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शनिवार, 31 मई 2014

कितना रौशन रौशन उसका चेहरा है

चुनावी कार्यक्रम की जिम्मेदारियों से निवृत्त होने के बाद तरही नसिश्त के संयोजक से मुलाकात हुई। उन्होंने कहा कि अगली बैठक में तो आना ही पड़ेगा। मैंने पूछा मिसरा क्या है तो बोले – “कितना रौशन-रौशन उसका चेहरा है।” फिर क्या था मेरे भीतर शायरी का कीड़ा कुलबुलाने लगा। इसके बाद जो कुछ अवतरित हुआ है वह आपकी नज़र करता हूँ :

कितना रौशन रौशन उसका चेहरा है

(भाग-१)

कितना रौशन रौशन उसका चेहरा है
बैठा उस पर काले तिल का पहरा है

आँखें अपलक देख रहीं हैं सूरत को
दिल भी मेरा उसी ठाँव पर ठहरा है

प्यारी सूरत से ही प्यार हुआ है जो
प्यार का तूने सीखा नहीं ककहरा है

जिसने सूरत से बेहतर सीरत समझा
उसके सर पर सजता सच्चा सेहरा है

चक्कर खा गिर पड़े अचानक अरे मियाँ
बस थोड़ा सा उसका आँचल लहरा है

 

(भाग-२)

वह पुकारती रही सांस थम जाने तक
उसे पता क्या यह निजाम ही बहरा है

अच्छे दिन आने की आस लगी मुझको
मुस्तकबिल उनके संग बड़ा सुनहरा है

वो आये तो अन्धकार मिट जाएगा
ऐतबार इस चमत्कार पर गहरा है

नौजवान उठ खड़ा हुआ तो ये समझो
छंटने वाला बदअमनी का कोहरा है

जिसके सर तोहमद है कत्लो गारद की
गुनहगार वो असल नहीं बस मोहरा है

बदल गयी है बात चुनावी मौसम की
राजनीति का यह चरित्र ही दोहरा है

बैरी ने हमको जब भी ललकारा है
उसके सर पे सदा तिरंगा फहरा है

 

(सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी)
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गुरुवार, 29 मई 2014

बदलाव की बातें

new governmentसभी ज्योतिषियों, चुनावी पंडितों व भाजपा सहित सभी राजनीतिक पार्टियों के अनुमानों को धता बताते हुए नरेन्द्र मोदी ने अपनी बेहतरीन नेतृत्व क्षमता, उपलब्ध संसाधनों के प्रभावशाली प्रयोग के कौशल और विपक्षी की हर बात का माकूल जवाब देने की चतुराई से लोकसभा के चुनाव में रिकॉर्ड सफलता अर्जित करते हुए देश के पंद्रहवें प्रधानमंत्री के रूप में कुर्सी संभाल ली है। राहुल गांधी, सोनिया गांधी और बाद में सक्रिय हुई प्रियंका गांधी के पास मोदी के हमलों का कोई जवाब नहीं था। कुछ सस्ते किस्म के सिखाये हुए जुमलों और मुहावरों से मोदी के गंभीर, तार्किक और तथ्यपूर्ण भाषणों का कोई मुकाबला नहीं किया जा सका। भ्रष्टाचार, मंहगाई और सरकारी अकर्मण्यता से उकताई हुई जनता को “अच्छे दिन आने वाले हैं” की धुन में एक आशा का राग सुनायी पड़ा और उसने जाति, धर्म और क्षेत्रीयता की बंटवार से बाहर आकर एक ऐसा जनादेश दे दिया जिसमें अनेक समस्याओं का समाधान समाया हुआ था। ऐसी समस्याएँ जिनसे पिछली अनेक सरकारें ग्रसित थीं। आइए देखते हैं क्या-क्या बदल गया है :

  1. रिमोट कंट्रोल : सबसे बड़ा बदलाव यह है कि अब सत्ता का असली अधिकार भी उसी के पास है जिसके पास जवाबदेही की जिम्मेदारी है। नरेन्द्र मोदी ने अपनी मेहनत और योग्यता से जो सत्ता हासिल की है उसके महत्वपूर्ण नि्र्णयों के लिए उन्हें किसी अन्य अधिष्ठान की ओर ताकने की जरूरत नहीं होगी।
  2. गठबंधन : लंबे समय से क्षेत्रीय क्षत्रपों ने अपनी स्वार्थी राजनीति से बहुदलीय गठबंधन वाली सरकारों को परेशान कर रखा था। किसी राष्ट्रीय-नीति के निर्माण और क्रियान्वयन जैसी कोई बात हो ही नहीं सकती थी। अपने क्षेत्र में धुर विरोधी राजनीति करने वाले नेता भी एक साथ केन्द्र सरकार को भीतर या बाहर से समर्थन देकर अपने निहित स्वार्थों की पूर्ति कर रहे थे।
  3. अस्थिरता : पिछली सरकारों की सबसे बड़ी चिन्ता मात्र सरकार को बचाये रखने की ही रहती थी। घटक दलों में से कोई नाराज न हो जाय इसके लिए तमाम जतन करने पड़ते थे। सीबीआई लगाने से लेकर लालबत्ती देने तक के तमाम हथकंडे जिनकी देश के विकास और राष्ट्र के निर्माण में कोई भूमिका नहीं थी।
  4. अनिर्णय : निर्णय लेने वाले इतने केन्द्र हुआ करते थे कि कोई एक निर्णय लेना लगभग असंभव था। कुछ निर्णय ले भी लिए गये तो उनके लागू होने से पहले कोई न कोई बिदक गया और कागज फाड़ कर फेंक दिया गया। रोचक बात यह है कि लोगों को ऐसे फाड़ू निर्णय मजेदार लगने लगे।
  5. देसी-विदेशी : बार-बार यह सफाई देने से निजात मिली कि सत्ता की असली चाभी शुद्ध भारतीय हाथों में ही है, कोई विदेशी शक्ति सत्ता के गलियारों में नियंत्रक की भूमिका में नहीं है।
  6. लिखित-वाचन : अब हमें स्वाभाविक भाषण सुनने को मिला करेंगे। बोलने वाला यह समझता भी रहेगा कि किस विषय पर बात कर रहा है। लिखी हुई स्क्रिप्ट बाँचने के चक्कर में हमारे नेता नर्मदा योजना को नर-मादा योजना से कन्फ़्यूज नहीं करेंगे।
  7. राज-परिवार : फिलहाल देश में अब जनता द्वारा चुने हुए प्रतिनिधियों को किसी राज परिवार के प्रति अपनी निष्ठा सिद्ध करने के लिए अपनी गरिमा और स्वतंत्र विचार का बलिदान नहीं करना पड़ेगा। बहुत से प्रतिभाशाली नेता इस अपरिहार्य चरण-वंदना की वृत्ति के कारण कांतिहीन होकर अपनी दुर्गति को प्राप्त हो गये। उम्मीद है कि नयी सरकार जाति और वंश पर ध्यान दिये बिना प्रतिभा और योग्यता के आधार पर बेहतर काम का अवसर देगी।
  8. पिलपिली उदारता : भ्रष्टाचार, महंगाई, अल्पसंख्यकवाद, क्षेत्रीयतावाद, परिवारवाद, विदेशी घुसपैठ, सांप्रदायिक उन्माद, झगड़े और ब्लैकमेलिंग के प्रति एक लिजलिजे उदार दृष्टिकोण को अब जगह नहीं मिलने वाली। कम से कम गुजरात में सफल मोदी मॉडल के आधार पर ऐसी उम्मीद की जा सकती है।
  9. सेकुलर-कम्युनल विमर्श : चुनाव परिणाम देखकर भारतीय राजनीति के सेकुलर खेमे के सभी सूरमाओं की सिट्टी-पिट्टी गुम हो गयी है। वे सोच रहे होंगे कि देश की भतेरी जनता ही कम्युनल हो गयी है। जब तक वे इस सदमे से बाहर नहीं आते तबतक यह विमर्श ठंडे बस्ते में रहेगा।
  10. दूरदर्शन : सरकारी टेलीविजन के समाचारों में दिखने वाले चेहरों और पैनेल डिस्कसन के विशेषज्ञों का नया सेट आ गया है। कुछ दिनों तक इस चैनेल की टीआरपी ऊँची रहने वाली है।
  11. पप्पू और फेंकू : सोशल मीडिया के इन दो दुलारों को अब बहुत मिस किया जाएगा। पप्पू शायद कहीं पढ़ाई करने चले जाय और फेंकू ने राजनैतिक पटल पर जो-जो बीज फेंके थे उनके जमीन से उग आने पर खेत में निराई-गुड़ाई करने और उसकी फसल काटने में व्यस्त हो जाएंगे।

बदलाव तो और भी बहुत से होने वाले हैं; लेकिन सब के सब मैं ही थोड़े न बताऊँगा। कुछ आप भी गिनाइए, अपनी नजर से देखकर। टिप्पणी बक्सा इसीलिए तो खुला है। Smile

(सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी)
www.satyarthmitra.com

छपते-छपते- इधर मैंने 11 तक गिनती पूरी की उधर धारा-370 पर “ले तेरी की - दे तेरी की” शुरू हो गयी है। मैंने तो यह सोचा ही नहीं था। मतलब सरप्राइज एलीमेन्ट भी भरपूर रहने वाला है।