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गुरुवार, 16 अक्तूबर 2008

एक अद्भुत संयोग...! (भाग-२)

पिछली कड़ी में आपने परिवार से परित्यक्त राजकुमारी के बारे में पढ़ा। अब आगे...

राजकुमारी देवी के लिए उस दुधमुँही बच्ची को गोद में लेना, उसे अपने आँचल की छाँव देना और उस मासूम को गले लगाकर उसमें जीवन का संचार कर देना उसके लिए इतना भारी पड़ गया कि उसकी हिम्मत जवाब देने लगी...।

जिस पति के साथ उसने पच्चीस वर्षों से अपना जीवन समर्पित कर बिताया था, उसके लिए वह त्याज्य हो गयी। ...बेहद गरीबी में दिहाड़ी मजदूरी करके अपना जीवन बसर कर रहे इस परिवार के मुखिया और राजकुमारी के पति नरेश ने एक बोरे में भर कर रखा गया आटा जानवरों को डाल दिया; क्यों कि उसे उसकी पत्नी ने उसी हाथ से छू दिया था, जिससे वह उस मासूम को सहला चुकी थी।

जिस बहू को स्नेहवश राजकुमारी ने घर से बाहर मजदूरी करने से मना कर दिया था और उसे घर के भीतर सुख से रखने के लिए खुद बाहर का काम करती थी; उसी बहू ने उसके बाल पकड़कर घसीट दिया और मार-पीट कर बाहर निकालते हुए अलग हो जाने का फैसला सुना दिया। राजकुमारी के तीनो बेटे जो बाहर (दिल्ली) कमाने गए हुए हैं, उनकी ओर से भी माँ के प्रति कोई समर्थन नहीं मिला। अब कच्ची मिट्टी और घास-फूस का घर भी राजकुमारी के लिए अपना न रह सका।

इधर लोगों में उस बच्ची के प्रति जो शुरुआती कौतूहल था वह क्षीण होता गया; अब वह केवल राजकुमारी पर ही आश्रित रह गयी। उसपर जिसे अपने ही आश्रय का संकट खड़ा हो गया था। कदाचित्‌ यह विडम्बना भाँपकर ही ईश्वर ने पड़ोस के जिले महराजगंज के एक गाँव में चल रही एक अन्य व्यथा की कथा का पटाक्षेप करने का विधान रच दिया था...।

उस गाँव के एक गोस्वामी ब्राह्मण परिवार की एक महिला अपने विवाह के पन्द्रह वर्ष बीत जाने के बावजूद सूनी रह गयी कोंख को भरने के सारे जतन करके थक जाने के बाद घोर निराशा की शिकार हो गयी थी। बड़े-बड़े डॉक्टर-हकीम से लेकर अनेक ज्योतिषी, पण्डित व ओझा-सोखा इत्यादि तक का दरवाजा खटखटा कर हताश हो चुकी उस महिला के पेट में कुछ दिनों पहले जब दर्द के साथ कुछ उभार उठना शुरू हुआ तो अचानक उसके जीवन में एक उम्मीद लौट आयी थी। उसके सपने आसमान छूने लगे थे।

वह शुरुआती दर्द से खुश होती रही, मीठे सपनों के साथ उसे तबतक सहन करती रही जब तक किसी साहसी चिकित्सक ने उसे यह नहीं बता दिया कि यह उभार उसके सपने को पूरा करने वाला नहीं है। यह तो उसके गर्भाशय में लम्बे समय से पलने वाला रोग था जो अब ट्यूमर का रूप लेकर खतरनाक तरीके से बढ़ रहा था। यह सूचना उस महिला के लिए किसी वज्राघात से कम न थी। तत्काल ऑपरेशन किया जाना अपरिहार्य था और वह बेचारी बाँझपन के दंश से उपजे मानसिक अवसाद से उबरने की सम्भावना को दूर धकेलती जा रही थी।

उसके पति की चिन्ता थी बीमार पत्नी की जीवन रक्षा। एक बड़े ऑपरेशन के लिए पत्नी को तैयार करने में उन्हें यह वचन देना पड़ा कि उसकी सूनी गोद बहुत जल्द भर दी जाएगी। वह बावरी इस वादे पर विश्‍वास कर बैठी और अस्पताल में भर्ती हो गयी। ऑपरेशन हुआ। ट्यूमर बाहर निकला। सबने राहत की साँस ली; लेकिन चैन उसे नहीं था। उसे तो गोद भरने की जिद थी।

इसी समय अखबार में छपी खबर पढ़कर जवाहरलाल की उम्मीद का दीया टिमटिमा उठा। पत्नी को अस्पताल में अन्य परिजनों के भरोसे छोड़कर भागे चले आए - मेरे गाँव। यहाँ राजकुमारी उस मासूम को छाती से चिपकाए अपनी विपत्ति को टालने के लिए भगवान से प्रार्थना कर रही थी। यहाँ इन दो उम्मीदों का ऐसा मिलन हुआ कि सुनने और देखने वालों की आँखें फटी की फटी रह गयीं। अद्भुत संयोग ही था यह।

जवाहरलाल उस गौरांग बालिका को देखकर मोहित हो गये। सुन्दर और तीखे नाक-नख़्स वाली उस अबोध शिशु को उन्होंने अपने लिए ईश्वर का वरदान मान लिया तो राजकुमारी को जवाहरलाल में साक्षात्‌ नारायण के दर्शन हो गए। उसकी एक सप्ताह की कठिन तपस्या का ऐसा अन्त देखने सारा गाँव उमड़ पड़ा। ...लेकिन `एक अनजान आदमी को बच्ची कैसे सौंप दी जाय?' यह प्रश्‍न खड़ा कर दिया गया।

जवाहरलाल उल्टे पाँव लौट पड़े; अगले दिन फिर आने का वादा कर गये...।

चित्र flickr.com से साभार : कदाचित्‌ जवारलाल की पत्नी की मुस्कान कुछ ऐसी ही रही होगी।

वादे के मुताबिक वे अगले दिन गाँव में एक जीप से आये। जीप से तीन औरतें और कई आदमी उतरे। उसमें मातृत्व-सुख से वंचित जवाहरलाल की पत्नी भी थी, अपनी दो बहनों के साथ। बाकी उनके गाँव के बड़े-बुजुर्ग थे।

...उस बच्ची के भावी माँ-बाप ने राजकुमारी से हाथ जोड़कर विनती करते हुए उसकी याचना की। राजकुमारी ने अपने को धन्य मानकर बच्ची को उनके गोद में डाल दिया।

...कृतज्ञता ज्ञापन में उनलोगों ने राजकुमारी को नयी साड़ी, कपड़े, फल-मूल और डेढ़ हजार रूपये भेंट किए। उसकी आँखें इस ईश्वरीय कृपा से भर आयीं...।

राजकुमारी को प्राप्त हुई भेंट उसे उसके पति और बहू से दुबारा मेल कराने के लिए पर्याप्त थी।

(सिद्धार्थ)

9 टिप्‍पणियां:

  1. हैप्पी एंडिंग -अंत भला सो सब भला !!

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  2. चलिए अंत सुखद हुआ ..बच्ची अच्छे से पलेगी इसी शुभकामना के साथ यही दुआ है .... .पर ""राजकुमारी को प्राप्त हुई भेंट उसे उसके पति और बहू से दुबारा मेल कराने के लिए पर्याप्त थी।""अंत में सुख के सब साथी ..दुःख में न कोई भी साफ़ साफ़ दिखा ..दोहरी मानसिकता है यह लोगों की

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  3. चलिए सुखांत तो हुआ... हम तो बड़ा उल्टा सोचे बैठे थे की पता नहीं क्या हुआ होगा !

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  4. दोनो भाग पढ़े। मैं तो मानवता के इतने शेड्स देख कर सोच में पड़ गया। वास्तव में कितने कितने प्रकार हैं मानव के।
    बहुत सुन्दर लिखा जी।

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  5. आपने भावभीनी शब्‍दों में इस सच्‍ची घटना का ब्‍योरा दि‍या। संयोग की भी अदभुत महि‍मा होती है।

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  6. लोग काहे मुंबइया सिनेमा...कहकह कर बदनाम करते हैं ...सारी कहानियां तो ऐसे ही आती हैं आसपास से...
    बढ़िया रहा ....

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  7. शुक्रिया......दिल को राहत मिली सच में

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  8. अच्छा लगा राजकुमारी जी के बारे मे जानकर ..क्योंकि मैं ख़ुद गोस्वामी ब्रह्मण परिवार से हूँ इसलिए भली -भांति समझती हूँ कुलीनता का बोझ कैसा होता है

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