभी मतदाताओं का फोटोयुक्त पहचानपत्र तैयार कराकर घर-घर ले जाकर प्राप्त कराने तक की जिम्मेदारी इस बी.एल.ओ. को दी गयी है। अपने बूथ के प्रायः सभी मतदाताओं को यह व्यक्तिगत रूप से पहचान सकेगा। मतदान के दिन से तीन-चार दिन पहले ही सभी मतदाताओं को वोटर-पर्ची बनाकर उनके घर पर दे आने का जिम्मा भी यह कर्मचारी उठाएगा। अब पार्टियों की स्टॉल लगाकर पर्ची बाँटने के काम से छुट्टी कर दी गयी है।

लाखों की संख्या में जो सरकारी कर्मचारी, पुलिस और अर्द्ध सैनिक बलों के लोग चुनाव की ड्यूटी होने के कारण अपना वोट नहीं डाल पाते थे उनका वोट भी हर हाल में डलवाने की व्यवस्था कर ली गयी है। पोस्टल बैलेट से लेकर ड्यूटी वाले बूथ पर ही उनका वोट डलवाने के विकल्प खोले गये हैं। यह अभियान ‘पल्स पोलियो अभियान’ या ‘सर्व शिक्षा अभियान’ की याद दिलाता है जिसका नारा है- “एक भी बच्चा छूटने न पाये।” चुनाव आयोग भी चाह रहा है कि “एक भी वोटर छूटने न पाये।”

चुनाव आयोग मानो कह रहा है कि हे वोटर महोदय, इतनी कृपा कीजिए कि बूथ तक पहुँचकर अपना वोट डाल दीजिए। लोकतंत्र के मंदिर में वोटर को भगवान बनाने की यह मुहीम रंग लाने वाली है। प्रिन्ट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में, बौद्धिक सेमिनारों में और गाँव-गाँव की गली-गली तक इस संदेश को पहुँचाने की पुरजोर कोशिश की जा रही है। यह सब देखकर बस यही कहने का मन करता है कि इसके बावजूद यदि आप अपने मताधिकार का प्रयोग नहीं करते हैं तो लानत है।

(सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी)

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गुरुवार, 20 मार्च 2014

चुनाव आयोग का पीपली लाइव

Election2014भारतीय लोकतंत्र का सबसे बड़ा त्यौहार शुरू हो गया है। यह महीनों चलेगा। राजनीतिक पार्टियाँ कमर कस चुकी हैं, निर्दल भी किस्मत आजमाने का मन बना चुके हैं, पाला बदलने वाले न्यूज चैनेल्स पर छाये हुए हैं, भाषण बाजी में खंडन और मंडन की जोर आजमाइश चल रही है, टिकट के लिए घमासान मचा हुआ है, पैराशूट से प्रत्याशी उतर रहे हैं, उनका विरोध करने वाले कार्यकर्ताओं को समझाया जा रहा है। उपमा अलंकार में घोड़े, गधे से लेकर गिरगिट तक की मांग बढ़ गयी है। उधर प्रशासनिक तंत्र की कमान चुनाव आयोग ने संभाल लिया है। स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव संपन्न कराने की चुनौती को खूब गंभीरता से लिया गया है। चुनाव जीतने के लिए धनबल और बाहुबल के प्रयोग पर अंकुश लगाना सबसे बड़ी चुनौती है जिसे चुनाव आयोग ने शीर्ष प्राथमिकता दी है।

चुनावों की घोषणा होते ही आदर्श आचार संहिता लागू हो चुकी है और सरकारी तंत्र का ध्यान चुनाव संबंधी हरेक गतिविधि पर केंद्रित हो गया है। चप्पे-चप्पे पर आयोग की निगरानी टीमें वीडियो कैमरे के साथ तैनात कर दी गयी हैं। प्रत्याशी और उसके समर्थकों की एक-एक गतिविधि पर निगाह रखी जा रही है। आम जनता को भी जागरूक किया जा रहा है कि उन्हें कहीं से भी इस बात की भनक लगे कि मतदाताओं को लुभाने के लिए अवैध रूप से रुपया, शराब, साड़ी या अन्य गिफ़्ट आइटम किसी प्रत्याशी या उसके कार्यकर्ताओं द्वारा बाँटा जा रहा है तो तत्काल टोल-फ्री नंबर पर बतायें। हर जिले में 24X7 आधारित कॉल-सेन्टर खोले जा रहे हें। शिकातकर्ता की इच्छा पर उसकी पहचान गोपनीय रखते हुए प्राप्त शिकायत पर त्वरित कार्यवाही की जाएगी। पुलिस अधिकारी व मजिस्ट्रेट सहित उड़न-दस्ता तैयार है। खबर मिलते ही रवाना होने को तत्पर। रिस्पॉन्स टाइम की मॉनीटरिंग हो रही है।

elections-2014-400x250एक लोकसभा क्षेत्र में करीब डेढ़ दर्जन उड़न दस्ते घूमते रहेंगे। इसके अलावा इतनी ही स्थैतिक निगरानी टीमें (Static Surveillance Team) भी प्रमुख चौराहों और कस्बों में आने-जाने वालों की संदिग्ध गतिविधियों पर नजर रखेंगी। सभी जनसभाओं व रैलियों की वीडियो रिकॉर्डिंग इस प्रकार करायी जाएगी कि इसमें प्रयुक्त झंडा, बैनर, पोस्टर, बैरिकेडिंग, तोरणद्वार, शामियाना, कुर्सी, मेज, सोफा, मंच, माइक, स्पीकर, पर्दे, गाड़ियाँ, फूल-माला, मुकुट, तलवार, शाल-टोपी, चाय-कॉफी, लंच-नाश्ता आदि की संख्या गिनी जा सके और निर्धारित दर पर इनका खर्च जोड़कर प्रत्याशी के खाते में चढ़ाया जा सके। यहाँ तक की प्रत्याशी द्वारा किसी वैवाहिक प्रीतिभोज में जाकर यदि अपने लिए वोट मांगा जाएगा तो उस भोज का पूरा खर्चा जोड़कर उसके खाते में डाल दिया जाएगा।

निगरानी में लगी सभी टीमें वीडियो रिकार्डिंग करने के बाद उसकी सीडी बनाएंगी और ‘क्यू-शीट’ पर संक्षिप्त विवरण लिखकर सीडी केन्द्रीय नियन्त्रण कक्ष में जमा करेंगी जहाँ वीडियो देखकर विस्तृत विवरण तैयार करने वाली अलग टीम होगी। यह टीम खर्चे का हिसाब लगाकर लेखा टीम को बताएगी। ये सारे खर्चे एक ‘छाया प्रेक्षण पंजी’ (Shadow Observation Register-SOR) में दर्ज किये जाएंगे जिनका मिलान प्रत्याशी द्वारा प्रस्तुत खर्चे से किया जाएगा। यदि उसने कोई खर्चा छिपाया होगा तो उसे यहाँ से जोड़ दिया जाएगा। नोटिस अलग से दी जाएगी।

अखबारों के विज्ञापन और पेड-न्यूज को चिह्नित करके उसका खर्चा प्रत्याशी के खाते में जोड़ने के लिए अलग एक्सपर्ट लगाये गये हैं। इन सबकी मॉनीटरिंग के लिए चुनाव आयोग अलग से व्यय प्रेक्षक (Expenditure Observer) तैनात कर रहा है।

सभी प्रत्याशियों के लिए अनिवार्य कर दिया गया है कि वे चुनाव लड़ने के प्रयोजन से एक अलग बैंक खाता खोलें और अपने सभी खर्चे इसी खाते से चेक काटकर भुगतान करें। जो भी सहयोग राशि या चन्दा उन्हें प्राप्त हो उसे पहले इस खाते में जमा करना होगा तब खर्च करना होगा। नगदी लेन-देन की सीमा तय कर दी गयी है। किसी एक व्यक्ति या फर्म को उसके सामान या सेवाओं के बदले संपूर्ण अभियान के दौरान जोड़कर कुल बीस हजार से ज्यादा नगद भुगतान नहीं किया जा सकता। प्रत्याशी के प्रचार वाहन से यदि बड़ी मात्रा में नगदी या अन्य उपहार-भेंट आदि की सामग्री मिलती है तो उसे जब्त कर लिया जाएगा और उसके खर्चे में जोड़ भी लिया जाएगा। किसी सार्वजनिक भवन की दीवार पर यदि कोई चुनावी प्रचार लिखा मिला तो उसे आयोग के अधिकारियों द्वारा तत्काल मिटवा दिया जाएगा और उस प्रचार को लिखाने का खर्च व मिटाने का खर्च दोनो प्रत्याशी के खाते में जुड़ जाएगा। निर्वाचन व्यय प्रेक्षक की निगरानी में प्रत्याशी के चुनावी खर्च की मॉनीटरिंग (अनुवीक्षण) करने के लिए जो टीमें हैं उनसे कौन जाने आपकी भेंट कहीं हो ही जाय। इसलिए इनके नाम से परिचित हो लीजिए -

  1. व्यय प्रेक्षक (Expenditure Observer-EO)
  2. सहायक व्यय प्रेक्षक (Assistant Expenditure Observer-AEO)
  3. वीडियो निगरानी टीम (Video Surveillance Team-VST)
  4. वीडियो अवलोकन टीम (Video Viewing Team-VVT)
  5. लेखा टीम (Accounts Team-AT)
  6. शिकायत अनुवीक्षण नियन्त्रण कक्ष और कॉल सेन्टर (Complaint Monitoring Control Room & Call Centre)
  7. मीडिया प्रमाणन और अनुवीक्षण समिति (Media Certification and Monitoring Committee-MCMC)
  8. उड़न दस्ते (Flying Squads)
  9. स्थैतिक निगरानी टीम (Static Surveillance Team-SST)
  10. व्यय अनुवीक्षण प्रकोष्ठ (Expenditure Monitoring Cell-MNC)

Indian general election, 2014लोकसभा चुनाव से पहले उत्तर प्रदेश की विधान परिषद के लिए स्नातक निर्वाचन क्षेत्रों के चुनाव आगामी 23 तारीख को होने जा रहे हैं। इसमें मतदान प्रक्रिया की वेबकास्टिंग की जाने वाली है। चुनिन्दा पोलिंग बूथों को सीधे इंटरनेट पर सजीव प्रसारण के लिए लिंक कर दिया जाएगा। प्रयोग सफल रहा तो लोकसभा में भी इसे दुहराया जा सकता है।

इस संपूर्ण तंत्र को पूरे चुनाव अभियान की अवधि में सक्रिय रखने के लिए कितना व्यय सरकारी खजाने से होगा इसका हिसाब आप लगाइए। मैं इतना बता दूँ कि लोकसभा प्रत्याशियों को चुनाव लड़ने के लिए खर्च की सीमा जो चालीस लाख निर्धारित थी उसे इस बार बढ़ाकर सत्तर लाख कर दिया गया है।

उदासीन मतदाताओं को हर हाल में वोट डालने के लिए प्रेरित करने का जिम्मा भी चुनाव आयोग ने अपने ऊपर लिया है। इसके लिये चलाये गये अभियान को ‘स्वीप’ नाम दिया गया है। पिछले चुनावों में मतदान प्रतिशत में आयी उछाल इसी अभियान की परिणति है। स्वीप (Systematic Voter Education and Electoral Participation-SVEEP) के बारे में कुछ बातें अगली कड़ी में।

(सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी)
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