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गुरुवार, 24 अप्रैल 2008

आज मेरे घर के पीछे बम फटा

आज दोपहर लगभग बारह बज रहे थे कि एक धमाके की आवाज हुई। ऐसा लगा घर के पिछ्वाड़े ही हुई है। अभी इस बारे में सोच ही रहा था कि तभी एक और धमाका। मन सशंकित हुआ- कुछ अनहोनी तो नही हुई? पर फिर यह सोच कर कि कचहरी है, कुछ हुआ होगा, बैठा ही रह गया। तभी घर में काम करने वाली चम्पा की आवाज ने कान खड़े कर दिये- “भैया जी, उधर धुँआ उठ रहा है, लोगों की आवाजें आ रही हैं, लगता है बम फटा है. "मैं लगभग दौड़ते हुए कमरे से बाहर आया और छत पर चढ़ गया धमाके की आवाज को घर के सभी लोगों ने सुना था, और उस पर चंपा के इस निष्कर्ष ने कि 'बम फटा है' सभी के चेहरे पर चिंता की लकीरें खींच दी थी मेरे पीछे ही भाभी, छोटा भाई और स्वयं चंपा भी छत पर आ गए घर से पूरब की तरफ़ जनपद न्यायालय की बिल्डिंग से चीखने की आवाजें आ रही थीं, और उसकी चारो तरफ़ धुआं पसरा हुआ था।

मुझे अपनी भतीजी की चिंता होने लगी, जिसके स्कूल में उसी समय छुट्टी होती है मुझे डर लग रहा था कि स्कूल से लौटते वक्त कचहरी में मची अफरा-तफरी से कहीं वो डर न जाए डर इस बात का भी था कि कहीं और भी बम विस्फोट न हों भाभी भइया को फ़ोन लगा रहीं थीं, और मैं छत से उतर कर अपनी भतीजी को लिवा लाने के लिए स्कूल की तरफ़ चल दिया।

रास्ते में पुलिस-वालों की भाग-दौड़, लोगों की संशय-युक्त बातें सुनते हुए स्कूल पहुंचा तो स्कूल में छुट्टी हो चुकी थी वागीषा (मेरी भतीजी) को साथ ले घर लौटते वक्त, मैंने उसे बम विस्फोट के बारे में बताया उसने कहा- "हाँ मैंने भी आवाज सुनी थी, पर इसमें बड़ी बात क्या है?" मैंने उसे बम विस्फोट से होने वाले संभावित जान-माल के नुकसान की बात बताई तो वो थोड़ा घबरा गई, पर तत्काल ही उसने पूछा "क्या यह ख़बर टीवी पर आ रही होगी? मैंने कहा "सम्भव है" तब तक हम घर पहुँच चुके थे आते ही मैंने टीवी खोला, वहाँ तेंदुलकर के जन्मदिन की पार्टी की ख़बर आ रही थी । इसी बीच भाभी से पता चला की उन्होंने भइया को फोन कर वस्तु-स्थिति की जानकारी दे दी है। कई चैनलों पर घूमते हुए अचानक ‘आज-तक’ पर ब्रेकिंग न्यूज़ पढ़ने को मिला- "इलाहाबाद कचहरी में विधायक पर देसी बम से हमला" अगले दस मिनट तक मैं कई चैनल बदल-बदल कर इस ख़बर के बारे में और कुछ जानने की कोशिश में लगा रहा पर हर जगह तेंदुलकर और उनकी पार्टी मैंने टीवी बंद की और खाना खाकर आराम करने बिस्तर पर आ गया

इस सम्पूर्ण विवरण को पढ़ने के बाद आपको कुछ असामान्य लगा? नहीं न? मुझे भी नहीं लगा था पर अचानक मुझे अन्दर से एक अन्जान कीड़े ने काट लिया. मैं सोचने लगा कि मैं कितना संवेदनशून्य हो चुका हूँ यह जानते हुए भी कि उस बम विस्फोट में कुछ लोग घायल हुए होंगे, शायद कुछ की मृत्यु भी हो गई हो, मैंने वहाँ जाने की, किसी तरह की, कोई भी मदद करने की, कोशिश नहीं कीवह भी दुर्घटना स्थल से महज सौ या दो सौ कदमों की दूरी पर रहते हुए? दुर्घटना के बारे में जानने के लिए मैंने टीवी का सहारा लिया जबकि मैं वहाँ जा सकता था मुझे सिर्फ़ अपनी भतीजी, और भाभी को सिर्फ़ अपने पति व बच्चों की चिंता हुई

शायद इसे सावधानी बरतना कहकर मुक्ति पाई जा सके, पर क्या यह सही है? ऐसे में क्या करना चाहिए था? जो मैंने किया वह ठीक था, या इसके अलावे कुछ और भी किया जा सकता था? कोई विकल्प है? यह सारे प्रश्न मैं आप लोगों के सुपुर्द करता हूँ.

1 टिप्पणी:

  1. नासिरा शर्मा के उपन्यास अक्षयवट में भी बम फटने की बात को बड़े "मैटर ऑफ फैक्टली" लिखा गया है। इलाहाबाद के लिये नॉर्मल सी बात।

    लेकिन यह (अप)संस्कृति बदलनी चाहिये।

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