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शनिवार, 17 अक्तूबर 2009

इलाहाबाद की राष्ट्रीय ब्लॉगर गोष्ठी से पहले...

 

(१)

भाव हमारे शब्द उधार के...

पाँच दिनों की ट्रेनिंग पूरी करके लखनऊ से इलाहाबाद लौटा हूँ। पत्नी और बच्चे बेसब्री से प्रतीक्षा कर रहे थे। दीपावली की छुट्टी मनाने मेरे दो भाई भी अपने-अपने हॉस्टेल से आ चुके थे। घर में एक जन्मदिन भी था। लेकिन मुझे इसकी खुशी मनाने के लिए कोई उपहार खरीदने या अन्य तैयारी का कोई समय नहीं मिल पाया था। बस रात के नौ बजे तक घर पहुँच जाना ही मेरी सबसे बड़ी उपलब्धि रही। रिक्शे से उतरकर सबसे पहले पड़ोसी के लॉन से गुलाब के फूल माँग लाया और घर में प्रवेश करते ही उन्ही फूलों को पेश करते हुए  यह उधार का शेर सुना डाला-

तमाम उम्र तुम्हें जिन्दगी का प्यार मिले।

खु़दा करे ये खुशी तुमको बार-बार मिले॥

“हैप्पी बड्डे” का काम पूरा हो लिया था। तभी मेरे एक दोस्त ने चार खूबसूरत लाइनें बता दीं। तड़ से मैने एक सुनहले कार्ड पर उन्हें लिखा और चुपके से वहाँ रख दिया जहाँ उनकी नजर जल्दी से पहुँच जाय-

चन्द मासूम अदाओं के सिवा कुछ भी नहीं।
महकी-महकी सी हवाओं के सिवा कुछ भी नहीं॥
आज के प्यार भरे दिन पे तुम्हें देने को,
पास में मेरे दुआओं के सिवा कुछ भी नहीं।

फिर क्या था। आनन्द आ गया। भाव जम गया था। मेरी भावनाएं पूरी तरह से संचारित हो गयीं। दोनो तरफ़ सन्तुष्टि का भाव था। मेरे मन को बहुत तसल्ली मिल गयी और कुछ न कर पाने का मलाल थोड़ा मद्धिम हुआ।

(२)

कहानी कुछ यूँ पलटी:

अब मैं अगली चिन्ता की ओर से बरबस मोड़े हुए मन को दुबारा उस ओर ले जाने का उपक्रम करने लगा। कम्प्यूटर पर बैठकर आगामी कार्यक्रम की तैयारियों की प्रगति समीक्षा के उद्देश्य से मेलबॉक्स चेक करना था। कार्यक्रम के संयोजक श्री सन्तोष भदौरिया जी से बात करनी थी। अपने छोटे भाइयों से कम्प्यूटर तकनीक पर कुछ नया सीखना था, और अपने ब्लॉग पर एक नयी पोस्ट लिखने का मन भी था।

राष्ट्रीय सेमिनार के आयोजन में हमारे चिठ्ठाकार बन्धुओं ने जिस उत्साह और सौजन्यता से प्रतिभाग करने हेतु अपनी सहमति भेंजी है उसका धन्यवाद ज्ञापन भी करना था और ज्योतिपर्व दीपावली की शुभकामनाएं भी प्रेषित करनी थीं। इन सभी कार्यों पर एक के बाद एक ध्यान दौड़ाता रहा, लेकिन एकाग्र नहीं हो सका।

तभी एक जबरदस्त तुकबन्दी मेरे कानों से टकरायी। मेरी गृहिणी को यह सब अच्छा नहीं लग रहा था। उन्हें मुझसे शिकायत हो ली थी और वह तुकबन्दी उसी का बयान कर रही थी।

मैने पीछे मुड़कर पूछा, “इसके आगे भी कुछ जोड़ोगी कि यहीं अटकी रहोगी?”

“इसके आगे आप जोड़िए... मेरे भाव से तो आप भली भाँति परिचित हैं ही। ...मैं चली सोने।” यह कहकर वो सही में चली गयीं।

अब मेरा सारा प्रोग्राम चौपट हो गया। पत्नी का आदेश पालन करना अपना धर्म समझते हुए मैने उस दो लाइन की तुकबन्दी को यथावत्‌ रखते हुए आगे की पंक्तियाँ जोड़ डाली हैं। इनमें व्यक्त भावों का कॉपीराइट मेरा नहीं है और इनसे मेरा सहमत होना भी जरूरी नहीं है। अस्तु...।

(३)

भाव तुम्हारे शब्द हमारे...

सोच रही हूँ, काश! मैं कम्प्यूटर होती।

तब अपने पतिदेव के दिल के भीतर होती॥

 

मैं सहचरी नहीं रह पायी अब उनकी जी।

इस निशिचर ने चुरा लिया है अब उनका जी॥

घर में मुझसे अधिक समय उसको देते हैं।

आते ही अब हाल-चाल उसका लेते हैं॥

चिन्ता नहीं उन्हें मेरी जो ना घर होती।

सोच रही हूँ, काश! मैं कम्प्यूटर होती....

 

सुबह शाम औ दिन रातें बस एक तपस्या।

नहीं दीखती घर में कोई अन्य समस्या॥

बतियाना औ हँसना, गाना कम्प्यूटर से।

रूठ जाय तो उसे मनाना है जी भर के॥

चिन्ता नहीं उन्हें चाहे मैं ठनकर रोती।

सोच रही हूँ, काश! मैं कम्प्यूटर होती॥

 

घर की दुनिया भले प्रतीक्षा कर ले भाई।

कम्प्यूटर की दुनिया की जमती प्रभुताई॥

‘घर का मेल’ बने, बिगड़े या पटरी छोड़े।

पर ‘ई-मेल’ बॉक्स खुलकर नित सरपट दौड़े।

वैसी अपलक दृष्टि कभी ना मुझपर होती।

सोच रही हूँ, काश! मैं कम्प्यूटर होती॥

 

शादी के अरमान सुनहरे धरे रह गये।

‘दो जिस्म मगर एक जान’ ख़तों में भरे रह गये॥

कम्प्यूटर ने श्रीमन्‌ की गलबहिंयाँ ले ली।

दो बच्चों की देखभाल, मैं निपट अकेली॥

लगे डाह सौतन को इच्छा जीभर होती।

सोच रही हूँ, काश! मैं कम्प्यूटर होती॥

 

(४)

शुभकामनाएं

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आप सभी को दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं। सपरिवार सानन्द रहें। पति-पत्नी और बच्चों को महालक्ष्मी जी अपार खुशियाँ दें। सभी राजी खुशी रहें। हमपर भी देवी-देवता ऐसे ही प्रसन्न रहें, इसकी दुआ कीजिए। २३-२४ अक्टूबर को ब्लॉगर महाकुम्भ में यहाँ या वहाँ आप सबसे मुलाकात होगी ही।

!!!जय हो लक्ष्मी म‍इया की!!!

(सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी)

19 टिप्‍पणियां:

  1. तुकबंदी तो शानदार है । दूसरे के भाव-चुरा कर लिख देना भी बहादुरी ही है ।

    "मैं सहचरी नहीं रह पायी अब उनकी जी।
    इस निशिचर ने चुरा लिया है अब उनका जी॥"

    गजब की पंक्तियाँ । आभार ।

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  2. मेरी शुभकामनाएँ हैं आपके साथ.

    सुख औ’ समृद्धि आपके अंगना झिलमिलाएँ,
    दीपक अमन के चारों दिशाओं में जगमगाएँ
    खुशियाँ आपके द्वार पर आकर खुशी मनाएँ..
    दीपावली पर्व की आपको ढेरों मंगलकामनाएँ!

    सादर

    -समीर लाल 'समीर'

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  3. पढ़ता रहा और पढ़ता रह गया, जिस तरह एक के बाद एक घटनाऍं होती रही पढ़कर वाकई मजा आया।

    दीपोत्सव पर्व की बहुत बहुत बधाई। दीपावली के दियों से निकलने वाली रौशनी सम्पूर्ण विश्व का कल्याण करे, ऐसी कामना है।

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  4. दीपावली पर आप को परिवार सहित हार्दिक शुभकामनाएँ!

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  5. पता नहीं क्यों ? ऐसा लगता है कि यह पोस्ट तो हमारे ब्लॉग में दिखने वाली थी ....... शायद आपने मेरी जगह अपना नाम छाप दिया है !!!


    (शायद हर ब्लॉगर की पोस्ट होती आपकी तुकबन्दियाँ!)

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    दीपावली पर्व पर आपको मेरी मंगलकामनाएं!!!
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    स्नेह अपना दो ना दो,
    दीप बन जलता रहूँगा|
    हर अंधेरी रात में,
    जब अकेले ही चलोगे
    तुम्हारी राह का तम
    दूर मैं करता रहूँगा|
    स्नेह अपना दो ना दो,
    दीप बन जलता रहूँगा|
    ------------------------------------------------------------------------------------------------
    "प्राइमरी का मास्टर" की ओर से आपको दीपावली की हार्दिक मंगल कामनाएं !!
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  6. दीपावली पर आपको परिवार एवं आपके ई मेल बाक्‍स सहित शुभकामनाए।

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  7. घर में मन लगाओ बन्धु! सेमीनार फेमीनार आने जाने हैं!
    आपको और आपके परिवार को मंगलमय हो दीपावली। मां महालक्ष्मी की कृपा रहे!

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  10. यहाँ तो सब कुछ है त्रिपाठी जी

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  11. आपने ई फुलझड़ी में लुक्की लगा दी है इधर भी आपकी कविता सुन कर कोसना शुरू हो गया है ! बचिए वे मजबूत हो रही हैं !

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  12. Agar ye panktian aap ke man se patni ki opinion samajh kar likhi gayi hain to ye shubh sanket nahi hain (Gyan dutt ji ki rai par dhyan dein) Ghar aur blog par samay ka vibhajan uchit dhang se karein .

    Haan panktian achchi hai aur likhe tukant me safalata milne lagegi . Shubh kamnaien...

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  13. हमें तो लगा था जब दोनों पक्ष ब्लॉग्गिंग करे तो... :)

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  14. वैसी अपलक दृष्टि कभी ना मुझपर होती।
    सोच रही हूँ, काश! मैं कम्प्यूटर होती॥

    आगे आगे देखिये होता है क्या.

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  15. daudti najren to is post ko ek bar pahle bhi padh chuki hain lekin aaj aaram se padhne ko mauka mila. shandar tukbandi. blograin ke dil ki bat blog pe aa gai. my best wishes to be succesfull orgnisation of your bloger seminar............

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  16. शानदार कविता और सफ़ल कार्यक्रम के लिये बधाई.

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  17. आप खुशकिस्मत हैं कि सिर्फ शिकायत से छुटकारा मिल गया , इसी तर्ज़ पर कुछ ऐसे भी बोलती हैं :)

    सासू लेकर, चारधाम की
    यात्रा तुमको, याद न आई !
    कितने लोग तर गए जाकर
    क्यों भोले की, याद न आई !
    काश उत्तराखंड की साजन,तुमको टिकट मिल गयी होती !
    नमःशिवाय, उच्चारण करते, मैं भी धन्य, हो गयी होती !

    कबतक करवा चौथ रखूंगी
    सजधज कर, गौरी पूजूँगी ,
    सास के पैर, पति की पूजा
    कब तक मैं,इनको झेलूंगी
    कब से जलती, आग ह्रदय में ,कभी तो छाती ठंडी होती !
    सनम जल गए होते,उस दिन ,काश दिए में, बत्ती होती !

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