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रविवार, 18 अप्रैल 2010

वर्धा में पूरा होता गान्धी का एक सपना…

 

आप जानते ही होंगे कि सरकारी कोषागार कार्यालय वित्तीय वर्ष की समाप्ति करीब आने पर अत्यधिक व्यस्त हो जाते हैं। इस बार भी स्थिति बदली नहीं थी। पन्द्रह मार्च के बाद ही ऑफिस में कमरतोड़ मेहनत करनी पड़ रही थी। घर आकर ब्लॉगरी करने की हिम्मत नहीं पड़ती। जैसे-तैसे ई-मेल खाता चेक कर पाने की फुर्सत ही निकाल पाये। कोई पोस्ट ठेलने या पढ़ने की तो हम सोच ही नहीं पाये। मेरा मन था इस वार्षिक लेखाबन्दी पर सरकारी दफ़्तरों की कार्य प्रणाली में आने वाले बदलाव पर आपसे विचार बाँटने का लेकिन मन को इधर एकाग्र ही नहीं कर सका। मार्च का महीना पाँच अप्रैल तक समाप्त हो पाया। महालेखाकार (AG) को अन्तिम लेखा-जोखा भिंजवाने के बाद जब हमें फुरसत मिली तो कुछ दिन आराम करने के बाद कम्प्यूटर खोलने का मन हुआ।

मेरे मेल बॉक्स में असंख्य सन्देश जमा हो चुके थे। फ़ेसबुक, ऑर्कुट, ट्वीटर, लिंक्ड-इन, ई-कविता, एस्ट्रोलॉजीडॉट्कॉम, मि.पॉजिटिव, फ्रॉपर, बड्डीटीवी, मॉर्निंग डिस्पैच-एच.टी., चिट्ठाजगत, ब्लॉगवाणी भोजपुरी.कॉम इत्यादि ने अपना दैनिक कोटा भेंज रखा था। अनेक ब्लॉगर भाइयों ने अपनी रचनाएं भी जबरिया ठेल रखी थी। मुझे नहीं पता कि इतनी सामग्री कोई कैसे पढ़ पाता होगा। मैने तो मजबूरी में ‘सेलेक्ट ऑल’ और ‘मार्क ऐज रेड’ का ऑप्शन चुन लिया। अलबत्ता मैने व्यक्तिगत रूप से परिचित मित्रों और परिजनों के सन्देश जरूर पढ़े। 15042010608

इन्ही में से हिन्दी भारत समूह के लिए डॉ. कविता वाचक्नवी जी का एक सन्देश मुझे देखने को मिला जो वर्धा स्थित महात्मा गान्धी अन्तरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय से सम्बन्धित था। वहाँ के स्थानीय समाचारपत्रों में छपी कुछ रिपोर्ट्स की कतरन किसी शिक्षक द्वारा भेंजी गयी थी जिसे कविता जी ने समूह पर चस्पा कर दिया था। उस सामग्री को देखकर मैं हैरत से भर उठा। इस संस्था की जो छवि मेरे मन में थी उसे चोट पहुँची। लेकिन मुझे सहसा याद आ गया कि मैने पिछले साल इसी संस्था के सौजन्य से एक बड़ा कार्यक्रम इलाहाबाद में कराया था- हिन्दी चिट्ठाकारी की दुनिया पर राष्ट्रीय गोष्ठी। उस समय भी अन्तर्जाल पर अनेक आलोचना के स्वर मुखरित हो गये थे। ये आलोचना एक खास किस्म की नकारात्मक प्रवृत्ति से प्रेरित लगी थी। उस समय की बातों को नजदीक से जानता हूँ इसलिए इन रिपोर्टों की सच्चाई पर मुझे पर्याप्त सन्देह हो चला। बल्कि मेरे मन में इस संस्था को और नजदीक से देखने की इच्छा बलवती हो गयी।

मैंने संस्था के कुलपति जी से बात की और वहाँ आने की इच्छा जतायी। प्रयोजन प्रायः पर्यटन का ही था। उन्होंने सहर्ष आमन्त्रित किया, मैने झटसे टिकट लिया और १३ अप्रैल की दोपहर में सेवाग्राम रेलवे स्टेशन पर पटना-सिकन्दराबाद एक्सप्रेस से उतर गया।  स्टेशन पर उतरते ही प्रथम साक्षात्कार प्रचण्ड गर्मी से हुआ। विश्वविद्यालय की ओर से एक वाहन स्टेशन पर आ चुका था। अपने एक मित्र के साथ मैने उसमें शरण ली। करीब छः किलोमीटर के रास्ते में मुझे पथरीली जमीन पर बड़े जतन से उगाये हुए कुछ पेड़ दिखे, सड़कें प्रायः खाली दिखी, इलाहाबाद की तरह ठेले और खोमचे पर गर्म मौसम से लड़ने वाले उत्पाद उस दोपहरी में वहाँ नहीं दिखायी पड़े। गाड़ी वर्धा शहर से बाहर निकली तो मुझे चारो ओर पसरी हुई वीरानी ने घेर लिया। लेकिन जल्दी ही हमें एक पहाड़ी टीले पर विश्वविद्यालय का नाम लिखा हुआ दिख गया। 

सबकुछ मेरी कल्पना से परे दिख रहा था। बिल्कुल निर्जन और दुर्गम पथरीले पहाड़ को तराशकर शिक्षा का केन्द्र बनाने की कोशिश विलक्षण लग रही थी। हिमालय की कन्दराओं में तपस्वी ऋषियों की साधना के बारे में तो पढ़ रखा था लेकिन उन हरे भरे जंगलों की शीतल छाया में मिलने वाले सुरम्य वातावरण की तुलना विदर्भ क्षेत्र के इस वनस्पति विहीन पत्थरो के पाँच टीलों पर उगायी जा रही शिक्षा की पौधशाला से कैसे की जा सकती है। मेरे मन में जिज्ञासा का ज्वार उठने लगा। आखिर इस स्थान का चयन ही क्यों हुआ? मौका मिलते ही पूछूंगा। गान्धी हिल्स पर स्थापित प्रतिमा

मेरे लिए वि.वि. के गेस्ट हाउस (फादर कामिल बुल्के अन्तरराष्ट्रीय छात्रावास) में रुकने का इन्तजाम किया गया था। सभी ए.सी. कमरे पहले से ही भर चुके थे। हमें कूलर से सन्तोष करना पड़ा। लेकिन वह भी पर्याप्त ठंडक दे रहा था। असली परेशानी स्नान करने में हुई। दोपहर के दो बजे टंकी का पानी लगभग खौल रहा था। उसे बाल्टी में भरकर थोड़ी देर छोड़ दिया गया तो उसकी गर्मी सहने लायक हो गयी। विश्वविद्यालय के कुलपति श्री विभूति नारायण राय जी ने बाद में बताया कि हम रोज सुबह बाल्टियों में पानी इकट्ठा करते हैं और ठण्डा हो जाने के बाद नहाते हैं। मालूम हुआ कि यहाँ पानी ४०-५० किलोमीटर दूर किसी नदी से पाइपलाइन के जरिए लाया जाता है और टंकियों में चढ़ाकर रखा जाता है। लॉन के पौधों को पर्याप्त पानी नहीं दिया जा सकता इसलिए ऐसे पौधे लगाये गये हैं जिन्हें पानी की कम जरूरत पड़े।

फादर कामिल बुल्के अन्तरराष्ट्रीय छात्रावास गर्म मौसम की मार से तो प्रायः पूरा देश ही त्रस्त है, इसलिए यह अकेले वर्धा की परेशानी नहीं कही जा सकती। इसे नजरन्दाज करते हुए मैं उन बातों की चर्चा करना चाहूंगा जो मुझे असीम मानसिक सन्तुष्टि देने वाली साबित हुई। प्रदेश सरकार की नौकरी बजाते हुए मुझे जिन अनचाहे अनुभवों से गुजरना पड़ता है, जिस प्रकार की बेतुकी फाइलों में सिर खपाना पड़ता है और निरर्थक कामों में जीवन का कीमती समय गुजारना पड़ता है उससे परे वहाँ बिताये दो दिनों में मुझे विलक्षण अनुभव प्राप्त हुए। मुझे जिस अद्‍भुत बौद्धिक चर्चा में शामिल होने का अवसर मिला, साहित्य, संगीत और कला की जिस त्रिवेणी में डुबकी लगाने का अवसर मिला,  जिन लोगों के साहचर्य में इस इस अध्ययन केन्द्र के निरन्तर विकसित होते परिसर के सौन्दर्य के साक्षात्कार का सुख मिला उसकी चर्चा इस एक पोस्ट में नहीं की जा सकती।

रेगिस्तान में नखलिस्तान का निर्माण

अगली पोस्ट में मैं बताऊंगा कि वहाँ मुझे कौन-कौन ऐसे लोग मिले जिनकी चर्चा राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर होती रहती है। कौन लोग हैं जो शिक्षा की मशाल जलाये रखने के लिए शान्तिपूर्ण ढंग से अपना व्यक्तिगत सुख त्यागकर इस तपोभूमि में अपनी ऊर्जा का प्रतिदान कर रहे है, वे कौन सी प्रेरक शक्तियाँ हैं   जो महात्मा गान्धी के सेवाग्राम में देखे गये एक सपने को पूरा करने के लिए इस रेगिस्तान में नख़लिस्तान का निर्माण करा रही हैं। बस प्रतीक्षा कीजिए अगली पोस्ट का….

(सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी)

15 टिप्‍पणियां:

  1. जिस चीज कपढ़ने के लिये मैं आया था वह तो आपने कल पर छोड़ दी। खैर आपकी अगली पोस्ट की प्रतीक्षा है...

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  2. आपसे फोन पर बतियाने के बाद इस पोस्ट की प्रतीक्षा थी । दर्शनीय स्थल है वर्धा ।

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  3. आपने तो आज मीडिया की तरह बात की है, देखिए ब्रेक के बाद। चलिए इंतजार रहेगा।

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  4. .अच्छा तो वर्धा भी हो आये चुपचाप -अनुकरणीय !

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  5. सार्थक पोस्ट।
    आपकी लेखन शैली इतनी रोचक है कि अगले अंक में पढ़कर दिल धक से हो गया।

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  6. बहुत सुंदर अगली कडी का इंतजार रहेगा

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  7. बहुत सुंदर अगली कडी का इंतजार है,,,,

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  8. कर रहे हैं जो बताया- अगली पोस्ट का इंतजार!

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  10. meri tippari krutdeo font mein haina kripya unicode dwara padhne ka kast karen.

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  11. शानदार पोस्ट. आपने अपनी बात कुछ इस तरीके से रक्खी है कि अगली पोस्ट को पढ़ने की उत्सुकता बढ़ गई है. अब तो व्यस्तता ख़त्म हो गई होगी. अतः जल्द ही अगली पोस्ट भी ठेल दीजिये...........

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  12. वाह आपने तो पूरा का पूरा वर्धा घुमा दिया, गांधी जी के अध्‍यायन तत्‍व के विषय बहुत कुछ जानना शेष है, कुछ आपसे जानने को मिलेगा।

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  13. doordarshan ke suruaati daur ko yaad keejiye. ek samay tha jab ramayan serial dikhaya jata tha to samay ruk jata tha. loag-bag utsukta se seriak aarambh hone ka intjaar karte the. verdha ka aapka blog kuchh aisi hi utsukta jagata hai. aaj subah uthte hi computer khola, aage jaanne ki ichchha thi, lekin....

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  14. अनेक ब्लॉगर भाइयों ने अपनी रचनाएं भी जबरिया ठेल रखी थी। मुझे नहीं पता कि इतनी सामग्री कोई कैसे पढ़ पाता होगा।अनेक ब्लॉगर भाइयों ने अपनी रचनाएं भी जबरिया ठेल रखी थी। मुझे नहीं पता कि इतनी सामग्री कोई कैसे पढ़ पाता होगा।
    इसीलिये मैं इस प्रकार के गंदे कामों से दूर ही रहता हूं । अब जल्दी से अगली कड़ी पर काम करिये । उत्सुकता जगा दी आपने ।

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  15. भविष्य का स्वागत!

    ....परन्तु ऐसे बिना देखे भाले, जाने...?

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