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गुरुवार, 22 मार्च 2012

पाकिस्तान में ऑनर किलिंग की रिपोर्ट क्या कहती है?

पाकिस्तान के राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने कहा है कि वहाँ पिछले साल कम से कम 945 औरतों व लड़कियों की हत्या इसलिए कर दी गयी कि उन्होंने परिवार की इज्जत लुटा देने का दुस्साहस किया। वृहस्पतिवार को जो आँकड़े प्रस्तुत किये गये हैं उनसे पता चलता है कि रूढ़िवादी पाकिस्तानी समाज में औरतों के ऊपर हिंसा के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। यहाँ  औरतों के साथ दोयम दर्जे के नागरिकों की तरह व्यवहार किया जा रहा है। सबसे बड़ी चिन्ता की बात यह है कि इस देश में घरेलू हिंसा को रोकने के लिए कोई कानून ही नहीं है।

पाकिस्तान के प्रतिष्ठित राष्ट्रीय अखबार डान में छपी रिपोर्ट में कहा गया है कि मानवाधिकार समूहों के अनुसार महिलाओं के अधिकारों की रक्षा की स्थिति पहले से बेहतर होने के बावजूद सरकार द्वारा अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है। अभी हालत यह है कि पुलिस द्वारा अधिकांश घटनाओं को निजी पारिवारिक मामला बताकर रफ़ा-दफ़ा कर दिया जाता है।

my feudal lord

इस रिपोर्ट को देखकर तहमीना दुर्रानी की चर्चित पुस्तक माई फ़्यूडल लॉर्ड की याद आ गयी। अभी भी यहाँ के समाज में सामन्ती मानसिकता की पैठ बहुत गहराई तक बनी हुई है।

अपनी वार्षिक रिपोर्ट में आयोग ने लिखा है कि कम से कम 943 महिलाओं की हत्या इज्जत की रखवाली के नाम पर की गयी। इनमें से 93 अल्पवयस्क बच्चियाँ थीं। इस हत्या की शिकार महिलाओं में सात ईसाई और दो हिंदू संप्रदाय से संबंधित थीं।

आयोग द्वारा वर्ष 2010 में इज्जत के नाम पर की गयी हत्याओं की संख्या 791 बतायी गयी थी। वर्ष 2011 में जिन महिलाओं की हत्या हुई उनमें 595 के ऊपर अवैध संबंध रखने का आरोप था और 219 पर बिना अनुमति के विवाह कर लेने का दोष लगाया गया था। आयोग की रिपोर्ट के अनुसार कुछ पीड़िताओं की हत्या करने से पहले उनके साथ बलात्कार अथवा सामूहिक दुष्कर्म भी किया गया। अधिकांश महिलाओं की हत्या उनके भाइयों अथवा पति द्वारा की गयी थी।

आयोग ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि जिन 943 महिलाओं की हत्या हुई उनमें से मात्र 43 को मृत्यु से पहले चिकित्सा सहायता से बचाने की कोशिश की गयी थी। इसका मतलब यह है कि जिनसे जान बचाने की उम्मीद की जा सकती थी उन्होंने ही जान से मार देने का काम किया था।

अखबार कहता है कि इज्जत के नाम पर हत्या के (ज्ञात) मामलों में वृद्धि पाये जाने के बावजूद मानवाधिकार कार्यकर्ताओं द्वारा संसद की इस बात के लिए प्रशंसा की गयी है कि उसने महिलाओं को उत्पीड़न से बचाने के लिए कानून पारित किया है। फिर भी मानवाधिकार समूहों का मानना है कि हिंसा, दुष्कर्म और भेदभाव के खिलाफ महिलाओं को सुनिश्चित न्याय दिलाने के लिए सरकार को अभी बहुत कुछ करना होगा।

पिछले साल बेल्जियम की एक अदालत ने एक पाकिस्तानी परिवार के चार सदस्यों को जेल भेज दिया था क्योंकि उन्होंने अपनी बेटी की हत्या इसलिए कर दी थी कि उसने परिवार द्वारा तय की गयी शादी करने से मना कर दिया था और उनकी मर्जी के खिलाफ़ एक बेल्जियाई व्यक्ति के साथ रहने लगी थी।

क्या हमारे पड़ोसी देश की यह  खबर हमारे बहुत आस-पास की नहीं लगती? इज्जत के नाम पर अपनी बेटी-बहू की हत्या क्या हमारे समाज के कथित इज्जतदार लोग नहीं करते? क्या हमारे बीच निरुपमा पाठक के हत्यारे मौजूद नहीं हैं? अलबत्ता हमारे देश का मीडिया इसकी रिपोर्ट बहुत बढ़-चढ़कर करता है। फेसबुक, ट्‌विटर और ब्‌लॉग पर बतकही भी शायद कुछ ज्यादा हो जाती है लेकिन समस्या के समाधान की राह कहाँ से निकलेगी यह अभी दिखायी नहीं दे रहा।

आइए इसपर सिर जोड़कर सोचें। सिर्फ़ एक खबर नहीं एक प्रश्न के रूप में इसपर विचार करें।

(सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी)